फोटो गैलरी

Hindi Newsआइंस्टीन की कही बात हुई सच, वैज्ञानिकों ने की ग्रैविटेशनल तरंगों की खोज

आइंस्टीन की कही बात हुई सच, वैज्ञानिकों ने की ग्रैविटेशनल तरंगों की खोज

ग्रैविटेशनल तरंगों को सुनने में सफलता हासिल करने के बाद ब्रह्मांड पर शोध के लिए वैज्ञानिकों को एक नया औजार मिल गया है। अभी तक ब्रह्मांड के बारे में खोज के लिए वैज्ञानिकों के पास सिर्फ टेलिस्कोप था।...

आइंस्टीन की कही बात हुई सच, वैज्ञानिकों ने की ग्रैविटेशनल तरंगों की खोज
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 13 Feb 2016 01:17 PM
ऐप पर पढ़ें

ग्रैविटेशनल तरंगों को सुनने में सफलता हासिल करने के बाद ब्रह्मांड पर शोध के लिए वैज्ञानिकों को एक नया औजार मिल गया है। अभी तक ब्रह्मांड के बारे में खोज के लिए वैज्ञानिकों के पास सिर्फ टेलिस्कोप था। लेकिन अब एक ऐसा यंत्र भी है, जो ब्रह्मांड की तरंगों को सुन सकता है। इससे भविष्य में ब्रह्मांड की उत्पति से लेकर अन्य ग्रहों पर मौजूद जीवन तक के बारे में खोजबीन की जा सकेगी।

इस शोध को अंजाम देने वाले अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों के दल में शामिल इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड आस्ट्रोफिजिक्स (आईयूसीएए), पुणे के वरिष्ठ वैज्ञानिक संजीत मिश्रा ने ‘हिन्दुस्तान’ को बताया कि खगोलविज्ञान के क्षेत्र में यह बड़ी उपलब्धि है। विश्व के लिए भी और भारत के लिए भी। एक बड़ी उपलब्धि चार सौ साल पहले तब हासिल हुई थी, जब गैलिलियो ने दूरबीन का आविष्कार किया था। उसके जरिये इनसान ग्रहों तक पहुंचा था। यही एक औजार अभी तक वैज्ञानिकों के पास ब्रह्मांड का रहस्य जानने के लिए था।

तीन फायदे होंगे : ग्रैविटेशनल तरंगों को सुनने की क्षमता हासिल होने से तीन दिशाओं में शोध के रास्ते खुलेंगे। एक, इससे पृथ्वी के विकास को समझने में मदद मिलेगी। दरअसल जो तरंगें दर्ज की गई हैं, वे ब्लैक होल, पिंड या तारों के टकराने से पैदा हुई हैं और वे 1.6 लाख करोड़ वर्ष से भी पहले टकराए थे। गुरुत्वीय तरंगों का अस्तित्व कभी खत्म नहीं होता। इन पर शोध से पृथ्वी की उत्पति और क्रमिक विकास का पता चलेगा।

दूसरा, विद्युत चुंबकीय तरंगों पर शोध हो सकेंगे। ऐसी कई विद्युत चुंबकीय तरंगें हैं जो अस्तित्व में हैं लेकिन उन्हें रिकॉर्ड करने के उपकरण अभी तक नहीं थे। अब ऐसे उपकरण बन सकेंगे।

तीसरा, ब्रह्मांड में कई अनजान तरंगें हैं और कई ऐसी तरंगें हैं जिनके स्त्रोत अनजान हैं। किसी को पता नहीं है कि ये तरंगें कैसी हैं, कहां से और क्यों आ रही हैं। यदि कहीं एलियन हैं तो तरंगों के जरिये उनके स्त्रोत तक पहुंचना संभव हो सकेगा।

लिगो से तरंगों को पकडम गया
भारत ने इस परियोजना में भाग लेने के लिए इंडियन ग्रेविटेशनल ऑब्जर्वेशन इंडिया (आईजीओ-इंडिया) समूह बनाया था। उसमें नौ संस्थानों के 35 वैज्ञानिकों ने हिस्सा लिया। इस पूरे मिशन में भारत की दो भूमिकाएं रही हैं। एक, जिस लेजर इंटरफेरोमीटर ग्रैविटेशनल वेव ऑबजर्वेट्री (लिगो) से तरंगों को पकड़ा गया, उसमें इस्तेमाल हुए एक वेब डिटेक्टर का निर्माण भारत में हुआ है। यह बंगलुरु स्थित रमन इंस्टीट्यूट में तैयार किया गया।

भारत में स्थापित होगा वेब डिटेक्टर
इस शोध में हिस्सेदारी से भारत को एक फायदा यह हो सकता है कि वह गुरुत्वीय तरंगों को दर्ज करने वाली विश्व स्तरीय ऑब्जर्वेट्री स्थापित कर सकेगा। केंद्र सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों ने संकेत दिए हैं कि भविष्य में गुरुत्वीय तरंगों को पकड़ने वाला एक वेब डिटेक्टर भारत में भी स्थापित होगा।

भारत के नौ संस्थान शामिल हुए
- इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड आस्ट्रोफिजिक्स, पुणे
- इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, गांधीनगर
- इंटरनेशनल सेंटर फॉर थ्यौरीकल साइंस, बंगलुरु
- इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च, त्रिवेंद्रम
- इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च, कोलकात्ता
- राजा रमन्ना सेंटर फॉर एडवांस टेक्नोलॉजी, इंदौर
- इंस्टी. ऑफ प्लाज्मा रिसर्च, गांधीनगर
- टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च, मुंबई
- चेन्नई मेथमैटिकल इंस्टीट्यूट, चेन्नई

भारत की भागीदारी वाली मेगा साइंस परियोजनाएं
- 30 मीटर टेलिस्कोप परियोजना, जो हवाई में 2030 तक स्थापित होनी है
- लार्ज हेडेन कोलाइजर (एलएचसी), जिससे हिग्स बोसान कण का पता चला
- फ्रांस में शुरू किया गया इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लीयर एक्सपेरीमेंट रिएक्टर
- राइस जीनोम परियोजना

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें