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झारखंड: जमशेदपुर को स्मार्ट सिटी बनाने में अड़चनें अनेक

लौहनगरी को स्मार्ट सिटी बनाने की घोषणा तो राज्य सरकार ने कर दी है, लेकिन इसकी राह में कई अड़चनें हैं। इन अड़चनों को दूर किए बगैर स्मार्ट सिटी का सपना शायद साकार नहीं हो पाएगा। दरअसल, जमशेदपुर के दो...

झारखंड: जमशेदपुर को स्मार्ट सिटी बनाने में अड़चनें अनेक
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 04 Feb 2015 04:49 PM
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लौहनगरी को स्मार्ट सिटी बनाने की घोषणा तो राज्य सरकार ने कर दी है, लेकिन इसकी राह में कई अड़चनें हैं। इन अड़चनों को दूर किए बगैर स्मार्ट सिटी का सपना शायद साकार नहीं हो पाएगा।

दरअसल, जमशेदपुर के दो चेहरे हैं। एक कंपनी इलाका, जिसे देखकर दिल गदगद हो जाता है। अंतर्मन से आवाज आती है, 'जमशेदपुर तो पहले से ही स्मार्ट सिटी है।' लेकिन शहर का दूसरा चेहरा गैर कंपनी इलाके का है। यहां लोगों को सड़क, बिजली, पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं मिलती हैं। यानी कंपनी और गैर कंपनी इलाके के बीच नागरिक सुविधाओं की बहुत बड़ी खाई है, जिसे पाटे बगैर जमशेदपुर को स्मार्ट सिटी बनाना मुश्किल है।

दोनों इलाकों में जमीन आसमान का अंतर
कंपनी कमांड एरिया यानि टाउनशिप इलाके में सड़क, पानी, बिजली, शिक्षा, खेलकूद समेत अन्य पर्याप्त नागरिक सुविधाएं हैं। वहीं, गैर कंपनी इलाके में रहने वाले लोग इन सुविधाओं से वंचित हैं। टाटा इलाके में शाम होते ही रोशनी जगमगाने लगती है तो दूसरे हिस्से में अंधेरा छा जाता है। स्थानीय निकायों वाले इलाके की हालत खस्ता है। न स्ट्रीट लाइट हैं और न ही चलने लायक सड़कें। कंपनी कमांड एरिया में नागरिक सुविधाएं टाटा स्टील की संस्था जुस्को (जमशेदपुर यूटिलिटी एंड सर्विस कंपनी) देती है जबकि दूसरे हिस्से में तीन स्थानीय निकायों की ओर से सुविधाएं दी जाती हैं, जिसमें जमशेदपुर अक्षेस, मानगो अक्षेस और जुगसलाई नगरपालिका हैं। इन इलाकों में सड़कों की हालत हमेशा ही खस्ता नजर आती है। बिजली सप्लाई भी हमेशा बाधित रहती है।

टाउनशिप क्षेत्र चकाचक
कंपनी इलाका लगभग 64 वर्ग किलोमीटर में फैला है। इसमें करीब तेरह हजार लाइटें हैं, जिनमें से 95 प्रतिशत लाइटें जलती हैं। 524 किलोमीटर लंबी चौड़ी सड़कें पूरे साल चमचमाती हैं। हर जगह जेब्रा क्रॉसिंग, बगान और डिवाइडर हैं, जो इनमें चार चांद लगाते हैं।

मानगो अक्षेस में समस्याओं की भरमार
नौ वर्ग किलोमीटर में फैले मानगो अक्षेस क्षेत्र में चार सौ स्ट्रीट लाइटें हैं, जिनमें से ज्यादातर फ्यूज हैं। ओल्ड पुरुलिया रोड में एक भी स्ट्रीट लाइट नहीं जलती। शाम ढलते ही अंधेरा छा जाता है। पचास सड़कें हैं, जिनका रखरखाव राज्य सरकार करती है।

जमशेदपुर अक्षेस में सड़कें जर्जर
लगभग 22 वर्ग किलोमीटर में फैले जमशेदपुर अधिसूचित क्षेत्र समिति में 450 में से दो सौ स्ट्रीट लाइटें जलती हैं। इस इलाके में लगभग 160 किलोमीटर लंबी सड़कें हैं, जिनमें से अधिकतर मरम्मत के अभाव में खस्ताहाल पड़ी हैं।

जुगसलाई में भी हालात ठीक नहीं
जुगसलाई नगरपालिका क्षेत्र 1.29 किलोमीटर एरिया में हैं, जिसमें 16.22 किलोमीटर सड़कें हैं। लगभग 285 सोडियम लाइटें, 60 ट्यूब लाइट, 30 फैंसी लाइटें और 10 हाईमास्ट लाइट लगाई गई हैं। यहां भी हालात कुछ बेहतर नहीं है।

