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कोयला अध्यादेश विवाद: कोर्ट ने केन्द्र का अनुरोध ठुकराया

केन्द्र सरकार को मंगलवार को उस समय झटका लगा जब उच्चतम न्यायालय ने निजी कंपनियों द्वारा विवादास्पद कोयला अध्यादेश के चुनिन्दा प्रावधानों की वैधानिकता को विभिन्न उच्च न्यायालयों में चुनौती देने से...

कोयला अध्यादेश विवाद: कोर्ट ने केन्द्र का अनुरोध ठुकराया
एजेंसीTue, 03 Feb 2015 08:25 PM
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केन्द्र सरकार को मंगलवार को उस समय झटका लगा जब उच्चतम न्यायालय ने निजी कंपनियों द्वारा विवादास्पद कोयला अध्यादेश के चुनिन्दा प्रावधानों की वैधानिकता को विभिन्न उच्च न्यायालयों में चुनौती देने से रोकने का उसका अनुरोध ठुकरा दिया।

प्रधान न्यायाधीश एच एल दत्तू की अध्यक्षता वाली खंडपीड ने इस अध्यादेश के खिलाफ विभिन्न उच्च न्यायालयों में निजी कंपनियों की पांच याचिकाओं को शीर्ष अदालत में स्थानांतरित करने का अनुरोध ठुकरा दिया। न्यायालय ने इसके साथ ही मध्य प्रदेश में कोयला खदानो के आबंटन के लिए नीलामी प्रक्रिया में बीएलए पावर लि को हिस्सा लेने की अनुमति देने के मप्र उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाने से भी इंकार कर दिया।

न्यायाधीशों ने कोयला मंत्रालय की याचिका खारिज करते हुए कहा कि हम इस मामले के गुण-दोष पर कुछ नहीं कह रहे हैं। यह बहस कहा विषय है (क्या बीएलए पावर पहले कोयला खदान की आबंटी बीएलए इंडस्ट्रीज से संबंधित है) हम अभी अंतरिम आदेश के चरण में हैं। यही नहीं, आपने (केन्द्र) उच्च न्यायालय में कोई जवाबी हलफनामा दायर नहीं किया।

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने 29 जनवरी को बीएलए पावर लि को राज्य के महापाणी कोयला खदान क्षेत्र में दो खदानों गोटीतोरिया (पूर्व) और गोटीतोरिया (पश्चिम) की नीलामी प्रक्रिया में बीएलए पावर लि को हिस्सा लेने की अनुमति प्रदान कर दी थी।

बीएलए पावर लि की सहयोगी कंपनी बीएलए इण्डस्ट्रीज को जून 1996 में मध्य प्रदेश में ये खदाने आबंटित की गई थीं और उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद इन्हें रद्द कर दिया गया था। इस मामले की सुनवाई शुरू होते ही कोयला मंत्रालय की ओर से अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि मेसर्स जिंदल पावर एंड स्टील, मेसर्स बीएलए पावर और मेसर्स सोवा इस्पात लि ने नयी दिल्ली, मध्य प्रदेश और कलकत्ता उच्च न्यायालय में पांच अलग अलग याचिकायें दायर की हैं।

रोहतगी ने इन सभी याचिकाओं को शीर्ष अदालत में स्थानांतरित करने का अनुरोध करते हुए कहा कि इन लंबित याचिकाओं मे एक समान कानूनी सवाल निहित है और इसमें उच्चतम न्यायालय के 25 अगस्त, 2014 के फैसले तथा 24 सितंबर, 2014 के आदेश के अनुरूप जारी कोयला खदान (विशेष प्रावधान) अध्यादेश, 2014 और कोयला खदानों की नीलामी के स्टैण्डर्ड टेन्डर दस्तावेज के प्रावधानों की वैधानिकता को चुनौती दी गयी है। लेकिन न्यायालय ने करीब एक घंटे की सुनवाई के बाद केन्द्र को किसी प्रकार की राहत देने से इंकार कर दिया। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और वकील शैली भसीन ने केन्द्र के तर्क विरोध किया और दलील दी कि कंपनी के शेयर पैटर्न के बारे में गलत तरीके से तथ्यों को पेश किया गया है।

इससे पहले, न्यायालय ने 1993 से विभिन्न कंपनियों को आबंटित की गई 218 कोयला खदानों में से 214 के आबंटन को गंभीर रूप से त्रुटिपूर्ण बताते हुए रद्द कर दिया था। न्यायालय ने केन्द्र सरकार को इन खदानों का कामकाज अपने हाथ में लेने की अनुमति दे दी थी।

बीएलए पावर लि को नीलामी प्रक्रिया में हिस्सा लेने की अनुमति देने संबंधी मप्र उच्च न्यायालय के आदेश पर सवाल उठाते हुए रोहतगी ने कहा कि यह कंपनी इसकी पात्र नहीं है क्योंकि उसकी सहयोगी बीएलए इण्डस्ट्रीज लि को पहले ये खदान आबंटित हुए थे जिन्हें शीर्ष अदालत के फैसले के बाद रदद कर दिया गया और इसे जुर्माना भी अदा नहीं किया।

उन्होंने कहा कि इस कंपनी को 295 रूपए मीट्रिक टन की दर से अतिरिक्त लेवी का भुगतान करना था। उन्होंने कहा कि दोनों कंपनियों के प्रवर्तक भी एक समान है। उन्होंने कहा क बीएलए पावर लि का तर्क था कि वह पहले आबंटी से संबद्ध नहीं है ओर इसलिए जुर्माना भुगतान करने के लिये बाध्य नहीं है। रोहतगी ने कहा कि शीर्ष अदालत के आदेश का हनन करने की इजाजत सिर्फ इसलिए नहीं दी जा सकती कि उन्होंने एक सहयोगी कंपनी की स्थापना कर ली है और जुर्माना अदा किये बगैर ही वे नीलामी में हिस्सा लेना चाहते हैं।

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