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पैरों में अचानक आती है सूजन तो बदलें कुछ आदतें

अचानक एक पैरों में सूजन, लाली और गर्माहट तथा चलने-फिरने पर पैर में खिंचाव जैसे लक्षण डीप वेन थ्रोम्बोसिस (डी.वी.टी.) यानी टांगों की नसों में खून के कतरों का जमाव अत्यंत गंभीर स्थिति के सूचक हो सकते...

पैरों में अचानक आती है सूजन तो बदलें कुछ आदतें
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 17 Mar 2017 04:28 PM
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अचानक एक पैरों में सूजन, लाली और गर्माहट तथा चलने-फिरने पर पैर में खिंचाव जैसे लक्षण डीप वेन थ्रोम्बोसिस (डी.वी.टी.) यानी टांगों की नसों में खून के कतरों का जमाव अत्यंत गंभीर स्थिति के सूचक हो सकते हैं। अक्सर लोग अज्ञानता के कारण इसे नस में खिंचाव, चोट, थकान, सामान्य संक्रमण या फाइलेरिया मान बैठते हैं और उसका इलाज कराने लगते हैं। सामान्य डॉक्टर भी इसे फाइलेरिया, सियाटिका अथवा नस उखड़ना मान बैठते हैं। फाइलेरिया के इलाज के नाम पर कई सप्ताह तक मरीज को दवाएं देते हैं या फिर हड्डी विशेषज्ञ नस उखड़ने के इलाज के नाम पर रोगी के पैर पर वजन लटका देते हैं। इलाज के इन गलत तौर-तरीकों से डीप वेन थ्रोम्बोसिस की बीमारी गंभीर हो जाती है और एक समय रोगी की जान खतरे में पड़ जाती है।

महिलाएं पैरों में सूजन यानी डीप वेन थ्रोम्बोसिस की शिकार ज्यादा होती हैं। मौजूदा समय में व्यायाम नहीं करने की प्रवृत्ति और महिलाओं में गर्भनिरोधक दवाओं एवं हारमोन के बढ़ते सेवन के कारण डीप वेन थ्रोम्बोसिस का प्रकोप बढ़ रहा है। इसके अलावा फैशन के प्रभाव में ऊंची एड़ी यानी हाई हील वाली सैंडिलों के प्रचलन से भी यह बीमारी होने का खतरा बढ़ता है।

क्या हैं कारण
खास तौर पर पैरों की कसरत नहीं करने, किसी बीमारी या ऑप्रेशन के कारण लंबे समय तक बिस्तर पर पड़े रहने और डॉक्टर की सलाह के बगैर अधिक दिनों तक हारमोन अथवा गर्भ निरोधक दवाओं के सेवन करने पर डीप वेन थ्रोम्बोसिस का खतरा अधिक रहता है। इसके अलावा फेफड़े, पैंक्रियाज या आंतों का कैंसर होने और किसी खराबी या बीमारी के कारण खून के जरूरत से ज्यादा गाढ़ा हो जाने पर भी यह रोग हो सकता है। गर्भवती महिलाओं में प्रसव के तुरंत बाद यह रोग हो सकता है। इसके अलावा लकवे की मरीज महिला को यह बीमारी होने की आशंका अधिक रहती है, क्योंकि ऐसे मरीज व्यायाम नहीं कर पाते तथा उनके रक्त में गाढ़े होने की प्रवृत्ति अधिक रहती है।

कैसे होती है यह बीमारी
डीप वेन थ्रोम्बोसिस को समझने के लिए हाथ या पैर में रक्त संचार को समझना आवश्यक है। पैर या हाथों की शिराएं यानी वेन्स ऑक्सीजन रहित गंदे खून को इकट्ठा करके हृदय की ओर ले जाती है। वहां से अशुद्ध रक्त शुद्ध होने के लिए फेफड़े में जाता है। कई बार इन शिराओं में खून के कतरे जमा होकर रक्त के बहाव को रोक देते हैं। इससे शिराएं जाम हो जाती हैं, जिसके फलस्वरूप पैर या हाथ में सूजन होने लगती है। यह डीप वेन थ्रोम्बोसिस की शुरुआत है और इसका समय पर समुचित इलाज न होने पर पैर या हाथ काटने या मरीज की जान जाने की नौबत आ सकती है। इस बीमारी में पैर या हाथ में गंदे रक्त के साथ-साथ शरीर का पानी और इलेक्ट्रोलाइट्स एवं खनिज जैसे जरूरी अवयव भी जमा हो जाते हैं। इससे शरीर की अंदरूनी क्रियाएं गंभीर रूप से बाधित हो जाती हैं। इससे फ्लेग्मेसिया सेरूलिया डोलेन्स (पी.सी.डी.) नामक जानलेवा स्थिति पैदा हो सकती है। पैर तथा हाथ की शिराओं में गंदे रक्त, पानी एवं अन्य जरूरी अवयवों के जमा हो जाने से शिराओं में ऊतक दबाव बहुत अधिक बढ़ जाता है। इससे शुद्ध रक्त ले जाने वाली रक्त धमनियां बाधित हो जाती हैं और धमनियों में भी रक्त का बहाव रुक जाता है। इससे पैर अथवा हाथ काले पड़ने लगते हैं और गैंगरीन नामक भयंकर अवस्था की शुरुआत हो जाती है। गैंगरीन हो जाने पर टांग या पैर काटने के अलावा और कोई उपाय नहीं बचता।

क्या है इलाज
पैर या हाथ में किसी भी तरह की तकलीफ होने अथवा हल्का सा भी डी.वी.टी. का संदेह होने पर सामान्य डॉक्टर को दिखाने की बजाय तुरंत किसी वैस्कुलर या कार्डियोवैस्कुलर सर्जन को दिखाना चाहिए, ताकि शुरुआती अवस्था में ही इस बीमारी पर काबू पा लिया जाए। ऐसे मरीजों का इलाज अत्याधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित हॉस्पिटल में ही कराना चाहिए, जहां डॉप्लर जांच, ईको कार्डियोग्राफी, एंजियोग्राफी तथा पल्मोनरी इम्बोलिज्म का पता लगाने के लिए फेफड़े और फेफड़े की नली की विशेष जांच (वेंटिलेशन परफ्यूजन लंग स्कैन) व मल्टी सी.टी. एंजियो आदि की सुविधा हो।

इससे कैसे बचा जाए
इस बीमारी की रोकथाम के लिए नियमित व्यायाम करना चाहिए। रोजाना तीन से चार किलोमीटर तक सैर करने तथा पैरों की कसरत करने से पैरों की शिराओं में ऑक्सीजन रहित गंदे रक्त को रुकने का मौका नहीं मिलता और मांसपेशियों का पम्प अच्छी तरह काम करता है। लंबे समय तक बेड रेस्ट में रहने वाले लोगों, कैंसर तथा लकवा के मरीजों, नवजात शिशुओं की माताओं तथा गर्भ निरोधक गोलियों एवं हारमोन का सेवन करने वाली महिलाओं को विशेष रूप से सावधान रहना चाहिए।

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