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भाषायी शालीनता 

भाषायी शालीनता  उत्तर प्रदेश की चुनावी रणभूमि में बयानबाजियों का महाभारत जोर पकड़ रहा है। राजनीति का ऐसा दंगल शायद ही कहीं देखा गया होगा कि प्रधानमंत्री हों या मुख्यमंत्री, सभी बढ़-चढ़कर एक-दूसरे...

भाषायी शालीनता 
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 21 Feb 2017 11:15 PM
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भाषायी शालीनता 
उत्तर प्रदेश की चुनावी रणभूमि में बयानबाजियों का महाभारत जोर पकड़ रहा है। राजनीति का ऐसा दंगल शायद ही कहीं देखा गया होगा कि प्रधानमंत्री हों या मुख्यमंत्री, सभी बढ़-चढ़कर एक-दूसरे पर बयानों के तीखे तीर चला रहे हैं। बयानबाजी तो एक हद तक ठीक है, मगर भाषा की मर्यादा पार करना दुखद है। प्रधानमंत्री कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में धर्म के नाम पर भेदभाव हो रहा है। वह रमजान-दिवाली और श्मशान-कब्रिस्तान की बात भी करते हैं। क्या यह पद की गरिमा के अनुकूल है कि प्रधानमंत्री किसी पार्टी पर निशाना साधने के लिए जाति और धर्म का सहारा लें? दूसरी तरफ, राज्य के मुखिया एक रैली में प्रधानमंत्री पर वार करते हुए कहते हैं कि ‘गुजरात में टीवी पर गधों का प्रचार कराया जाता है।’ ये शब्द बताते हैं कि भाषणबाजी करते समय इसे पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया कि देश के प्रधानमंत्री के लिए ऐसे शब्दों का इस्तेमाल किया जा रहा है। चुनाव में जीत हासिल करने के लिए इस प्रकार का ओछापन आखिर कहां तक जायज है?
पूजा कुमारी, दिल्ली
 

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ
सुनने में तो ‘बेटी पढ़ाओ’ अच्छा लगता है, लेकिन सच क्या है? स्कूलों में आजकल जो हो रहा है, वह अखबार में हर दिन देखते हैं हम। ऐसे में, बेटियों को बचाएं या उन्हें पढ़ाएं? स्थिति यह है कि स्कूलों में भी बच्चियां सुरक्षित नहीं हैं। केंद्रीय विद्यालय या बेंगलुरु के एक प्रतिष्ठित निजी स्कूल में महज छह साल की बच्ची के साथ जो कुछ हुआ, उससे तो यही लगता है कि अगर पढ़ेंगी बेटियां, तो नहीं बचेंगी बेटियां। नारा भले ही कुछ और हो, लेकिन सच यह है कि आखिर कहां और किनसे पढ़ेंगी हमारी बेटियां?
अपर्णा कुमारी

सोशल मीडिया का सच
इन दिनों सोशल मीडिया पर इतिहास के पुराने पन्नों में दफन कुछ ऐसी घटनाएं बड़ी तेजी से वायरल हो रही हैं, जिनका सच से कोई लेना-देना नहीं है। पिछले दिनों इसी तरह एक वीडियो चर्चा में था, जिसमें वेलेंटाइन दिवस को राजगुरु, सुखदेव और भगत सिह जैसे क्रांतिकारियों के बलिदान दिवस से जोड़ा गया था। अब महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे का एक कबूलनामा तेजी से वायरल हो रहा है। उसमें बताया जा रहा है कि गोडसे बापू का परम भक्त था, लेकिन वैचारिक मतभेदों की वजह से वह उनकी हत्या को मजबूर हुआ। जाहिर है, कथित कबूलनामे की भाषा नाथूराम गोडसे के महिमामंडन की है। इन्हीं तमाम विषयों को समेटते संपादकीय ‘गोपनीयता के खतरे’ को पढ़कर लगता है कि जनता के सामने असली सच लाने के लिए अब सरकार को आवश्यक कानूनी कदम उठाने ही चाहिए।
गोविन्द पाराशरी, बहेड़ी, बरेली

राजनीति या कुनीति 
जैसे-जैसे चुनाव अपने अंत की ओर बढ़ रहा है, वैसे-वैसे नेताओं की जुबान और तीखी होती जा रही है। अब चुनावी मुद्दा विकास न होकर, आरोप-प्रत्यारोप का हो चला है। नेताओं के ऐसे बोलों से जनता पर क्या असर पड़ेगा, इसकी परवाह किसी भी नेता को नहीं है। समय के साथ-साथ राजनीति का स्तर गिरता जा रहा है, जो निराशाजनक है। अगर यही हाल रहा, तो लोगों में राजनीति के प्रति हीन-भावना पैदा हो जाएगी, जो राजनीति के लिए घातक है। 
श्रीराम, रावता मोड़, नई दिल्ली

आतंकवाद पर सख्ती 
सेना प्रमुख जनरल रावत के बयान का समर्थन करके सरकार ने साफ कर दिया है कि आतंकवादी और उनके समर्थकों को बख्शा नहीं जाएगा। ये अलगाववादी किशोरों और बच्चों को गुमराह करके उनसे पत्थरबाजी करवाते हैं। इससे कई सैनिक शहीद भी हुए हैं। ऐसे में, आखिर कब तक इन्हें बर्दाश्त किया जाता? सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ है और प्राथमिकता में यह सवार्ेपरि भी है। यह निर्णय सराहनीय है।
सतीश कुमार त्यागी, देहरादून
 

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