शिक्षा के क्षेत्र में पीछे छूट रहा गैर कंपनी इलाका
शहर के कंपनी और गैर कंपनी इलाके में शिक्षा के क्षेत्र में भी घोर असमानता है।
बढ़ती आबादी के अनुरूप गैर कंपनी इलाके में शिक्षा के क्षेत्र में विस्तार नहीं हुआ। स्कूलों में अपने बच्चे को दाखिल के लिए अभिभावकों को भारी मशक्कत करनी पड़ती है। गैर कंपनी में दिल्ली पब्लिक स्कूल, ब्लू बेल्स, केरला पब्लिक स्कूल और आरवीएस एकेडमी, गोविंदपुर इलाके में सेंट जेवियर्स, विग स्कूल, टेल्को में हिलटॉप स्कूल, एलएफएस और विद्या भारती चिन्मया हैं। वहीं, कंपनी इलाके में डीएवी बिष्टूपुर, मोतीलाल नेहरू पब्लिक स्कूल, सेंट मेरीज स्कूल, जुस्को हाईस्कूल कदमा, राजेंद्र विद्यालय सहित अन्य स्कूल हैं।

45 के आसपास बड़े निजी स्कूल तथा करीब 50 से अधिक सरकारी स्कूल हैं जमशेदपुर के दोनों इलाकों में। हालांकि, लौहनगरी की आबादी की तुलना में स्कूलों की संख्या काफी कम है।

खेलकूद में नाम रोशन कर रहे गैर कंपनी इलाके के युवा
गैर कंपनी इलाके के ज्यादातर खिलाड़ी शहर का नाम रोशन कर रहे हैं। इन खिलाडि़यों को अभ्यास के लिए कंपनी इलाके में स्टेडियम और स्पोर्ट्स ग्राउंड में आना पड़ता है। राहत की बात है कि जेआरडी कॉम्पलेक्स और कीनन स्टेडियम में पर्याप्त संसाधन मौजूद हैं। इन खेल परिसरों में सरायकेला और चाईबासा तक के खिलाड़ी अभ्यास करने आते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने वाले खिलाड़ी दीपक मंडल फुटबॉल, झानो हांसदा तीरंदाजी, रिमिल बिरुली तीरंदाजी, भाग्यवती चानू तीरंदाजी, लक्ष्मीरानी तीरंदाजी, अभिषेक दास शतरंज, मिसेल लकड़ा मुक्केबाजी, देवानंद वास्के कराटे, सिद्धार्थ मुखी, दीपक कुमार सिंह तैराक, सुशील फुटबॉल गैर टाटा इलाके के ही हैं।

गरीबों के लिए स्वास्थ्य सेवाएं दूर की कौड़ी
जमशेदपुर में आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को प्राथमिक चिकित्सा के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता है। गरीबों के लिए एकमात्र महात्मा गांधी मेमोरियल अस्पताल है। इस एकमात्र सरकारी अस्पताल में मरहम पट्टी का खर्च भी गरीबों को ही उठाना पड़ता है। उधर, टाटा इलाके में रहने वाले संपन्न लोगों के लिए टाटा मेन अस्पताल (टीएमएच) के अलावा 72 छोटे और मझोले क्लीनिक और नर्सिंग होम हैं। टाटा मोटर्स और टिनप्लेट कंपनी के भी अस्पताल हैं। निजी अस्पतालों में बीपीएल कार्डधारी मरीजों के कोटे हैं, पर बीपीएल कार्ड नहीं होने के चलते वे इन अस्पतालों में इलाज नहीं करा पाते हैं।

07 सौ से ज्यादा मरीज रोजाना आते हैं, एमजीएम अस्पताल की ओपीडी में रोजाना औसतन। वहीं, टाटा मेन अस्पताल की ओपीडी में हर दिन 450 से 500 मरीज रोजाना आते हैं औसतन।

वहां बिजली जाती नहीं, यहां आती नहीं
कंपनी इलाके में जहां 24 घंटे बिजली रहती है, जबकि गैर कंपनी इलाके में छह-सात घंटे ही बिजली मिल पाती है। कंपनी इलाके में बिजली सप्लाई जुस्को करती है, जबकि गैर कंपनी इलाके में झारखंड राज्य विद्युत बोर्ड। गैर कंपनी इलाके में बिजली का ट्रांसफार्मर खराब होने पर उसे ठीक होने में कई दिन लग जाते हैं, जबकि टाटा इलाके में जिस दिन ट्रांसफार्मर खराब होता हैं, उसी दिन ट्रांसफार्मर का रिप्लेसमेंट संभव हो जाता है। गैर कंपनी इलाके में जुगसलाई फीडर को आठ की जगह चार मेगावाट, मानगो को 16 के बजाय 10 मेगावाट, गोविंदपुर को 12 के बजाय नौ मेगावाट, करनडीह को 18 के बजाय 12 मेगावाट ही बिजली मिल पाती है।

60 मेगावाट बिजली की जरूरत है गैर कंपनी इलाके को, लेकिन उतनी भी नहीं मिल पाती है। वहीं, कंपनी इलाके में 547 मेगावाट बिजली की खपत होती है और इसकी आपूर्ति निर्बाध होती है।

