ऐसे बचेंगे हड्डियों की बीमारी से, पढ़ें ऑस्टियोपोरोसिस के बारे में
हमारी हड्डियां हमारे शरीर को एक आकार देती हैं, जिससे हमारे तमाम जरूरी आर्गन्स अपनी जगह सुरक्षित रहते हैं। शरीर में कहीं मोटी-मोटी हड्डियां होती हैं तो कहीं पतली, छोटी और मुलायम हड्डियां, जो हमारे...
हमारी हड्डियां हमारे शरीर को एक आकार देती हैं, जिससे हमारे तमाम जरूरी आर्गन्स अपनी जगह सुरक्षित रहते हैं। शरीर में कहीं मोटी-मोटी हड्डियां होती हैं तो कहीं पतली, छोटी और मुलायम हड्डियां, जो हमारे शरीर की तमाम गतिविधियों में प्रमुखता से शामिल रहती हैं। इन सभी कामों के लिए इन हड्डियों को खुद को भी स्वस्थ रखना होता है, जिसके लिए वे हमसे जरूरी भोजन से लेकर भरपूर शारीरिक गतिविधियों तक की उम्मीद करती हैं। प्रोटीन, कैल्शियम फॉस्फेट और लिविंग बोन सेल से बनी इन हड्डियों को अगर पर्याप्त मात्रा में जरूरी चीजें न मिलें तो उनकी सेहत बिगड़ने लगती है और वे कई बीमारियों की चपेट में आने लगती हैं।
बदलती जीवनशैली के कारण इन दिनों ऑस्टियोपोरोसिस की चर्चा तो आम हो गई है, क्योंकि यह अब कम उम्र के लोगों को भी अपनी चपेट में लेने लगा है। ऐसे में बेहद जरूरी हो जाता है हड्डियों की जरूरत का ध्यान रखना और उनकी सेहत पर नजर रखना।
खानपान व रहन-सहन कैसा हो
खानपान और रहन-सहन की शैली बदलती जा रही है। ऐसे में हड्डियों का कमजोर होना, उनमें समस्याएं आना आम बात हो गई है। आजकल जो मुख्य समस्या है और जिसे पहचानना मुश्किल होता है, वह है ऑस्टियोपोरोसिस। ऑस्टियोपोरोसिस का मुख्य अर्थ है हड्डियों में बोन मिनरल डेंसिटी का कम होना, जो बोन मास के कम होने की वजह से होता है। इसका मुख्य कारण पुरुषों में बढ़ती उम्र और महिलाओं में मुख्य रूप से मेनोपॉज होता है। इसके अलावा जो मरीज बेड रिडेन रहते हैं यानी किसी बीमारी की वजह से जिनका चलना-फिरना मुश्किल होता है या जो लोग कुछ खास तरह की दवाओं का सेवन करते हैं जैसे स्टेरॉइड्स, उनमें भी यह समस्या पैदा हो जाती है। कुछ बीमारियां ऐसी होती हैं, जिनमें पीड़ित व्यक्ति में ऑस्टियोपोरोसिस होने की आशंका अधिक होती है, जैसे हाइपर थाइरोडिज्म, कुशिंग सिंड्रोम आदि।
कैसे करें पहचान
ऑस्टियोपोरोसिस को पहचानना मुश्किल होता है। ज्यादातर मामलों में जटिल होने के बाद इसका पता चलता है। इसकी जटिलता मुख्यत: फ्रैक्चर के रूप में दिखाई देती है। इसमें जो मुख्य फै्रक्चर होते हैं, वे हैं रीढ़ की हड्डी का फ्रैक्चर, कलाई का फ्रैक्चर, टखनों का फ्रैक्चर और कूल्हे का फ्रैक्चर। ऐसे व्यक्ति को पहचानने का आसान तरीका है। अगर किसी की उम्र उसकी वास्तविक उम्र से अधिक लगने लगे, उसका कद कम हो रहा हो, पीठ पर कूबड़ निकल रहा हो तो ये लक्षण ऑस्टियोपोरोसिस का संकेत देते हैं।
इन स्थितियों को न करें नजरअंदाज
यदि किसी को पीठ में अचानक दर्द शुरू हो जाए, जो लंबे समय तक बना रहे या कूल्हों में दर्द बना रहे तो इन्हें नजरअंदाज नहीं करना चाहिए और डॉक्टर से अवश्य सलाह लेनी चाहिए। यह स्थिति भारत में आमतौर पर 60 साल से अधिक उम्र के लोगों में दिखाई देती है।
जल्दी पहचान के उपाय
ऑस्टियोपोरोसिस की जल्दी पहचान करने के लिए बोन मैरो डेंसिटी की जांच की जाती है, जो डेक्सा स्कैन द्वारा होती है। डेक्सा स्कैन के जरिए टी स्कोर को देखा जाता है। यदि वह -1 से ज्यादा होता है तो हड्डियां सामान्य मानी जाती हैं। यदि वह 1 से -25 के बीच होता है तो उसे ऑस्टियोपीनिया कहते हैं और यदि वह 25 से कम है तो इसको ऑस्टियोपोरोसिस कहते हैं। यदि टी स्कोर -25 से कम है और साथ में कोई फ्रैक्चर हो चुका है तो इसे गंभीर ऑस्टियोपोरोसिस कहते हैं। इसलिए महिलाओं में 65 वर्ष के बाद और पुरुषों में 70 वर्ष के बाद डेक्सा स्कैन की जांच नियमित रूप से होनी चाहिए।
