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समानता का हनन

महाराष्ट्र के शनि-शिंगणापुर मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को रोकने के लिए हजारों साल पुरानी परंपरा की दुहाई दी जा रही है। किसी भी नियम के प्राचीन होने का तर्क देकर उसे मानने की बाध्यता नहीं थोपी जा...

समानता का हनन
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 03 Feb 2016 09:16 PM
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महाराष्ट्र के शनि-शिंगणापुर मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को रोकने के लिए हजारों साल पुरानी परंपरा की दुहाई दी जा रही है। किसी भी नियम के प्राचीन होने का तर्क देकर उसे मानने की बाध्यता नहीं थोपी जा सकती। इतिहास गवाह है कि हर धर्म में समय-समय पर सामाजिक सुधार होते रहे हैं। हमें इस सच्चाई को स्वीकार करना चाहिए कि धर्म लोगों के जीवन में बाधा नहीं बनता, बल्कि विकास की संभावनाएं उजागर करता है। देश कालांतर में अनेक बदलावों से गुजरा है, और समय के अनुरूप परंपराएं भी बनी-बिगड़ी हैं।  अब जब संविधान के अनुसार लिंग के आधार पर धार्मिक भेदभाव का निषेध है, तो फिर कौन-सी परंपरा को बचाने के लिए हम महिलाओं को धार्मिक स्थलों से दूर धकेल रहे है। अगर हम हजारों साल पुरानी परंपरा को बचा रहे हैं, तो वहींपर सुखद सांविधानिक नियमों को भी तोड़ रहे हैं।
विनय कुमार, छात्र, भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली

मुस्लिम धर्मगुरु आगे आएं
मुस्लिम नवयुवकों का आईएस के जाल में फंसने का क्रम बढ़ता ही जा रहा है। ऐसे में, गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने मुस्लिम धर्मगुरुओं को बुलाकर इस मसले पर चर्चा करके एक सार्थक प्रयास किया है। आईएस के प्रति नवयुवकों का आकर्षण देश की एकता के लिए गंभीर खतरा है। इस मानसिकता से नवयुवकों को दूर रखने के लिए मुस्लिम धर्मगुरुओं, बुजुर्गों तथा बुद्धिजीवियों को आगे आकर नौजवानों का उचित मार्गदर्शन करना चाहिए। उन्हें नवयुवकों को यह बताना चाहिए कि आईएस की सोच न सिर्फ विनाशकारी है, बल्कि वह इंसानियत के लिए भी खतरा है।
सुरेश चंद तोमर, बरेली

बदलनी चाहिए सोच
तीन फरवरी के संपादकीय 'इरादा और अमल' में आपने सटीक लिखा है कि लिंग परीक्षण पर लगी रोक को जारी रखने की जगह उसे अनिवार्य बनाने से हालात सुधरने की बजाय कहीं अधिक बिगड़ सकते हैं। महिला और बाल कल्याण मंत्री मेनका गांधी का इरादा भले नेक हो, मगर लिंग परीक्षण अनिवार्य करने से जितने लाभ होंगे, उससे ज्यादा यह जटिलता आएगी। वास्तव में, इसका फायदा सोनोग्राफी व्यवसायी से जुड़े लोग उठाएंगे। समय की यह पुकार है कि समाज की सोच बदली जाए। यह प्रयास हो कि पुरुष और महिला में लिंग अनुपात समान बना रहे।
नवीनचंद्र तिवारी
रोहिणी, दिल्ली

स्कूलों की लापरवाही
लापरवाही की वजह से स्कूल के अहाते में ही आए दिन होने वाली छोटे-छोटे बच्चों की दर्दनाक मौत आहत कर रही है। जो स्कूल प्रशासन महंगी फीस के साथ न जाने कितने पैसेे बनाने से बाज नहीं आते, वे भी बच्चों की सुरक्षा के नाम पर खोखले पाए गए हैं। स्कूल वालों को क्या यह नहीं पता है कि लोग दिन-रात एक करके अपने जिगर के टुकड़े को अच्छे से अच्छे स्कूल में पढ़ाते हैं? स्कूल द्वारा की जाने वाली हर फरमाइश को अभिभावक पूरा करते हैं, और स्कूल अपनी एक लापरवाही से उनके समस्त सपनों को क्षण भर में चकनाचूर कर देते हैं। उस पर बेशर्मी यह कि वे अपना पल्ला भी झाड़ लेते हैं। ऐसे में, स्कूलों पर निगरानी बहुत जरूरी है। साथ ही जिम्मेदार स्कूल को सजा भी मिले।
कजरी मानसी ऐश्वर्यम, गुड़गांव

मौत पर राजनीति
हैदराबाद विश्वविद्यालय के दलित छात्र की मौत अब राजनीतिक मुद्दा बन गई है। सभी पार्टी के नेता विपक्षी पार्टियों को पटखनी देने में लगे हुए हैं। देश भर में प्रदर्शन के बावजूद बड़े-बड़े नेताओं ने इस गुत्थी को सुलझाने की बजाय अपनी साख बनाने में लगे हुए हैं। आखिर कब तक ऐसा चलता रहेगा? क्या अब इस देश में न्याय की कोई उम्मीद नहीं रही? अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या राजनीति न्याय पर भारी पड़ रही है?
 सलिल श्रीवास्तव
 सेक्टर 22, नोएडा

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