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किसके लिए बजट

बहुत कम लोग ही बजट समझ पाते हैं। कुछ मध्यवर्गीय और उच्चवर्गीय लोगों को छोड़ दें, तो आम लोगों की समझ से परे होता है बजट। आजादी के बाद 65 से अधिक बजट पारित किए गए, लेकिन एक गरीब इसको कभी महसूस नहीं कर...

किसके लिए बजट
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 01 Mar 2016 09:32 PM
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बहुत कम लोग ही बजट समझ पाते हैं। कुछ मध्यवर्गीय और उच्चवर्गीय लोगों को छोड़ दें, तो आम लोगों की समझ से परे होता है बजट। आजादी के बाद 65 से अधिक बजट पारित किए गए, लेकिन एक गरीब इसको कभी महसूस नहीं कर पाया। मेरे गांव में एक सुकई भाई हैं। पिछले 15 वर्षों से उन्हें मैं वैसे ही देख रहा हूं। कुछ साल पहले राज्य सरकार ने उन्हें घर के लिए पैसे तो दिए, लेकिन उनके पास पैसे आते-आते इतने नहीं बचे कि उस पर छत डलवा सकें। आज भी वह टिन के नीचे रहने पर मजबूर हैं। इस घर में ठंड में तो रातें कट जाती हैं, मगर गरमियों में तपन के कारण रात काटना तक मुश्किल हो जाता है। अगर एक दिन काम नहीं मिला, तो घर में चूल्हा जलाने के लिए सोचना पड़ता है। इन वर्षों में हम तो थोड़ा-बहुत बदलाव महसूस कर भी पाए, लेकिन आज भी उनकी दुनिया जस की तस है। देखने वाली बात होगी कि इस बार का बजट उनके जीवन में कितना बदलाव ला पाता है।
देवपालिक गुप्ता
जीएनआईओटी, ग्रेटर नोएडा

महंगाई का ब्लू-प्रिंट
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपना तीसरा बजट भाषण पढ़ा और भाजपा नेताओं की ओर से उन्हें बधाइयां दी जाने लगीं। मगर भारतीय जनमानस को कृषि विकास के नाम पर बढ़ाए गए आधा प्रतिशत सर्विस टैक्स से सांप सूंघ गया, क्योंकि इस टैक्स से यह सुनिश्चित हो गया कि महंगाई कम से कम आधा पर्सेंट बढ़नी ही है। अब यह विकास महंगाई का हुआ या देश का, इसका फैसला तो आने वाला समय करेगा, लेकिन यह कहने में गुरेज नहीं कि बजट में जिस अनुपात में मनरेगा का बजट बढ़ाया गया है, उसी अनुपात में इस योजना में भ्रष्टाचार भी बढ़ेगा, क्योंकि यह जगजाहिर है कि मनरेगा कागजी ही नहीं है, बल्कि काले धन पैदा करने की एक फैक्टरी है। पूरा देश जानता है कि आजकल सभी क्षेत्रों के मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी चार सौ रुपये दैनिक है, और उनको बारह महीने तीसों दिन रोजगार उपलब्ध है, तो कौन मजदूर एक सौ पचपन रुपये दैनिक की दर से सौ दिन ही काम करना चाहेगा? मनरेगा का भ्रष्टाचार समुद्र की गहराई नापने जैसा है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं कि आम बजट हर साल आम जनता को एक झटका देता है, क्योंकि बजट का अर्थ केवल महंगाई बढ़ाने का ब्लू प्रिंट है।
रचना रस्तोगी, मेरठ

सरकार की मंशा
अब सब्सिडी लेनी है, तो पैन कार्ड बनवाना ही पड़ेगा, और वह भी केवल उस व्यक्ति का नहीं, जिसके नाम पर कनेक्शन है, बल्कि पति व पत्नी, दोनों के पास पैन कार्ड हों। ऐसा नहीं होगा, तो वे सब्सिडी से वंचित रह जाएंगे। इसका सीधा-सा अर्थ है कि सरकार सब्सिडी रहित गैस देने की कोशिश कर रही है। कितने ऐसे लोग हैं, जिन्हें पैन कार्ड क्या होता है, यह भी ज्ञात नहीं है। उनके लिए सब्सिडी का लाभ लेने की बात तो बहुत दूर की है। सरकार को इस संदर्भ में जरूर राहत देनी चाहिए।
अरुण कान्त पाण्डेय, शाहजहांपुर

करे कोई, भरे कोई
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने जनता से अपील की है कि जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान जिन लोगों की संपत्ति को नुकसान हुआ है, उसकी भरपायी के लिए अधिक से अधिक दान दें। जब आंदोलन की आड़ में हरियाणा तथा दिल्ली-एनसीआर में मीडिया के कैमरों के सामने गुंडागर्दी, तोड़फोड़ व आगजनी हो रही थी, तो सरकार तब तक मौन रहकर तमाशा देखती रही, जब तक कि हालात काबू से बाहर नहीं हो गए। इससे गुंडागर्दी करने वालों के हौसले बढ़ते गए। जहां उत्पात मचाया जा रहा था, वहां सभी मीडिया के कैमरे थे। इसलिए सरकार को चाहिए कि इस आंदोलन की अगुवाई कर रहे नेताओं की पहचान करके उन्हें जेल में डाला जाए और उनकी संपत्ति की नीलामी करके नुकसान की भरपायी की जाए।
अमर सिंह
चाणक्य प्लेस, पार्ट-2, नई दिल्ली

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