फोटो गैलरी

Hindi Newsकिसका काम बोलता है

किसका काम बोलता है

उत्तर प्रदेश के चुनावी माहौल में सभी पार्टी और नेताओं ने एक-दूसरे को नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। सभी ने एक-दूसरे पर पर्याप्त तंज कसे और अपने आप को सर्वश्रेष्ठ दिखाने की पुरजोर कोशिश की। इस बीच...

किसका काम बोलता है
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 13 Mar 2017 12:11 AM
ऐप पर पढ़ें

उत्तर प्रदेश के चुनावी माहौल में सभी पार्टी और नेताओं ने एक-दूसरे को नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। सभी ने एक-दूसरे पर पर्याप्त तंज कसे और अपने आप को सर्वश्रेष्ठ दिखाने की पुरजोर कोशिश की। इस बीच समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपने पांच वर्षों के कार्यकाल में किए गए कार्यों के आधार पर ‘काम बोलता है’ की धुन से सुना जनता को अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास किया। मगर लगता है कि वह यह समझने में विफल रहे कि जनता अब शिक्षित और समझदार हो चुकी है। महज बयानबाजी और टीका-टिप्पणी से वह भ्रमित होने वाली नहीं है। जनता को भी पता है कि किसका काम बोलता है। इसलिए जो चुनावी नतीजा आया है, वह प्रत्याशित ही था। उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने का मतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश भर में जो काम किए हैं, वह सचमुच बोल रहा है। उम्मीद है कि भाजपा उत्तर प्रदेश में एक ऐसी सरकार देगी, जो जनता की उम्मीदों को पूरा करेगी। 
आकाश कुमार, अमरपुर, मेरठ

चुनाव का मतलब
भारत में चुनाव का इतिहास बहुत पुराना है। यहां जनता चुनाव द्वारा ऐसे नेताओं को चुनती है, जो विकास-कार्यों के प्रति उत्तरदायी होते हैं। शनिवार को उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर, पंजाब और गोवा के विधानसभा चुनावों के नतीजे आए। इसमें उत्तर प्रदेश में भाजपा ने 300 से अधिक सीटें अपने खाते में डालीं और शानदार जीत हासिल की। इसी प्रकार उत्तराखंड में भी उसकी लहर साफ तौर पर दिखी। हम आज के नेताओं की तुलना पुराने दिनों के नेताओं से तो नहीं कर सकते, मगर यह नतीजा बताता है कि जनता अब किस तरह चुनावों को ले रही है। वाकई भारत की यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया दुनिया भर  में श्रेष्ठ है।
शिव भगवान सहारण, रांची

हिंदी भाषा का महत्व
यदि किसी से पूछा जाए कि हमारे देश की राष्ट्रभाषा क्या है, तो सभी लोग हिंदी का नाम लेंगे। मगर उच्च शिक्षण संस्थानों की बात करें, तो हर जगह अंग्रेजी को लोग महत्व देते हैं। सवाल यह है कि अगर तुर्की या चीन जैसे देशों में लोग अपनी स्थानीय भाषा को पहला स्थान देते हैं, तो हम क्यों नहीं? आखिर क्यों हर कोई अंग्रेजी को मुख्य भाषा के रूप में मान्यता देता है?
दीपक शर्मा, चंडीगढ़

पत्रकारों के लिए सबक 
चुनाव परिणामों ने दिखा दिया है कि पत्रकार बिरादरी जनता की नब्ज बिल्कुल नहीं पकड़ पाई। कोई भी खबरनवीस उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में नरेंद्र मोदी व भाजपा की सुनामी को नहीं देख सका। इससे ऐसा लगता है कि कुछ अपवादों को छोड़कर शेष पत्रकारों को जमीनी हकीकत का अंदाजा नहीं रह गया है। असल में, पत्रकार अब लोगों के बीच जाने से बचने लगे हैं, जिस कारण मीडिया की विश्वसनीयता ही खतरे में पड़ गई है। क्या यह आशा करें कि पत्रकार इस अनुभव से सीख लेंगे? 
अजय मित्तल, मेरठ

सवालों में ईवीएम
पांच राज्यों के चुनावी नतीजे भाजपा की लोकप्रियता बता रहे हैं और प्रदेशवासियों के साथ ही तमाम दलों को इसे सहृदयता से स्वीकार करना चाहिए। मगर यदि ईवीएम में किसी तरह की गड़बड़ी की गई है, जैसा आरोप मायावती ने लगाया है, तो यह लोकतंत्र की निर्मम हत्या है। वैसे ईवीएम पर 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी सवाल उठे थे। ऐसे में जरूरी है कि तमाम शंकाओं को निर्मूल साबित करते हुए ईवीएम से चुनाव कराना बंद कर देना चाहिए। अब फिर से मतपत्रों से चुनाव होने चाहिए, क्योंकि वर्तमान चुनाव नतीजे जनाधार कम, ईवीएम का कमाल ज्यादा नजर आते हैं। इन नतीजों के बाद संभव है कि ईवीएम पर प्रतिबंध लगाने की मांग जोर पकड़ने लगे।
वलीम खान, लखीमपुर

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें
अगला लेख पढ़ें