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विकास का कमल   

विकास का कमल    महाराष्ट्र में महानगरपालिका और जिला परिषदों के चुनाव में भाजपा का ंडंका बजा है। ये चुनावी नतीजे राज्य में भाजपा की ताकत बढ़ने के साफ संकेत हैं। नोटबंदी के बाद होनेवाला यह...

विकास का कमल   
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 25 Feb 2017 12:42 AM
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विकास का कमल   
महाराष्ट्र में महानगरपालिका और जिला परिषदों के चुनाव में भाजपा का ंडंका बजा है। ये चुनावी नतीजे राज्य में भाजपा की ताकत बढ़ने के साफ संकेत हैं। नोटबंदी के बाद होनेवाला यह चुनाव, खासकर शिवसेना और भाजपा के बीच तनाव बढ़ने और दोनों के संबंध टूटने के कारण काफी महत्वपूर्ण था। इसमें इन दोनों पार्टियों के अलावा कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस, एमएनएस जैसे दलों ने भी जीत के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी थी। मगर जनता ने विश्वास भाजपा में दिखाया है। जनता को भरोसा है कि भाजपा ही विकास के कमल को खिलाएगी। भले ही मुंबई महानगरपालिका में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला है, पर जो भी पार्टी यहां राज करे, उससे यही उम्मीद है कि वह इस चुनाव में किए गए वादों को निभाएगी।
    जयेश राणे, मुंबई, महाराष्ट्र

नेता हैं या कॉमेडियन 
उत्तर प्रदेश चुनाव में सभी छोटे-बड़े नेता ठोस मुद्दों पर बात न करके एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने में व्यस्त हैं। मायावती का कहना है कि नरेंद्र मोदी के नाम का मतलब है, निगेटिव दलित मैन, यानी दलितों के विरोधी। वहीं अखिलेश यादव ने अमिताभ बच्चन से अपील की है कि वह गुजरात के गदहों का प्रचार न करें। उनके निशाने पर कौन था, यह साफ जाहिर हो जाता है। इसी तरह, मोदी ने कहा कि उत्तर प्रदेश का मैं दत्तक पुत्र हूं, तो लालू यादव ने झट बयान दे दिया कि वह अपने पिता का नाम तो बताएं। उधर, प्रधानमंत्री मोदी ने भी बसपा को बहन जी की संपत्ति पार्टी करार दिया। इन तमाम बयानों से साफ लगता है कि हमारे नेता ठोस बातें न करके सिर्फ कॉमेडी कर रहे हैं, और जनता इन्हें देखकर बस अपना       माथा पीट  रही है।
    बृजेश श्रीवास्तव, गाजियाबाद

लोकतंत्र का मजाक
देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था का जिस प्रकार से विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा मजाक उड़ाया जा रहा है, वह किसी से छिपा नहीं है। संकीर्ण सोच से समाज को बांटने का खुला खेल समाज में विघटन की स्थिति उत्पन्न कर रहा है। ऐसे में, सत्ता-प्राप्ति के लिए जो हथकंडे अपनाए जा रहे हैं, उन्हें लोकतंत्र के लिए नासूर कहना ही उचित रहेगा। जनता पर करों का बोझ लादकर मुफ्तखोरों को लैपटॉप, स्मार्टफोन तथा दूसरी सुविधाएं देने की घोषणाएं इसी श्रेणी में रखी जा सकती हैं। कहना गलत नहीं होगा कि नेताओं की सत्ता के प्रति चाहत उनकी समाज के प्रति समर्पित भावना का नहीं, बल्कि अपना हित साधने के स्वार्थ का बोध कराती है। उत्तर प्रदेश में विगत अनेक वर्षों से राजनेताओं द्वारा पद का दुरुपयोग करके धनोपार्जन किया गया है। अब जरूरत यही है कि ऐसे धन को राष्ट्र-हित में सरकारी संपत्ति घोषित किया जाए तथा गलत तरीके से संपत्ति अर्जित करने वाले नेताओं को जेल में डाला जाए। तभी राजनीतिक शुचिता फिर से स्थापित  हो सकेगी।
    सुधाकर आशावादी, ब्रह्मपुरी, मेरठ

बदलती राजनीति 
भारत की राजनीति में काफी बदलाव आ गया है। आजादी के समय की राजनीति में जनता की बुनियादी जरूरतों के बारे में सोचा जाता था। देशहित में लोग चुनावों में खड़े होते थे। मगर अब जिस तेजी से भारत बदला है, बदल रहा है, उससे कहीं ज्यादा तेजी से यहां की राजनीति बदल गई है। आज की राजनीति में न कोई नियम है, और न कोई कानून। भाषा की बात करें, तो इसका काफी पतन हो गया है। जिसको जो सही लगता है, वह वही बोल उठता है। विपक्षी नेता भी बाल की खाल निकालने में पीछे नहीं रहते। चुनावी घमासान का आलम यह है कि राजनेता अब एक-दूसरे की निजी गलतियां भी निकाल रहे हैं। मुद्दे और नीति की बात तो शायद वे भूल ही गए। जनता की जरूरतों की किसी को फिक्र नहीं है। पता नहीं, राजनीति में पुरानी शुचिता फिर कब आएगी?
    प्रियंका राज, दिल्ली
 

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