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भारतीय वायु सेना ने लगाए अफगान लड़कियों की हसरतों को पंख

कैसी होती होंगी अफगानिस्तान की लड़कियां... उस अफगानिस्तान की लड़कियां जहां कुछ समय पहले तालिबान की तूती बोलती थी, उसी देश की लड़कियां जहां दुनिया का सबसे दुर्दांत आतंकवादी ओसामा बिन लादेन रहा करता...

भारतीय वायु सेना ने लगाए अफगान लड़कियों की हसरतों को पंख
एजेंसीThu, 10 Nov 2011 06:18 PM
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कैसी होती होंगी अफगानिस्तान की लड़कियां... उस अफगानिस्तान की लड़कियां जहां कुछ समय पहले तालिबान की तूती बोलती थी, उसी देश की लड़कियां जहां दुनिया का सबसे दुर्दांत आतंकवादी ओसामा बिन लादेन रहा करता था। सहमी हुई, हिजाब में सिमटी हुई, सकुचाई सी। कुछ ऐसी ही तस्वीर जेहन में आती है ना।

एकदम गलत सोच बैठे आप। आज के अफगानिस्तान की लडकियां खूब तेज तर्रार हैं और चटर-पटर बोलते हुए आपके मुंह पर अपनी हाजिर जवाबी से ताले जड़ देती हैं। यकीन नहीं आता तो प्रधानमंत्री निवास के सामने ओल्ड वेलिंगटन ग्राउंड पहुंच जाइए, जहां ये अफगानी स्कूली लड़कियां भारतीय वायु सेना द्वारा आयोजित 52वें सुब्रतो कप फुटबाल में हिस्सा लेने आई हैं।

पहली दफा इस प्रतियोगिता में लड़कियों की टीम हिस्सा ले रही है और पहली बार ही अफगानिस्तान की लड़कियों की टीम घर से बाहर निकली है। लाल-सफेद रंग की जरसी और इसी रंग की स्ट्राइप वाली पैंट और सिर पर स्कार्फ पहने ये गोरी-गोरी बालाएं अचानक आपका ध्यान खींचती हैं।

उन्होंने अपने मुल्क से पहली बार बाहर कदम रखा है और वे इस बात के लिए वायु सेना की शुक्रगुजार हैं कि उसने उनकी हसरतों को पंख लगा दिए। वे इस बात के लिए भी वायुसेना का अहसान मानती हैं कि उसने उन्हें अपने दोस्त इंडिया को देखने आने का मौका दिया।

टीम की कप्तान जराफशां खांटी हिंदी बोलती है लेकिन उसकी जुबान पर फारसी और पश्तों का तड़का लगा हुआ जायका है। आपने हिंदी बोलना कहां से सीखा, इस सवाल पर जराफशां ने पलक झपकाए बिना कहा कि आपके शाहरूख खान ने सिखा दिया।

जराफशां का इतना कहना था कि अफगानिस्तानी टीम की बाकी 14 लड़कियां के चेहरे खिल गए। जोर से चिल्ला कर और चारों उंगलियां मोड़कर अपना अगूंठा हवा में लहराते हुए वे बोल उठीं, हमें भी शाहरूख पसंद है, लेकिन उनमें से एक स्वर अलग से उठा। मुझे तो सलमान खान अच्छा लगता है। यह आवाज टीम की सबसे छोटी सदस्य शाजिया रहमान की थी। झेपते हुए अपनी हंसी को होठों के कोनों में छिपाकर शाजिया बोली, मुझे भी जर्नलिस्ट बनना है।

शाजिया हो या जराफशां या फिर यास्मीन। अफगानिस्तान के इस्तकलाल फ्रीड़ा स्कूल की 17 से कम उम्र की इन लड़कियों के चेहरे पर आजादी का नूर झलकता है। वह आजादी जो एकदम युवा है और जिसका शबाब उनके गहरी नीली आंखों में तैरते हुए आसानी से देखा जा सकता है।

एक समय था जब हम घर से बाहर कदम नहीं रख पाती थीं। तालिबान की गोलियों का डर था, लेकिन अब हमारे मुल्क में डेमोक्रेसी है। हमें बाहर आने की आजादी है। हमें फुटबाल खेलने की आजादी है।

अफगानिस्तान की राष्ट्रीय टीम के गोलची रह चुके फैज मुहम्मद नजीरी की निगेहबानी में इन लड़कियों ने अंतरराष्ट्रीय फुटबाल सितारे मैसी और रोनाल्डो बनने का सपना देखा है। अफगानिस्तान में दोपहर बारह बजे और रात बारह बजे खेल चैनल चलता है और उसी पर फुटबाल देखते हुए इन लड़कियों के मन में हसरतों ने अंगडा़ई ली है।

एक पत्रकार ने इन अफगान लड़कियों से अंग्रेजी में बात करनी शुरू की तो उनमें से एक तपाक से बोली हिंदी में बात करो ना दोस्त। इस अप्रत्याशित जवाब से बुरी तरह झेप गए इस पत्रकार ने हिंदी में सवाल पूछना शुरू किया, लेकिन सामने चल रहे मैच ने इस स्थिति को दूसरी ओर मोड़ दिया।

सामने असम की टीम के साथ अफगान लड़कों की टीम का मैच चल रहा था और उनकी दोस्त अफगानी लड़कियां मैदान के बाहर से उनका हौसला बढा़ रही थीं। अफगान हमलावर गोल के ठीक सामने पहुंच गया था और उसकी किक अपने लक्ष्य पर थी, लेकिन निशाना चूक गया। लड़कियों ने निराशा में पांव जमीन पर पटके और फिर से हिंदुस्तानी फिल्मों पर बातचीत शुरू कर दी।

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