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फिर से पृथ्वी के सौरमंडल में होगा नवग्रह,प्लूटो को मिलेगा ग्रह का दर्जा

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लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 19 Mar 2017 09:36 PM

बर्फीले बौने खगोलीय पिंड प्लूटो को फिर से ग्रह का दर्जा मिल सकता है। वैज्ञानिकों के एक समूह ने कहा है कि प्लूटो को सौरमंडल के एक ग्रह के रूप में परिभाषित किया जाना चाहिए। उसे पृथ्वी और बृहष्पति के उपग्रहों समेत सौरमंडल के 100 से अधिक खगोलीय पिंडों के साथ ग्रह के रूप में रखा जाना चाहिए। इन वैज्ञानिकों का मानना है कि प्लूटो को गलत तरीके सौरमंडल की ग्रह-सूची से निकाला गया है। 

एक दशक पूर्व छिना दर्जा : 
प्लूटो को अर्से तक ग्रह माना गया। लेकिन साल 2006 में उसको ग्रहों की सूची से हटाकर ‘गैर-ग्रहीय’ पिंड का दर्जा दे दिया गया। इससे सौरमंडल के कुल ग्रहों की संख्या नौ से घटकर आठ रह गई। प्लूटो को गैर-ग्रह बताने वाली परिभाषा को इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन (आईएयू) से स्वीकृति मिली थी। इसके बावजूद प्लूटो के दर्जे का मसला समाप्त नहीं हुआ। यह विज्ञानियों के बीच बहस का विषय बना रहा।   

नई परिभाषा की जरूरत : 
अमेरिका की जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक किर्बी रुन्यॉन ने कहा, प्लूटो से ग्रह का दर्जा छीन लेने का कोई मतलब नहीं है। प्लूटो की सतह पर वे सारी चीजें हो रही हैं जो किसी ग्रह पर होती हैं। उसके बारे में गैर-ग्रहीय कुछ नहीं है। शोधकर्ताओं ने प्लूटो को ग्रह के रूप में इस तरह परिभाषित करने पर जोर दिया है, जिसमें उसकी खुद की आंतरिक विशेषताओं की भूमिका हो। अभी तक उसको परिभाषित करने में उसकी कक्षा और उसके इर्दगिर्द की अन्य वस्तुओं पर ही ध्यान दिया गया है। 

ग्रह कहलाने की जरूरी शर्तें :
वैज्ञानिक उस उप-तारकीय द्रव्यमान वाले पिंड को ग्रह मानते हैं जिसमें कभी परमाणु संलयन नहीं हुआ हो। उसमें पर्याप्त गुरुत्वाकर्षण भी होना चाहिए जिससे उसका आकार मोट तौर पर गोल बना रहे। हालांकि उसका भूमध्य क्षेत्र, तीनतरफा बलों के दबाव के कारण उभरा हुआ हो सकता है। इस तीनतरफा बल में से एक तो खुद उसके गुरुत्वाकर्षण से बनता है, जबकि दूसरा उस तारे से, जिसका वह चक्कर लगाता है। तीसरा बल उसके करीबी किसी ग्रह का होता है। 

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फिर से पृथ्वी के सौरमंडल में होगा नवग्रह,प्लूटो को मिलेगा ग्रह का दर्जा

पुरानी परिभाषा की सीमा :

ग्रह की यह परिभाषा आईएयू द्वारा स्वीकृत परिभाषा से मेल नहीं खाती। उसकी परिभाषा में खगोलीय पिंड के आसपास के माहौल का कोई संदर्भ शामिल नहीं है। जबकि किसी ग्रह के लिए उसके आसपास के माहौल की बड़ी अहमियत है। प्लूटो अपनी कक्षा के निश्चित पथ पर अपने तारे का चक्कर लगाता है। उसके उपग्रह भी उसके साथ रहते हैं। उसके आसपास के इस माहौल की अनदेखी के कारण ही आईएयू की परिभाषा के तहत प्लूटो ग्रह के दर्जे में नहीं आता। इसको छोड़ दें तो आईएयू की परिभाषा के अनुसार भी प्लूटो को ग्रह मानने में कोई समस्या नहीं है। क्योंकि यह सूर्य का चक्कर लगाता है और गुरुत्वाकर्षण के कारण गोलाकार है। बेशक चक्कर लगाने के दौरान इसकी कक्षा नेप्चून की कक्षा से टकराती है। 

सौरमंडल में कितने ग्रह : 
शोधकर्ता कह चुके हैं कि आईएयू की परिभाषा के मुताबिक स्वतंत्र कक्षा को अपरिहार्य शर्त मानें तब तो पृथ्वी, मंगल, बृहष्पति और नेपच्यून से भी ग्रह का दर्जा छिन जाएगा। क्योंकि ये सभी अपनी कक्षाएं क्षुद्रग्रहों के साथ साझा करते हैं। ग्रहों की नई परिभाषा में तारों, ब्लैक होलों, क्षुद्रग्रहों और धूमकेतुओं को छोड़ दिया गया है, लेकिन इनके अलावा सौरमंडल में मौजूद अन्य सभी पिंडों को शामिल किया गया है। इससे ग्रहों की तादाद आठ से बढ़कर लगभग 110 हो जाती है। शोधकर्ताओं ने कहा, नई परिभाषा खगोल विज्ञानियों के लिए काफी उपयोगी है। 

प्लूटो : पहचान का संकट
-सौरमंडल के ज्ञात सभी ग्रहों से छोटा है, इसका व्यास पृथ्वी के व्यास का 20 फीसदी है
-इसके कुल पाचं उपग्रह हैं जिनमें शेरन, हायडरा, निक्स, कर्बेरास और सीटक्स शामिल हैं
-इसका बेहद झीना वायुमंडल मीथेन, नाइट्रोजन व कार्बन मोनोऑक्साइड से बना है
-परिक्रमा के दौरान सूर्य से दूर जाने पर इस पर मौजूद गैसें बर्फ के रूप में जमने लगती हैं
-दोबारा सूर्य के करीब आने पर जमी हुई गैसें पिघलकर वायुमंडल में फैलने लगती हैं 

तो कभी हमारे सौरमंडल का ग्रह नहीं बन पाएगा प्लूटो 

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