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किस ओर चला बिहार

इसमें दो राय नहीं कि नीतीश कुमार एक सक्षम मुख्यमंत्री हैं। मगर एक कहावत है न कि जौ के साथ घुन भी पिस जाता है। यही अब उनके शासन में दिख रहा है। उनकी सहयोगी पार्टी के विधायक ने एक नाबालिग की अस्मत लूट...

किस ओर चला बिहार
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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इसमें दो राय नहीं कि नीतीश कुमार एक सक्षम मुख्यमंत्री हैं। मगर एक कहावत है न कि जौ के साथ घुन भी पिस जाता है। यही अब उनके शासन में दिख रहा है। उनकी सहयोगी पार्टी के विधायक ने एक नाबालिग की अस्मत लूट ली, सीवान में एक पत्रकार की हत्या की गई, गया में आदित्य को मारा गया और पिछले छह-आठ महीनों में कई मामले सुर्खियों में आए। इसने लोगों के मन में डर पैदा किया है। लगता है कि नीतीश कुमार व उनके सिपहसालार बिहार से बाहर और देश की राजनीति में कुछ ज्यादा ही दिलचस्पी लेने लगे हैं। शराबबंदी बेशक एक प्रशंसनीय पहल है, मगर उनको बिहार में हरेक पैमाने पर खुद को साबित करना होगा, तभी नीतीश बाबू प्रधानमंत्री पद के असली दावेदार हो सकेंगे।
कुमारी निशा राजपूत, गया, बिहार

क्रिकेट संघ पर काबिज नेता
भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष चुन लिए गए हैं। अब गावस्कर, कपिल, द्रविड़, तेंदुलकर और गांगुली जैसे दिग्गज दर्शकों को मैच का आंखों देखा हाल सुनाएंगे और अनुराग ठाकुर जैसे नेता इन दिग्गज खिलाडि़यों वाले बोर्ड का नेतृत्व करेंगे। खेल बोर्डों में अध्यक्ष पद पर नेताओं की उपस्थिति न सिर्फ देश को नुकसान पहुंचाती है, बल्कि खेल-विभूतियों को शर्मिंदा भी करती है। क्या इस शर्मनाक परंपरा के अंत के 'अच्छे दिन' कभी हमें देखने को मिलेंगे?
राज कुमार जैन, विकास नगर, देहरादूना

सच बोलने की सजा
लगता है कि लोकतंत्र शब्द सिर्फ किताबों और संविधान के लिए गढ़ा गया है। बोलने की आजादी है कहां? इसीलिए आए दिन किसी पत्रकार या जागरूक नागरिक की निर्मम हत्या कर दी जाती है। हिन्दुस्तान के पत्रकार राजदेव रंजन की भी ऐसे ही हत्या कर दी गई। सच बोलने वालों को यूं मारा जाता रहेगा, तो सच बोलने की हिम्मत भला कौन करेगा? कौन समाज की कुरीतियों का पर्दाफाश करेगा? जहां पत्रकार जैसा स्तंभ ही सुरक्षित नहीं, वहां आम नागरिक की सुरक्षा कितनी होगी, यह समझा जा सकता है। ऐसे में सभी को जुर्म के खिलाफ अब एकजुट होने की जरूरत है। तंत्र बदलेगा, तभी अपराध रुकेगा।
राकेश भाटिया, बिहार

न्यायपालिका पर प्रहार
हमारा संविधान संसदीय प्रणाली का एक विशेष रूप धारण करता है, जिसमें शासन के तीनों स्तंभों- विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका- के बीच एक अनोखा सामंजस्य रखते हुए उनकी प्रभुत्ता कायम रखी गई, मगर न्यायपालिका को अन्य दोनों स्तंभों के हस्तक्षेप से मुक्त रखा गया। इसलिए 'न्यायपालिका को तो बख्श दो' शीर्षक से मंगलवार को प्रकाशित लेख में लेखक ने भी इन्हीं तत्वों को ध्यान में रखकर उसकी सार्थक समालोचना की है। न्यायपालिका ने जब-जब जरूरी समझा, वह अन्य संस्थाओं को संतुलित करने के प्रयास करती रही है। लेकिन अभी जो कुछ भी हो रहा है, वह हमारी स्वस्थ संसदीय परंपरा का उदाहरण बिल्कुल नहीं हो सकता।
रमेश सिन्हा, गुड़गांव

समझौते के मायने
साल 2003 से शुरू हुआ काम अब जाकर समझौते का रूप लेने में कामयाब हुआ है। भारत, ईरान और अफगानिस्तान के बीच जो त्रिपक्षीय समझौता हुआ है, वह न सिर्फ ऐतिहासिक है, बल्कि दक्षिण एशिया, मध्य एशिया और पूर्वी यूरोप के लिए वरदान जैसा है। हिन्दुस्तान को अब पाकिस्तान की जरूरत नहीं- रूस और पूर्वी यूरोप के दर्जन भर देशों में आसानी से माल पहुंचाया जा सकेगा। बस डर यही है कि न जाने कब ईरान पर कट्टरपंथियों का राज कायम हो जाए, और वे फिर से अमेरिका, यूरोप व संयुक्त राष्ट्र को ललकारने लगें। इसलिए भारत को चाहिए कि बिना देरी किए युद्ध-स्तर पर काम शुरू कर दे। हालांकि कुछ लोग इस समझौते को पाकिस्तान और चीन को मुंहतोड़ जवाब देना मान रहे हैं। इससे हमें बचना चाहिए।
जंग बहादुर सिंह, गोलपहाड़ी

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