पानी के लिए तरसते हैं गैर कंपनी इलाके
जमशेदपुर के लोग दो तरह की जिंदगी जीते हैं। कंपनी इलाके में जुस्को पानी सप्लाई करती है तो गैर कंपनी इलाके में पेयजल स्वच्छता विभाग पानी सप्लाई करता है। कंपनी इलाके में 24 घंटे फिल्टर पानी की सप्लाई होती है और गैर कंपनी इलाके के लोगों को पानी छानकर पीना पड़ता है। पानी के लिए लंबी लाइन लगानी पड़ती है। कंपनी इलाके की आबादी लगभग आठ लाख 27 हजार के लिए प्रत्येक दिन एक लाख 76 हजार मिलियन लीटर प्रतिदिन पानी सप्लाई की जाती है जबकि मानगो में पौने दो लाख आबादी को हर मौसम में पानी के लिए अलसुबह से ही जद्दोजहद करनी पड़ती है।

01 करोड़ गैलन पानी की जरूरत है मानगो इलाके को, लेकिन 12 लाख गैलन ही मिलता है। वहीं, जुगसलाई के 46 हजार लोगों को हर दिन तीन से चार लाख गैलन ही पानी मिलता है, जबकि जरूरत 50 लाख गैलन की है।

कहीं सरपट दौड़ रहीं गाडि़यां, कहीं कदमताल
कंपनी इलाके में सरपट गाड़ियां दौड़ती हैं, जबकि गैर कंपनी इलाके में जिंदगी कदमताल करती है। गैर कंपनी इलाके में ऑटो रिक्शा का बोलबाला है तो कंपनी इलाके में टूव्हीलर का बोलबाला है। श्रमिकों का शहर होने के चलते ज्यादातर कर्मचारी मोटरसाइकिल और साइकिल रखना सहज महसूस करते हैं। वहीं, गैर कंपनी इलाके के लोग टू व्हीलर रखने में सक्षम नहीं हैं। उन्हें पैदल चलना पड़ता है। ऑटो रिक्शा का सहारा लेना पड़ता है। राष्ट्रीय स्तर पर टू व्हीलर के घनत्व में पुणे के बाद दूसरा स्थान जमशेदपुर का ही है। सिटी बसों और मिनी बसों की भी सुविधा है, पर शाम सात बजे के बाद शहर के बाहर जाने वालों को बस नहीं मिल पाती है। 

07 लाख से अधिक दोपहिया चलते हैं जमशेदपुर में। मोटरसाइकिलें लगभग 4,28,465, ऑटो रिक्शा लगभग 14 हजार, सिटी बस 22 और मिनी बसें 40 हैं।

बढ़ानी होगी कनेक्टिविटी
शहर में एयरपोर्ट की सुविधा नहीं है। लोगों को हवाई मार्ग का सफर करने के लिए तीन सौ किमी दूर कोलकाता और सवा सौ किलोमीटर दूर रांची एयरपोर्ट जाना पड़ता है। चाकुलिया या गम्हरिया में अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट बनाने की योजना है। इसके अलावा हर बड़े शहर को जोड़ने के लिए तेज रफ्तारवाली ट्रेन सेवा शुरू करनी होगी।

आदित्यपुर का क्या होगा?
जमशेदपुर को औद्योगिक शहर बनाने की कवायद तो शुरू कर दी गई, लेकिन सवाल यह है कि जमशेदपुर से सटे आदित्यपुर का क्या होगा? यह शहर भी तेजी से विकसित हो रहा है, लेकिन सुविधाओं के मामले में इसकी हालत जमशेदपुर की गैर कंपनी इलाके जैसी ही है। जवाहरलाल नेहरू रिन्यूअल अर्बन मिशन के तहत फंड की सुविधाएं लेने के लिए आदित्यपुर को जोड़ दिया गया, लेकिन स्मार्ट सिटी की घोषणा में आदित्यपुर को शामिल नहीं किया गया। आदित्यपुर में लगभग पंद्रह सौ एंसीलरियां हैं, जिन पर जमशेदपुर के बड़े कल-कारखाने निर्भर हैं।

स्मार्ट सिटी बनाने के लिए पर्याप्त नागरिक सुविधाओं की जरूरत पड़ेगी। गैर कंपनी इलाके को विकसित कर एकरूपता लानी होगी। सेटेलाइट टाउनशिप विकसित करने के लिए जमीन उपलब्ध करानी होगी। औद्योगिक और गैर औद्योगिक यातायात सिस्टम को मिलाने के लिए फ्लाईओवर, ईस्टर्न और वेस्टर्न कॉरिडोर जैसी योजनाएं लागू करनी होंगी।
-सुमोना बसाक, निदेशक (आर्किटेक्ट एवं टाउन प्लानर), छाया आर्किटेक्ट एंड कंसलटेंट

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