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कला और करियर का संगम: पेपरमेशी

पेपरमेशी बहुत पुरानी कला है और व्यवसाय का बेहतर जरिया भी। आप भी स्वरोजगार के रूप में इसे अपना सकते हैं। कागजों को गला कर लुगदी तैयार करना पेपरमेशी कहलाता है। दशहरे जैसे मुख्य त्योहारों के अवसर पर...

कला और करियर का संगम: पेपरमेशी
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 08 Jan 2013 12:26 PM
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पेपरमेशी बहुत पुरानी कला है और व्यवसाय का बेहतर जरिया भी। आप भी स्वरोजगार के रूप में इसे अपना सकते हैं।

कागजों को गला कर लुगदी तैयार करना पेपरमेशी कहलाता है। दशहरे जैसे मुख्य त्योहारों के अवसर पर रावण और मेघनाथ के मुखौटे व दक्षिण भारत में कथकली नर्तक व नर्तकी के मुख भी पेपरमेशी से तैयार किए जाते हैं। उत्तर भारत में खडिया मिला कर कटोरदान व टोकरियां बनाई जाती हैं। भारत में पेपरमेशी का काम तीन तरह से किया जाता है-

कश्मीरी विधि
कश्मीरी पेपरमेशी की सुंदरता उस पर की गई चित्रकारी होती है। इस चित्रकारी को बनाने के लिए ट्रेम्परा रंग, रंग घोलने के लिए कटोरियां, हेयर ब्रश, स्टोव, सोने व चांदी के वर्क की आवश्यकता होती है। कश्मीरी पेपरमेशी के अंतर्गत सबसे सुंदर आकार का लैम्प 72 घंटे तक सुखाया जाता है। उस पर ब्रश से घोल व सरेस लगाया जाता है, उसके बाद रगड़ कर उसे चिकना किया जाता है। इस तरह तैयार हो जाता है लैम्प स्टैंड।

यूरोपीय विधि
यूरोपीय पेपरमेशी फ्रांस से शुरू हुई थी। इसके अंतर्गत सुराही पर जीरो नंबर के रेगमाल से रगडमई करके चित्रकारी की जाती है। इसमें सरेस के घोल, व्हाइट जिंक, टर्की, अम्बर, लैम्प ब्लेक शिंगरफ आदि रंग अलग-अलग प्यालियों में बना लीजिए। अब सुराही पर अपनी इच्छानुसार रंग चढ़ाइए और सूखने के लिए रख दीजिए। जब सुराही सूख जाए, तब उसे रेगमाल से रगडिए। उसके बाद रंग का दूसरा कोट कीजिए, फिर सूखने दीजिए। ऐसा सात बार करें। इसी तरह गुब्बारों के ऊपर पेपरमेशी करने के लिए टिशु पेपर अथवा अखबार का प्रयोग किया जाता है। इसमें गुब्बारे को फुला कर उस पर पेस्ट के द्वारा छोटे-छोटे कागज के टुकड़े की आठ परतें चढ़ानी चाहिए। जब गुब्बारे पर परतें सूख जाएं तो गुब्बारे को पिन से फोड़ कर बाहर निकाल लेना चाहिए। गुब्बारे का यह मॉडल, फिश मुखौटे, जानवर, पक्षी तथा गुडिया आदि बनने के काम में लिया जा सकता है।

राजस्थानी विधि
राजस्थानी पेपरमेशी खूब प्रचलित है। इसी कारण मेलों व त्योहारों पर इसकी मांग बढ़ जाती है। इस पेपरमेशी के अन्तर्गत पानी के रंगों का खूब प्रयोग किया जाता है। इसमें लाल, नीला, पीला, गुलाबी, बैंगनी, हरा, कत्थई, नारंगी, स्लेटी, सफेद तथा काला रंग प्रयोग में लाया जाता है। राजस्थानी पेपरमेशी में ज्यादातर खिलौने ही बनाये जाते हैं। सभी तरह की पेपरमेशी में कागज की लुगदी समान रूप से बनाई जाती है।

उद्योग के लिए जरूरी सामग्री
टब, कागज, जाली, तार, प्लास्टर ऑफ पेरिस, चावलों की लेई, नीला थोथा, चाकू, कैंची, मूसल, ऊखल व विभिन्न तरह के ब्रश पेपरमेशी उद्योग के लिए जरूरी हैं।

लुगदी कैसे तैयार करें
टब में पानी भर कर, कागज के छोटे-छोटे टुकड़े कर उन्हें अच्छी तरह भिगो देना चाहिए। गौरतलब है कि पानी कागजों के ऊपर रहना चाहिए। हफ्ते भर बाद पानी को बदल देना चाहिए। दो हफ्तों बाद कागज के टुकड़े को टब से निकाल कर देखना चाहिए। यदि टूटे हुए कागज का रेशा छोटा निकले तो समझ लेना चाहिए कि कागज लुगदी के लिए तैयार हो गया है। उसके बाद ऊखल में गलाए हुए कागज की लुगदी को कूटना चाहिए। नीला थोथा व गोंद मिला कर उसे तैयार कर देना चाहिए।

बनाने की विधि
जिस वस्तु का आप मॉडल बनाना चाहते हैं ,उसका चित्र या खिलौना सामने मेज पर रखिए। वस्तु की लंबाई-चौड़ाई के हिसाब से आकृति तैयार कर लीजिए। अभ्यास करते-करते आप अच्छी आकृति बनाना सीख जाएंगे। मॉडल बनाते समय चिकनी मिट्टी में हवा के बुलबुले नहीं होने चाहिए। साथ ही तैयार आकृति छायादार स्थान पर सुखानी चाहिए। सूखाने के बाद धूप में रखनी चाहिए।

पूंजी
पेपरमेशी से चित्रकारी या मुखौटे बनाने के लिए इसे स्वरोजगार के रूप में शुरू किया जा सकता है। इस व्यवसाय को 5 से 10 हजार रुपए में शुरू किया जा सकता है। अगर व्यवसाय करने वाला पूंजी भी नहीं जुटा पाता तो सरकार द्वारा कम ब्याज पर ऋण मुहैया हो जाता है।

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