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व्हीलचेयर पर हूं, पर अपने पैरों पर खड़ी हूं : आभा खेत्रपाल

अभी जीवन को ठीक से जाना भी नहीं था कि मासूम आभा का जीवन पोलियो का शिकार हो गया। पोलियो से शरीर का अंग अक्षम हो सकता है, लकवा मार सकता है या कभी-कभी पीड़ित व्यक्ति की जान भी जा सकती है। आभा का जीवन तो...

 व्हीलचेयर पर हूं, पर अपने पैरों पर खड़ी हूं : आभा खेत्रपाल
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 01 Jan 1970 05:30 AM
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अभी जीवन को ठीक से जाना भी नहीं था कि मासूम आभा का जीवन पोलियो का शिकार हो गया। पोलियो से शरीर का अंग अक्षम हो सकता है, लकवा मार सकता है या कभी-कभी पीड़ित व्यक्ति की जान भी जा सकती है। आभा का जीवन तो बच गया, लेकिन अक्षमता के साथ। खेत्रपाल परिवार की अकेली संतान होने के कारण पूरे परिवार की अतिरिक्त देखरेख और प्यार मिला। आरंभिक पढ़ाई उनकी घर पर ही हुई। जीवन के फिलहाल दो ही लक्ष्य थे एक पढ़ाई दूसरा दवाई। समझ आते-आते आभा अच्छे से जान गई थीं कि इन दोनों के बिना उनका जीवन बेकार है। जिंदगी व्हील चेयर पर सिमट चुकी थी। आभा कम उम्र से ही अपनी अक्षमता को स्वीकार कर जीना सीख चुकी थीं। आभा कहती हैं, ‘मेरा परिवार मेरी लाइफ लाइन रहा। साथ में मेरे दोस्तों का भी योगदान कम नहीं रहा। मेरे अच्छे-बुरे दिनों में वे मेरे मददगार रहे। इनके कारण ही मैं अपने को पुर्नस्थापित कर पाई।’

जीवन अनमोल है
मैं एक रबर बॉल की तरह हो गई थी, जिसे हर रोज नई किक लगती है। शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक थपेड़ों और तमाम मुश्किलों के बावजूद भी मैं जानती थी कि जीवन अनमोल है। मुझे इससे प्यार था और चाहती थी कि कुछ अलग करूं, कुछ बनूं, कुछ हासिल करूं। मैं जीवन की लड़ाई में उस सैनिक की तरह हो गई थी जिसका अकेला हथियार उसका आत्मविश्वास था। हर दिन मिलने वाला नया धक्का मुझे पहले से ज्यादा मजबूती देता गया। 

कैलिपर से कंप्यूटर की यात्रा
रोज अस्पताल, डॉक्टर, दवाएं, रिहैबिटेशन क्लासेस, फिजियोथेरेपी... यही मेरी दिनचर्या हो गई थी। स्कूल मैं जा नहीं सकती थी, लेकिन इन सबके बीच मैंने अपनी पढ़ाई को भी पीछे नहीं रखा। घरवालों और दोस्तों की मदद से मैं आगे बढ़ती रही। मेरी कोशिश कैलिपर की सहायता से कंप्यूटर चलाने की थी, जो साकार हुई। इसी कैलिपर ने मुझे स्कूल पहुंचाया और निरंतर आगे बढ़ने में मदद की। डिस्टेंस लर्निंग से मैंने अपनी पढ़ाई जारी रखी। दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया, पंजाब यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र और अन्नामलाई से अंग्रेजी में मास्टर की डिग्री ली। नागालैंड से साइकोथेरेपी और काउंसिलिंग पास की। एडवांस डिप्लोमा कंप्यूटर में लिया।

दया नहीं चाहिए
आह, ओह, उफ जैसे शब्दों को न चाहते हुए भी सुनना पड़ता है।  एक तो लड़की, उस पर व्हील चेयर पर बैठी। लोगों को लगता है, इसे केवल दया ही चाहिए। हम भी सामान्य आदमी की तरह हैं। उन्हीं की तरह हमारे सपने और उम्मीदें हैं। हमें आम इंसान से थोड़ी ज्यादा मेहनत करनी है अपने सपनों को पूरा करने के लिए, बस इससे ज्यादा कुछ नहीं। अपने को फिट रखना हम जैसों के लिए बहुत जरूरी है। डाइट के प्रति भी पूरी तरह सजग हूं। आर्थिक संबलता के लिए मैं ट्यूशन सेंटर चलाती हूं। यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेस व जीटीबी अस्पताल में मैं काउंसिलिंग करती हूं। मैंने इंटरनेशनल हेल्थ जर्नल में दो लेख लिखे, जिसमें लिखा कि विकलांगता को विषय के रूप में डॉक्टरों की पढ़ाई में अनिवार्य करना चाहिए।  

मेरे जैसों के लिए
अपने जैसों के लिए मेरा कहना है कि अपनी कमजोरियों को पहचानो और उन पर ध्यान से काम करो। अपनी दिमागी सेहत को दुरुस्त रखो। यही ताकत है हमारी। ऐसे ही लोगों की मदद के लिए मैंने ‘क्रॉस द हर्डल्स’ एनजीओ की शुरुआत की है। अपने जैसों को दया या दान देने नहीं, समर्थ बनाने की दिशा में मैं लगातार प्रयास करती रहती हूं।

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