फोटो गैलरी

Hindi Newsक्या आपको पता है कि 'पीरियड ड्यूरेशन' में 42.8 फीसदी छात्राएं नहीं जाती स्कूल

क्या आपको पता है कि 'पीरियड ड्यूरेशन' में 42.8 फीसदी छात्राएं नहीं जाती स्कूल

किशोरी शक्ति योजना लागू होने के बाद भी जिले में सभी किशोरियों तक सरकारी सैनेटरी नेपकिन नहीं पहुंच पा रहा। शायद यही बड़ा कारण है कि माहवारी के दौरान 42.8 प्रतिशत किशोरियां स्कूल से छुट्टी कर लेती हैं।...

क्या आपको पता है कि 'पीरियड ड्यूरेशन' में 42.8 फीसदी छात्राएं नहीं जाती स्कूल
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 15 Sep 2016 09:40 AM
ऐप पर पढ़ें

किशोरी शक्ति योजना लागू होने के बाद भी जिले में सभी किशोरियों तक सरकारी सैनेटरी नेपकिन नहीं पहुंच पा रहा। शायद यही बड़ा कारण है कि माहवारी के दौरान 42.8 प्रतिशत किशोरियां स्कूल से छुट्टी कर लेती हैं। एसआरएमएस मेडिकल कॉलेज की रिसर्च में यह बात सामने आई है। 

कॉलेज के कम्युनिटी मेडिसिन डिपार्टमेंट की प्रियंका कुमार, एसबी गुप्ता, इम्तियाज़ दानिश और निपुण अग्रवाल ने एक वर्ष तक माहवारी के सन्दर्भ में किशोरियों पर शोध किया। इस दौरान कक्षा छह से 10 तक की ऐसी छात्राओं से बात की गई जिनकी उम्र 10 से 19 वर्ष के बीच थी। शोध को इंटरनेशनल जर्नल ऑफ करेंट माइक्रोबायोलॉजी एंड एप्लाइड साइंसेज ने स्थान दिया है। 

शोध में 188 ग्रामीण और 176 शहरी छात्राओं को शामिल किया गया। बातचीत के बाद पाया गया कि 44.7 प्रतिशत ग्रामीण और 40.9 फीसदी शहरी छात्राएं माहवारी के दौरान स्कूल नहीं जाती हैं। स्कूल नहीं जाने वाली छात्राओं का कुल प्रतिशत 42.8 है। 

माहवारी में स्कूल नहीं जाने का कारण
-स्कूल में निजता की कमी-18.6%
-सेनेटरी पैड डिस्पोजल की सही व्यवस्था न होना-25.6%
-सफाई के लिए पानी नहीं होना-7%
-माहवारी के दौरान तेज दर्द- 15.4 %
-कपड़ों पर धब्बे दिखने का डर- 36.5%

महंगाई ने दूर किया सैनेटरी पैड
शोध से पता चला कि 42.6 फीसदी ग्रामीण और 43.9 फीसदी शहरी लड़कियां सैनेटरी पैड महंगा होने के कारण नहीं खरीदती। ऐसे में अगर इनको सस्ता या फ्री सैनेटरी पैड मिले तो स्कूल में उपस्थित काफी बढ़ जाएगी। 

जरा इन पर गौर कीजिए 
डिजिटल क्रांति के इस दौर में भी 73.9 प्रतिशत ग्रामीण और 66.7 प्रतिशत किशोरी ऐसी हैं जो माहवारी के दौरान धार्मिक कार्यों से दूर रहती हैं। 37.7 फीसदी लड़कियों को इस दौरान रसोई में प्रवेश नहीं करने दिया जाता। वहीं, 35.8 फीसदी लड़कियों को खेलने-कूदने की इजाजत नहीं होती। 22.7 फीसदी लड़कियां ऐसी भी हैं जिनको परिवार के अन्य सदस्यों से दूर सोने को कहा जाता है। 

ज्यादा से ज्यादा जानकारी की जरूरत
शोध के निष्कर्ष के तौर पर प्रियंका कुमार ने लिखा कि किशोरियों को माहवारी के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी देने की जरूरत है। इसके साथ स्कूल आदि पर उनके लिए सुगम स्थितियां तैयार की जानी चाहिए। 

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें