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सुलेख की आवश्यकता

डॉक्टरी पर्चे में सुलेख के संदर्भ में यही कहना समीचीन लगता है कि सुलेख हमारे आंतरिक विचारों के प्रतिबिंब होते हैं। यदि हम अंदर से सशक्त होंगे, तो हमारे विचारों में उसका सौंदर्य झलकेगा। वहीं, सौंदर्य...

सुलेख की आवश्यकता
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 03 Jul 2015 12:11 AM
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डॉक्टरी पर्चे में सुलेख के संदर्भ में यही कहना समीचीन लगता है कि सुलेख हमारे आंतरिक विचारों के प्रतिबिंब होते हैं। यदि हम अंदर से सशक्त होंगे, तो हमारे विचारों में उसका सौंदर्य झलकेगा। वहीं, सौंदर्य कलम से कागज पर सुलेख के रूप में उतरेगा, जिससे हमारे व्यक्तित्व की पहचान होगी। जल्दबाजी में लिखे गए शब्द जहां आपके अंतर्मन की कुंठा और आक्रोश के परिचायक हैं, वहीं इनमें आपकी लापरवाही भी प्रदर्शित होती है। जहां तक डॉक्टरों के सुलेख की बात है, तो उनके लिखे हुए शब्द मरीज को जीवन-दान देते हैं और सही तरीके से न समझ पाने पर मौत भी। इसलिए समाज में प्रतिष्ठित पदों पर सुशोभित व्यक्तियों से अपनी हैंड राइटिंग में सुधार अपेक्षित है। बड़े व्यक्ति तो अपनी राइटिंग में कम ही सुधार कर पाएंगे, लेकिन वर्तमान परिवेश में बच्चे पेंसिल और बॉल पेन से कॉपी पर सुलेख लिख सकते हैं। शिक्षक और अभिभावक इस बारे में गंभीरता से सोचें।
शशिप्रभा शर्मा, पन्नापुरी, हापुड़, उत्तर प्रदेश


मिलावट के खिलाफ
ढेर सारी खबरों के बावजूद मिलावट के खिलाफ स्थानीय प्रशासन ठोस कदम नहीं उठा पाता। इसी में जब लोगों के मरने की खबरें आती हैं या कोई मामला बड़ा हो जाता है, तो प्रशासन की नींद खुलती है, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी होती है। मिलावट करने वाले व्यापारी या तो भाग चुके होते हैं या मामले से अपने हाथ निकाल चुके होते हैं। मसाले में मिलावट की खबरें आम हो चुकी हैं। दूध में भी मिलावट की खबरें जब-तब आती ही रहती हैं। इस बार तो ऐसी खबरें भी आईं कि लीची को हानिकारक रसायन युक्त लाल रंग से रंगा गया। आश्चर्य यह रहा कि इस मसले पर सरकार के साथ स्वयंसेवी संगठनों ने भी चुप्पी साध ली है, जबकि कई संस्थाएं जनहित याचिका दायर करके सरकार की नींद तोड़ सकती हैं। ऐसी खबरों पर संबंधित विभागों को खुद जागना चाहिए।
ब्रज मोहन, पश्चिम विहार, नई दिल्ली-63

क्या फर्जी नहीं है
फर्जी डिग्री, फर्जी कर्मचारी, फर्जी प्रमाण-पत्र, फर्जी मुद्रा तक सबके सब फर्जी नजर आ रहे हैं। बड़ी अजीब बात है कि हमारे नेता और मंत्री तक खुद इस फर्जीवाडे़ की लपेट में हैं और यह मामला किसी एक पार्टी का नहीं, बल्कि लगभग सभी राजनीतिक पार्टियों में दो-चार ऐसे मामले हैं। वहीं, कर्मचारी के स्तर पर जहां तक यह मुद्दा है, तो बिहार में फर्जी प्रमाण-पत्र से शिक्षकों की नियुक्ति का एक बड़ा मामला सामने आ चुका है। कहा जा रहा है कि कानूनी कार्रवाई के डर से कई सौ शिक्षक त्याग-पत्र दे चुके हैं। यह बिल्कुल साफ हो चुका है कि भ्रष्टाचार ही इस तरह के फर्जीवाड़े का कारण है। भ्रष्टाचार के खिलाफ हुए अन्ना आंदोलन से देश में कुछ जागरूकता तो जरूर आई, मगर इससे उपजी आम आदमी पार्टी खुद इसकी चपेट में आ चुकी है। ऐसे में, लगता है कि फर्जीवाड़े और भ्रष्टाचार से मुक्ति पाने में अभी देश को काफी समय लगेगा।
वेद मामूरपुर, नरेला

अभियान से आगे
कभी सोने की चिड़िया कहा जाने वाला यह देश आज गंदगी फैलाने मात्र से बदनाम हो रहा है, जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है। इसलिए लोगों को देखना होगा कि अपने आस-पड़ोस को कैसे स्वच्छ रखना है। महात्मा गांधी ने अपने जीवन में स्वच्छता को बहुत महत्व दिया। उन्होंने स्वच्छता को अपने आंदोलनों का एक हिस्सा बनाया था। अगर उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि देनी है, तो स्वच्छता को एक क्रांति के रूप में पूरे देश में फैलाना होगा और इसे जन-जन तक फैलाने के लिए लोगों को जागरूक करना होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों से भारत को स्वच्छ रखने का आह्वान किया है। उन्होंने इसके लिए स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत भी की, जो एक कारगर कदम है। इसमें नागरिकों को अपना योगदान देना चाहिए, तभी भारत का डंका पूरे विश्व में बजेगा।
तपस कुमार, दुमका, झारखंड

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