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प्रवासियों का दर्द

बिहार में औद्योगिक विकास क्यों नहीं हो रहा है, यह राष्ट्रीय विमर्श का विषय हो सकता है, लेकिन प्रवास का दर्द क्या होता है, यह एक आम बिहारी भी बता सकता है। घर से हजारों किलोमीटर दूर दिल्ली, मुंबई,...

प्रवासियों का दर्द
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 11 Jun 2015 08:45 PM
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बिहार में औद्योगिक विकास क्यों नहीं हो रहा है, यह राष्ट्रीय विमर्श का विषय हो सकता है, लेकिन प्रवास का दर्द क्या होता है, यह एक आम बिहारी भी बता सकता है। घर से हजारों किलोमीटर दूर दिल्ली, मुंबई, कोलकाता जैसे महानगरों में वह जाता है, तो पहला दर्द अपनों से बिछड़ने का होता है। मां-बाप, पत्नी, बच्चों से दूर रहना हर एक इंसान के बस की बात नहीं है। इन महानगरों में काम करने वाले लोगों की तनख्वाह इतनी नहीं होती कि वे परिवार को साथ रख सकें। यदि व्यक्ति अपने पत्नी-बच्चों को साथ रख भी लेता है, तो वह मां-बाप के प्रति अपनी जिमेदारी से हाथ धो बैठता है। व्यक्ति धर्म-संकट में पड़ जाता है। घर पर बूढ़े मां-बाप की सेवा से दूर रहना बहुत दुखदायी होता है। बिहार से महानगरों की तरफ चलने वाली ट्रेनों से यात्रा करना बहुत साहस का काम है।
दीपक कुमार, सीवान
dkdeepak212@gmail.com

शिक्षा के प्रति बेरुखी

बीते दिनों सांसद के सी त्यागी के आलेख के माध्यम से शिक्षा के क्षेत्र के तथ्य पता चले, तो यह मालूम हुआ कि शिक्षा को लेकर सरकारी नीतियां बंटाधार करने वाली हैं। भारतीय जनता पार्टी की बहुमत की सरकार से कम से कम ऐसी तो उम्मीद नहीं की जा सकती कि शिक्षा के बजट में भारी कमी की जाए। भारत सरकार आखिर क्या करने पर आमादा है कि उसने शिक्षा के हर क्षेत्र- सर्व शिक्षा अभियान, राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान और मिड-डे मील के बजट में भारी कमी कर दी है? स्कूल के शिक्षकों, कॉलेज के प्रोफेसरों की भर्ती के प्रति उदासीनता तो पहले ही झकझोर देने वाली थी। ऐसे में, सरकार अपना दायित्व सही तरह से निभाए और देखे कि विपक्ष को ऐसी बातें कहने का मौका न मिले, ताकि जनमानस राहत महसूस करे और अपने बच्चों के भविष्य को लेकर आश्वस्त हो पाए।
राजेश गोयल
rajesh1971goel@gmail.com

अधर में बिहार

पूरे 10 साल लालूजी ने बिहार में शासन नहीं, राज किया। परिवारवाद को प्रश्रय दिया, इस दौरान घोटालों का रिकॉर्ड बना तथा अगड़ा-पिछड़ा का नारा बुलंद हुआ। उन्होंने स्वयं को कम्युनल ताकतों को रोकने वाला मसीहा घोषित किया। बिहार के विकास को ऐसा ग्रहण लगा कि वह कराह उठा। फिर भाजपा के साथ मिलकर नीतीश कुमार सत्तासीन हुए। उनके पहले शासनकाल में कुछ हद तक बिहार की बदहाली मिटी। लेकिन अपने शासन के दूसरे चरण में नीतीश की रणनीति तर्कसंगत नहीं प्रतीत हो रही है। मसलन, जिन लालू यादव की गलत नीतियों से त्रस्त लोगों ने उन पर भरोसा किया, उन्हीं लालू के साथ वह हो लिए। यह बिहार के लोगों के साथ छलावा है। इससे सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक दांव-पेच की उनकी स्वार्थी छवि उजागर होती है। यह जनता जनार्दन के हित में लिया गया निर्णय नहीं है। लगता है कि बिहार का चौतरफा विकास मृग मरीचिका ही बना रहेगा।
कजरी मानसी ऐश्वर्यम, गुड़गांव
kmaishwaryam@gmail.com

पलटवार करती सेना

मणिपुर में भारतीय सेना के जवानों पर हुए आतंकवादी हमले के दोषी आतंकवादियों को म्यांमार की सीमा में घुसकर मारने के लिए भारतीय सेना के जवानों की जितनी प्रशंसा की जाए, वह कम ही होगी। साथ ही, भारतीय सेना को इस प्रकार की कार्रवाई की छूट देने के लिए हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर भी धन्यवाद और बधाई के हकदार हैं। हम आशा करते हैं कि आगे भी हमारी सरकार और सेना आतंकवाद का मुकाबला इसी प्रकार बहादुरी और प्रबल इच्छाशक्ति के साथ करेगी। वैसे, यह पलटवार पाकिस्तान और चीन के कान भी खड़े करता है। यह तो साफ है कि भारत में आतंकवाद फैलाने का काम पाकिस्तान करता है। उसके क्षेत्र में भी घुसकर आतंकवादियों को सबक सिखाना बहुत जरूरी है।
राजेंद्र गोयल, बल्लबगढ़, फरीदाबाद
goyalrp68@yahoo.com

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