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एक बीमार तो दूसरे की बीमारी तय

हम दोनों के जीवन में यह भी एक आशीर्वाद ही था कि पहली बार हमें जिस कंसर्ट में गाने का मौका मिला, वह था संगीत सभा। नए कलाकारों के साथ ऐसा बहुत कम होता है। हमारे लिए रात 10 बजे से 11 बजे तक का समय था।...

एक बीमार तो दूसरे की बीमारी तय
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 31 Jan 2016 12:03 AM
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हम दोनों के जीवन में यह भी एक आशीर्वाद ही था कि पहली बार हमें जिस कंसर्ट में गाने का मौका मिला, वह था संगीत सभा। नए कलाकारों के साथ ऐसा बहुत कम होता है। हमारे लिए रात 10 बजे से 11 बजे तक का समय था। उस समय आकाशवाणी के ‘डायरेक्टर जनरल’ थे- बी सी सेन। हम बिल्कुल ‘यंग आर्टिस्ट’ थे। हमने एक घंटे तक राग ‘पूरिया’ गाया। उस वक्त हम लोगों की फीस 125 रुपये थी। कार्यक्रम खत्म होने के बाद जब हम चेक लेने के लिए ड्यूटी रूम में गए, तो बहुत उत्साहित थे। जीवन में पहला मौका था, जब हमें चेक से पैसा मिल रहा था। ड्यूटी रूम में एक अधिकारी ने हमसे हमारी उम्र पूछी। राजन भैया ने अपनी उम्र 22 और मेरी 17 साल बताई। इसकी जानकारी ‘डायरेक्टर जनरल’ को दी गई। इसके बाद वहां से जवाब आया कि हम दोनों भाई अगले दिन आकाशवाणी में उनसे मुलाकात करें। अगले दिन जब हम उनसे मिलने गए, तो ‘डायरेक्टर जनरल’ ने मिलते ही पहली बात कही कि जब उन्होंने हमारा गाना सुना, तो उन्हें लगा कि कोई 45-50 साल का कलाकार गा रहा है। यह हमारे लिए पहला सबसे बड़ा ‘कॉम्प्लिमेंट’ था। उन्होंने तुरंत ही अपने एक अधिकारी को बुलाया और जूनियर स्तर के कलाकारों में हमारा नियमित कार्यक्रम शुरू कराने को कहा। वही रेडियो कार्यक्रम हमारी ‘पॉपुलैरिटी’ की बड़ी वजह बना। इसके बाद हमें आकाशवाणी की ‘चेन बुकिंग’ मिलने लगी। मतलब हम जिस राज्य में जाते थे, वहां 15-16 कार्यक्रम एक साथ। वहां से पैसे भी मिलने लगे।

इसके बाद 1974 का साल आया। सतगुरु सम्मेलन था। उन लोगों ने फिर से भैया से संपर्क किया। राजन भैया ने मेरे भी दिल्ली आने की जानकारी आयोजकों को दी। ऐवान-ए-गालिब में हम दोनों भाइयों ने उनके लिए गाया। यह बड़ों के आशीर्वाद और स्नेह का असर था कि हमारा सफर आगे बढ़ता चला गया। अब भी हम संगीत की साधना ही कर रहे हैं। अब भी यही कोशिश करते हैं कि जब हम कोई सुर लगाएं, तो वे हमारी बात सुन लें, सही से लग जाएं। कोई राग बिगड़े नहीं, क्योंकि हम राग से बड़े नहीं हैं। उसी कोशिश में हम दोनों भाई लगे हुए हैं। कई बार तो श्रोता हमारे लिए ‘सेकंडरी’ हो जाते हैं। हमारी कोशिश होती है कि अपनी गायकी से पहले हम तो आनंदित हों, तभी श्रोताओं को भी आनंद आएगा। बहुत लोग कहते हैं कि जब आप दोनों भाइयों का तारतम्य जुड़ जाता है, जब आप लोग गायकी में डूब जाते हैं, तो लगता है कोई अदृश्य किरण हम लोगों को भी आपसे जोड़ रही है। हमारे कई श्रोता कहते हैं कि वे अपनी प्रार्थनाओं में हम भाइयों के लिए दुआ करते हैं। इससे बड़ी उपलब्धि, इससे बड़ी कमाई, इससे बड़ा अवॉर्ड भला क्या हो सकता है? जब हम लोग बनारस से आकर दिल्ली में ‘सेटल’ हो रहे थे, तब कई लोग हम भाइयों के लिए काफी कुछ गलत बोलते थे। यहां तक कि लोग हमारे घर का सही पता नहीं बताते थे। रेडियो में हमारे लिए जो चिट्ठियां आती थीं, वे भी गायब कर दी जाती थीं। लेकिन हम लोगों के चाहने वालों का साया इतना बड़ा था कि सारी मुश्किलें हम तक पहुंचने से पहले ही रुक जातीं।

उन्हीं दुआओं का असर है कि हम पिछले करीब 50 साल से एक साथ गा रहे हैं। अब तो हालत यह है कि एक बीमार पडे़, तो दूसरा बीमार पड़ जाता है। एक का मूड खराब हो, तो दूसरा अपने आप गुस्से में दिखने लगता है। कई बार लोग सोचते हैं कि हम भाइयों में कभी खटपट नहीं होती होगी, उसकी भी एक कहानी है। हमारे गुरु ने शिक्षा दी थी कि उनके जाने के बाद राजन मिश्रा, साजन मिश्रा के गुरु होंगे। तब से लेकर आज तक मजे की बात यह है कि मैं उनसे लगातार सीखता आ रहा हूं, बल्कि स्टेज पर जब वह गाते हैं, तब भी मैं उनसे सीख लेता हूं। पिताजी के सामने हम दोनों एक साथ रियाज करते थे। अब भी कई बार हम दोनों याद करते हैं कि पिताजी छोटा होने के कारण मुझे अक्सर टोकते थे कि सुनो-सुनो। कई बार मुझे गुस्सा आता था कि एक तो कान पकड़कर गाने के लिए लाए, अब गाने बैठा, तो कहते हैं कि सुनो-सुनो। लेकिन अब एहसास होता कि जो सुनने की क्षमता उन्होंने बढ़ाई। इससे मेरा सीखना आसान हो गया। अब खुशी इस बात की है कि हमारी अगली पीढ़ी के बच्चों में भी आपस में बहुत प्यार है। संस्कार है। आज भी हम दोनों भाइयों का पूरा परिवार ज्यादातर मौकों पर साथ खाना खाता है। मैं अपने चाहने वालों से भी अक्सर कहता हूं कि हमारी अगली पीढ़ी के बच्चों लिए भी दुआ करें कि वे सब साथ रहें। संगीत की परंपरा के अलावा साथ रहने की परंपरा भी वे लोग सीखें। जो आनंद मुट्ठी में है, वह खुली उंगलियों में नहीं। अच्छा लगता है कि अगली पीढ़ी हमारी परंपरा को लेकर चल रही है।
(जारी...)

 

 

 

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