उपचार/रोकथाम
ऑस्टियोपोरोसिस की रोकथाम मुख्यत: रोजमर्रा के रहन-सहन और खान-पान पर निर्भर करती है। इसके लिए रोज की कसरत और टहलना जरूरी है। टहलने में कम से कम पांच दिन और रोजाना 30 मिनट तेज गति से चलना चाहिए।
व्यायाम में पीठ के व्यायाम, स्ट्रेचिंग वाले व्यायाम होने चाहिए। इन सब को 30 मिनट का समय देना चाहिए यानी टहलने और व्यायाम को एक घंटे का समय दें।
कितना हो कैल्शियम
महिलाओं को कम से कम 600 मिलीग्राम कैल्शियम चाहिए, जबकि पुरुषों को 1000 मिलीग्राम कैल्शियम की जरूरत होती है। विशेष स्थिति में यह मात्रा घट या बढ़ सकती है।
विटामिन डी भी है जरूरी
विटामिन डी का भी काफी महत्व है, क्योंकि विटामिन डी के बिना शरीर में कैल्शियम का अवशोषण नहीं हो पाता। भारत में एक व्यक्ति में एक हजार से 1500 आईयू (इंटरनेशनल यूनिट) विटामिन डी की जरूरत होती है। ज्यादातर विटामिन डी हमें सूर्य की किरणों से प्राप्त हो जाता है। इसके लिए शरीर का 20 प्रतिशत हिस्सा धूप में आधे घंटे के लिए रखना चाहिए। इन हिस्सों में चेहरा, गला, हाथों का भाग हो सकता है। विटामिन डी की प्राप्ति के लिए सुबह 10 से 3 बजे की धूप सबसे अच्छी होती है।
हो गई हो ऑस्टियोपोरोसिस की पहचान
यदि ऑस्टियोपोरोसिस पहचाना जा चुका है तो उसके लिए आजकल कई दवाएं उपलब्ध हैं। इनमें प्रमुख हैं बिसफॉस्फोनेट, कैल्शिटोनिन, टेरीपैराटाइड, हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी आदि, परन्तु इनका इस्तेमाल अपने डॉक्टर की सलाह के बाद ही करें। कुछ बुजुर्ग लोग, जिनकी उम्र 60 से अधिक होती है और जिनमें ऑस्टियोपोरोसिस की आशंका ज्यादा है, उनमें बचाव के तौर पर कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी होता है।
ध्यान दें बुजुर्ग
0 बुजुर्गों का बाथरूम चिकना न हो।
0 जूते और चप्पल सही हों।
0 सीढ़ियों के स्टेप्स छोटे हों।
0 यदि चल पाने में परेशानी हो तो छड़ी का इस्तेमाल करें।
0 यदि रीढ़ की हड्डी कमजोर है तो वे उसकी सुरक्षा के लिए ब्रैसिज का इस्तेमाल करें।
0 ऑस्टियोपोरोसिस की रोकथाम उसके उपचार से अधिक जरूरी है, इसलिए 60 वर्ष से अधिक के व्यक्ति समय-समय पर अपने डॉक्टर से सलाह लेते रहें।
हड्डियों को सुरक्षित रखने के पांच उपाय
युवावस्था में ही अपनी हड्डियों को मजबूत बनाएं, ताकि अधिक उम्र होने के बाद भी आपकी हड्डियां मजबूत बनी रहें। इसके लिए इन पांच उपायों को अपनाएं।
0 अपने भोजन में रोजाना जरूरी कैल्शियम और विटामिन डी के स्रोत सुनिश्चित करें।
0 अपना वजन सही रखें। इसके लिए समय-समय पर अपना वजन कराते रहें और उस पर ध्यान देते रहें।
0 वेट बियरिंग व्यायाम करें।(अपनी क्षमतानुसार वजन उठाने वाले ऐसे व्यायाम, जिनसे आपकी हड्डियों और जोड़ों पर थोड़ा जोर पड़ता हो।)
0 जब कोई खेल खेल रहे हों तो सुरक्षा के लिए जरूरी कपड़े, हेलमेट व गद्देदार चीजें पहनें।
0 धूमपान छोड़ दें और अगर शराब पीते हैं तो उसकी मात्रा कम कर दें या संभव हो तो पूरी तरह छोड़ दें।
खानपान
आपका भोजन कैल्शियम से भरपूर हो, इस बात का ध्यान रखें। भोजन में दूध, दुग्ध उत्पाद, चौलाई और पालक जैसी हरी पत्तेदार सब्जियों, राजमा, चने आदि को प्रमुखता से शामिल करें।
(सफदरजंग हॉस्पिटल के सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ ऑर्थोपेडिक्स के सहायक प्रोफेसर डॉ. दीपक कुमार शर्मा से बातचीत पर आधारित)