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Hindi Newsयोगी के सीएम बनने के बाद 'नाथ-संप्रदाय' की पूछ बढ़ी

योगी के सीएम बनने के बाद 'नाथ-संप्रदाय' की पूछ बढ़ी

गोरक्ष पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद नाथ संप्रदाय के बारे में लोगों की जिज्ञासा बढ़ी है। इसके बारे में जानने के लिए लोग हिन्दुस्तानी एकेडेमी से प्रकाशित किताब 'नाथ-संप्रदाय' को...

योगी के सीएम बनने के बाद 'नाथ-संप्रदाय' की पूछ बढ़ी
Wed, 24 May 2017 02:40 PM
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गोरक्ष पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद नाथ संप्रदाय के बारे में लोगों की जिज्ञासा बढ़ी है। इसके बारे में जानने के लिए लोग हिन्दुस्तानी एकेडेमी से प्रकाशित किताब 'नाथ-संप्रदाय' को ढूंढ़ रहे हैं। मांग के अनुरूप पुस्तक की उपलब्धता अभी नहीं है।

तकरीबन 67 साल पहले लिखी गई इस पुस्तक में निबंधकार डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी ने नाथ-संप्रदाय का क्रमबद्ध इतिहास और सिद्धांत प्रस्तुत किया है। इससे पहले इस संप्रदाय से जुड़ी जानकारियां संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश ग्रंथों, जनश्रुतियों और अंग्रेजी साहित्य में बिखरी पड़ी थीं, जिसे एक साथ संकलित किया गया है।

एकेडेमी की प्रकाशन अधिकारी ज्योतिर्मयी के अनुसार यूपी में नई सरकार बनने के बाद पिछले दो माह में इस पुस्तक की सौ से अधिक प्रतियां बिकी हैं, जबकि पहले इक्का-दुक्का ही बिकती थीं। पुस्तक की मांग को देखते हुए इसका तीसरा संस्करण प्रकाशित करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है।

किताब में खास क्या

दो सौ पृष्ठों की पुस्तक में नाथ-संप्रदाय का प्रामाणिक इतिहास और उसके सिद्धांतों का परिचय पाठकों को एक साथ मिल जाता है। पुस्तक के दो अध्याय में नाथ-संप्रदाय और पुराने सिद्धों का परिचय दिया गया है। अगले तीन अध्याय में मत्स्येंद्रनाथ और सिद्धांत का वर्णन है। छठे व सातवें अध्याय में जालंधरनाथ और कृष्णपाद और उनके मत का जिक्र है। उसके बाद चार अध्याय (8-12) तक गोरखनाथ और उनके योगमार्ग का सिद्धांत है। बारहवें और तेरहवें अध्याय में गोरखनाथ के समसामयिक सिद्धों और परवर्ती सिद्ध-संप्रदायों का पूरा परिचय दिया गया है। पुस्तक के अंतिम दो अध्याय में लोकभाषा में संप्रदाय के नैतिक उपदेशों का जिक्र है।

1950 में छपा पहला संस्करण

इस पुस्तक का पहला संस्करण जनवरी 1950 में हिन्दुस्तानी एकेडेमी से प्रकाशित हुआ था। उस समय डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी शांति निकेतन में अध्यापन करते थे। गुरुदेव रवीन्दनाथ टैगोर को समर्पित यह पुस्तक 212 पेज की है और मूल्य दो सौ रुपये है। इसका दूसरा संस्करण 2012 में प्रकाशित हुआ था। पुस्तक का तीसरा संस्करण शीघ्र प्रकाशित होने वाला है। इस बार 50 हजार प्रतियां प्रकाशित होंगी जिसका संभावित मूल्य 250 रुपये रहेगा।

----हाईलाइटर-----

67 साल पहले हिन्दुस्तानी एकेडेमी ने की थी प्रकाशित

50 हजार प्रतियों के साथ तीसरा संस्करण लाने की तैयारी

इनका कहना है...

हिन्दी के आदिकाल का अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों, शोधार्थियों, प्राध्यापकों, संप्रदाय से जुड़े लोगों में यह पुस्तक लोकप्रिय है। यह एकेडेमी की महत्वपूर्ण उपलब्धि है। इसकी मांग लगातार बढ़ रही है।

-रविनंदन सिंह, साहित्यकार/कोषाध्यक्ष,

हिन्दुस्तानी एकेडेमी, इलाहाबाद

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