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दुश्मनों के दांत खट्टे करते रहे हैं बुलंदशहर के जवान

बुलंदशहर जिले के वीर जवान अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राण पहले से न्योछावर करते रहे हैं। देश की रक्षा, सुरक्षा व अखंडता के लिए जवानों ने सीने पर गोलियां खाईं तो दुश्मनों के छक्के भी छुड़ाए।...

दुश्मनों के दांत खट्टे करते रहे हैं बुलंदशहर के जवान
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 24 Aug 2014 10:58 PM
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बुलंदशहर जिले के वीर जवान अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राण पहले से न्योछावर करते रहे हैं। देश की रक्षा, सुरक्षा व अखंडता के लिए जवानों ने सीने पर गोलियां खाईं तो दुश्मनों के छक्के भी छुड़ाए। भारत-पाक युद्ध हो या कारगिल युद्ध। किसी भी युद्ध में ऐसा नहीं रहा जब यहां के वीर सपूतों ने दुश्मनों के दांत न खप्ते किए हों। ऐसे में सरकार को भी खुद गांव आना पड़ा और ऐसे सपूतों को जन्म देने वाली माताओं को सलाम किया।

शहीद राहुल सिंह के गांव बांहपुर से ही करीब 40 लोग फौज में हैं। 1971 में यहां के राजवीर सिंह भारत-पाक युद्ध में टैंक पर तैनात थे। युद्ध में दुश्मनों ने उनकी एक आंख फोड़ दी थी। दो वर्ष पूर्व उनकी मृत्यु हो गई। बीबीनगर का सैदपुर तो पूरा का पूरा फौजियों का गांव है। भारत के स्वाधीनता संग्राम में अपने प्राणों की बाजी लगाने वाले अनेक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी इस गांव से जन्मे हैं। अब तक सैदपुर के करीब 45 जवान विभिन्न युद्धों में वीरगति को प्राप्त हो चुके हैं। गांव की माटी ने हर परिवार से एक ऐसे पुत्र को जन्म दिया है जो देश की सुरक्षा व सेवा में लगा है। एक परिवार तो ऐसा है, जिसमें आठ विधवाएं हैं। 1968 में तत्कालीन सूचना प्रसारण मंत्री इंदिरा गांधी ने सैदपुर गांव आकर शहीद की विधवाओं को सिलाई मशीन व घरेलू उपकरण भेंट किए थे।

इनका मत
जिन मां ने ऐसे शेरों को जन्म दिया, हमारा देश उनका कर्ज नहीं चुका पाएगा।
इंदिरा गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री (1968 में सैदपुर गांव में कार्यक्रम के दौरान)

कारगिल में शहीद हुए थे पांच लाल
वर्ष 1999 में हुए कारगिल युद्ध में जनपद के पांच लालों ने मातृभूमि की खातिर अपने प्राणों की आहूति दी थी। बीबीनगर के गांव सैदपुर के नायब सूबेदार सुरेन्द्र सिंह, गुलावठी के गांव खैरपुर के लांसनायक ओमप्रकाश, खंगावली के सिपाही राज सिंह, कुरली के नायब सूबेदार ऋषिपाल सिंह और खुर्जा के गांव पिसवागढ़ी सहारनपुर के सिपाही कंछी सिंह ने दुश्मनों को ढेर करते हुए अपनी कुर्बानी दी थी। इसी युद्ध में दुश्मनों की 19 गोलियां खाने के बाद भी कारगिल फतह करने पर सरकार ने जिले के योगेंद्र यादव को परमवीर चक्र विजेता से सम्मानित किया था।

 

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