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आतंक का वैश्विक रूप

फ्रांस की राजधानी पेरिस में आतंकियों ने 150 से अधिक बेगुनाहों को मार दिया। यह यूरोपीय बिरादरी को आतंकियों की खुली चुनौती है। अति सुरक्षित कहे जाने वाले देशों में आतंकवादी जिस तरह से बड़ी घटनाओं को...

आतंक का वैश्विक रूप
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Nov 2015 07:15 PM
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फ्रांस की राजधानी पेरिस में आतंकियों ने 150 से अधिक बेगुनाहों को मार दिया। यह यूरोपीय बिरादरी को आतंकियों की खुली चुनौती है। अति सुरक्षित कहे जाने वाले देशों में आतंकवादी जिस तरह से बड़ी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं, ऐसे में यही लगता है कि आज पूरे विश्व में कहीं भी सुरक्षित जगह नहीं रह गई है। जब भारत में आतंकवादी घटनाएं घटित होती हैं, तब पश्चिमी समाज और अमेरिका इसे बड़े हल्के में लेते हैं। अब चूंकि यह आतंक पूरे विश्व में फैल गया है, तो सभी देशों को संगठित होकर इसका समूल विनाश कर देना चाहिए , वरना वह दिन दूर नहीं, जब यह भस्मासुर सारे विश्व को लील जाएगा।
सतप्रकाश सनोठिया, रोहिणी
spgoel.jhm@gmail.com

दोहरी मानसिकता

देश में बदल रहे धार्र्मिक माहौल के बीच कर्नाटक सरकार का अचानक टीपू सुल्तान की जयंती मनाना आश्चर्यजनक लग रहा है। ऐसा तब है, जब कांग्रेस सहित कुछ अन्य राजनीतिक दल, बुद्धिजीवियों का एक धड़ा, अनेक फिल्मकार, इतिहासकार तथा वैज्ञानिकों ने देश में बढ़ती असहिष्णुता के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराया है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने तो इसकी गंभीरता को देखते हुए कुछ दिनों पूर्व ही राष्ट्रपति तक से मुलाकात की थी। यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ब्रिटेन दौरे पर पश्चिमी मीडिया ने भी उनको असहिष्णुता जैसे संवेदनशील विषय पर घेरने की पुरजोर कोशिश की। इन सबके बावजूद कांग्रेस शासित राज्य कर्नाटक की सरकार का यह फैसला चकित करता है। अगर ऐसा केवल तुष्टिकरण तथा वोटों के ध्रुवीकरण के लिए किया जा रहा है, तो न यह देश के हित में है और न ही इससे कांग्रेस को लाभ पहुंचने वाले हैं।
हरीश राय
harish.rai0@gmail.com


वैज्ञानिक दृष्टि अपनाएं

विकसित देश के लिए नेहरू की सोच, शीर्षक लेख पढ़कर बहुत अच्छा लगा। इसलिए नहीं कि मैं पंडित नेहरू या उनकी पार्टी को पसंद करता हूं, बल्कि इसलिए क्योंकि उन्होंने वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने पर जोर दिया था। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51(ए) एच की जानकारी जन-जन तक पहुंचे और लोग जागरूक हों, जाति भेद व धर्म भेद को भुलाकर विज्ञान धर्म अपनाए, क्योंकि आज विज्ञान प्रकृति और मानव की जिंदगी में इस कदर समा गया है कि इसे ही धर्म मान लेने में जग का कल्याण और जन का कल्याण संभव है। सोशल मीडिया द्वारा कोई भी बात बहुत जल्दी लोगों तक पहुंच जाती है। अत: आवश्यक है कि लोग सूचनाओं का वैज्ञानिक विश्लेषण करके ही उस पर अमल करें अन्यथा अनर्थ की आशंका बनी रहती है। समतामूलक समाज की स्थापना के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण जरूरी है।
अनिल कुमार मिश्र, कोंडली, दिल्ली
anilkumarmishra89@gmail.com

लापरवाह शिक्षक

देश में हमारी सरकारें शिक्षा पर करोड़ों रुपये खर्च करती हैं। हर व्यक्ति अपने बच्चों को बेहतर से बेहतर शिक्षा मुहैया कराता है। ऐसा ही एक प्रयास श्रीनगर के रहने वाले मां-बाप ने भी किया था। हिलाल अहमद ने अपने बेटे का दाखिला सरकारी पॉलिटेक्निक कॉलेज में कराया था।  पर प्रथम वर्ष की परीक्षा का परिणाम घोषित होने के बाद इस छात्र ने फेल होने की वजह से झेलम में छलांग लगाकर जान दे दी। मगर अब पुनर्मूल्यांकन के बाद परिणाम दोबारा घोषित हुआ है, तो वह छात्र कक्षा में सबसे ज्यादा अंक पाकर टॉपर बन गया है। अब इस परिणाम का क्या फायदा? वह छात्र तो अपनी जान दे चुका है। यह पहली बार नहीं हुआ है, जब देश में इस प्रकार की घटना घटी हो, इससे पहले भी कई कॉलेजों में इसी तरह की लापरवाही देखने को मिली है। आखिर कब तक इस प्रकार की लापरवाही होती रहेगी? ऐसी लापरवाहियों के लिए कड़े कानून बनाने की जरूरत है, तभी शिक्षक अपना काम ठीक प्रकार से करेंगे।
विनय कुमार, महरौली
vinay123cipl@gmail.com

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