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वाउ...सैर-सपाटे का महिला क्लब!

हमउम्र महिलाओं के साथ साउथ अफ्रीका के घने जंगलों में सफेद शेरों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने का मौका मिल जाए तो आपका दिल यही कहेगा न...वाउ! काश यह सच हो सकता! तो अब आप काश शब्द से पीछा छुड़ाएं,...

वाउ...सैर-सपाटे का महिला क्लब!
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 13 Sep 2016 04:53 PM
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हमउम्र महिलाओं के साथ साउथ अफ्रीका के घने जंगलों में सफेद शेरों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने का मौका मिल जाए तो आपका दिल यही कहेगा न...वाउ! काश यह सच हो सकता! तो अब आप काश शब्द से पीछा छुड़ाएं, क्योंकि किसी सपने जैसी लगने वाली ऐसी यात्राएं अब बिल्कुल संभव हो गई है। आप चाहे गृहिणी हों या कामकाजी महिला, अगर घूमने के ऐसे सपने आपके मन में बसे हुए हैं तो अब आप उन्हें साकार कर सकती हैं। इसे संभव बनाया है सुमित्रा सेनापति की संस्था वाउ ने।
पर्यटन पत्रकारिता करते हुए दुनिया भर के अनेक देशों में घूम चुकी सुमित्रा सेनापति का सपना भी तो यही था कि जिस तरह वह घूम पाती हैं, खुद को हमेशा एक विशेष सुरक्षा चक्र में रखने वाली भारतीय महिलाएं भी सुरक्षित रूप से दुनिया भर में घूम पाएं। तभी तो उन्होंने 2005 में 5 लाख रुपए से इस क्लब को दिल्ली में शुरू किया था। आखिर पर्यटन पत्रकारिता करते-करते उन्हें महिलाओं को दुनियाभर में घुमाने की कैसे सूझी? वे कहती हैं, ‘बात सन 2003 की है। मैं न्यूजीलैंड की यात्रा पर गई थी। वहां मैं एक कैफे में बैठी थी। तभी कुछ महिला पर्यटकों का समूह वहां आया। बातचीत से पता चला कि वे सभी महिलाएं एक लंदन ट्रैवल क्लब के माध्यम से आई हैं। मेरे मन में आया कि क्यों न एक ट्रैवल क्लब उन भारतीय महिलाओं के लिए बनाया जाए, जो जानकारी के अभाव और असुरक्षा के कारण कहीं घूमने नहीं निकल पातीं। मैंने व्यवस्थित रूप से एक योजना बनाई कि हमउम्र महिलाओं के समूह को देश-विदेश में घुमाया जाए। इस काम में चुनौती भी कम नहीं थी। भारतीय समाज में महिलाओं को लंबी यात्रा पर अकेले जाने की इजाजत नहीं थी। मैंने सबसे पहले उन्हें सुरक्षित यात्रा कराने का लक्ष्य बनाया।

लद्दाख से शुरू हुआ सफर
पहली ट्रिप पर सोचा कि दो महिलाएं भी मिल जाएं तो उन्हें लद्दाख की सैर पर ले जाऊंगी, लेकिन 17 महिलाओं का समूह तैयार हो गया। उस लद्दाख यात्रा से महिलाएं काफी संतुष्ट हुईं। इसके बाद तो टूर का सिलसिला ही चल पड़ा। अगले साल यानी 2006 में 60 महिलाओं को सैर कराया और 2008 में ही यह संख्या 200 से अधिक हो गई। मुझे सफलता मिलने लगी थी और वाउ को अच्छी पहचान। हमने महिलाओं को साउथ अफ्रीका से लेकर इजिप्ट, ग्रीस, इस्तानबुल, श्रीलंका, चीन आदि तमाम देशों की सैर कराई। आज तो हम साल में आमतौर पर 35 समूहों को यात्रा पर ले जाते हैं, जिनमें से लगभग 25 विदेशी यात्रा होती है और 10 घरेलू। एक समूह में 15 से 20 महिलाएं होती हैं। सुमित्रा बताती हैं कि हमारा उद्देश्य अधिक से अधिक महिलाओं को लाभ पहुंचाना था, इस 18 से 80 वर्ष के बीच महिलाओं को यात्रा पर ले जाने की योजना बनाई। ’
हजारों महिलाओं के सैर के सपने को साकार करा चुकी सुमित्रा महिलाओं के सशक्तिकरण के पक्ष में हैं। वे मानती हैं कि महिलाएं मजबूत होंगी तभी सुरक्षित होंगी। वाउ ने अब बेंगलुरू और मुंबई में दो अन्य शाखाएं भी खोल ली है। अब एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) शुरू करने की योजना बना रही सुमित्रा मानती हैं कि उच्च मध्यम वर्ग की अकेली महिलाओं को तरह-तरह की तकलीफें सहनी पड़ती हैं जिनकी सहायता के लिए वाउ एक एनजीओ की जरूरत महसूस करता है। मेहनत के बूते एक नामचीन पर्यटन पत्रकार से वाउ क्लब की चर्चित उद्यमी बन चुकी सुमित्रा आज भी हफ्ते में लगभग 60 घंटे काम करती ही हैं।

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