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कब सुधरेंगे राजनेता

राजनेताओं के बारे में हम अपनी धारणा बदलना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि उन्हें फिर से अपने पुरखे नेताओं की तरह ईमानदार, नैतिक, शरीफ और खुद्दार शख्स के तौर पर देखें। कुछ नेताओं में हमें ऐसे अक्स दिख भी...

कब सुधरेंगे राजनेता
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 31 Mar 2015 09:50 PM
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राजनेताओं के बारे में हम अपनी धारणा बदलना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि उन्हें फिर से अपने पुरखे नेताओं की तरह ईमानदार, नैतिक, शरीफ और खुद्दार शख्स के तौर पर देखें। कुछ नेताओं में हमें ऐसे अक्स दिख भी जाते हैं, लेकिन प्राय: चंद घंटों के बाद ही वे सांचे टूट जाते हैं और हमारे हाथ महज अफसोस होता है। कुछ वर्ष पहले निर्भया कांड के बाद संसद की तकरीरों में हमने बेहद संजीदा दलीलें सुनी थीं। तब हुकूमत ने भी लोगों की भावनाओं का सम्मान करते हुए नया कानून बनाया था। मगर पिछले महीने एक वरिष्ठ सांसद ने महिलाओं के रूप-रंग और नैन-नक्श के बारे में जैसी टिप्पणी की, वह भले ही कुछ लोगों को बुरी न लगी हो, मगर हमारी नई पीढ़ी, खासकर लड़कियों को नागवार गुजरी है। बेहतर होता कि सांसद महोदय अफसोस जताकर अपना स्पष्टीकरण देते, मगर वह बाद में भी अपनी बात पर कायम रहे। यह बताता है कि स्त्रियों के प्रति संवेदनशील होने की राह में कितनी बड़ी और कैसी-कैसी मुश्किलें हैं। आखिर हमारे नेता कब सुधरेंगे? हम मानते हैं कि वे हमारे बीच से चुनकर जाते हैं, लेकिन हम उन्हें औरों से बेहतर को ही तो चुनते हैं। नेता हमें निराश न करें।
उमेश शाही, गणेश नगर, दिल्ली- 92

साइना का कमाल
बैडमिंटन की दुनिया में यह कमाल किसी भारतीय लड़की ने नहीं किया था। साइना नेहवाल आज चोटी पर हैं। उनके जज्बे, साहस और हुनर को हमारा प्रणाम! देश की बेटियां न सिर्फ उनसे प्रेरणा लेंगी, बल्कि इस पूरे उपमहाद्वीप की लड़कियों के लिए वह एक नजीर बनकर उभरी हैं। हमारी दुआ है कि वह आगे भी इसी तरह के कमाल करती रहें और अपने देश व लड़कियों के नाम रोशन करती रहें।
अजय झा, वसुंधरा, गाजियाबाद

आप की तकरार
आम आदमी पार्टी की आंतरिक लड़ाई ने उसके कार्यकर्ताओं के साथ संभवत: उन सबको निराश किया होगा, जिन्होंने पुरानी दलगत राजनीति से ऊपर उठकर बेहतर विकास, स्वस्थ व साफ-सुथरी राजनीति की आशा में आम आदमी पार्टी को प्रचंड बहुमत से दिल्ली की गद्दी सौंपी थी। लेकिन यह शानदार जीत आम आदमी पार्टी में उच्च पदों पर बैठे लोगों को रास न आई और एक महीने से भी कम समय में उनके आपसी मतभेद सामने आने शुरू हो गए। जिस तरह से इसके कुछ सदस्यों द्वारा वरिष्ठ नेताओं को अनुशासनहीनता और पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए तमाम बड़े पदों से हटाया गया, उससे पता चलता है कि स्वराज और लोकतंत्र की धारणा को मजबूत बनाने वाली आम आदमी पार्टी में भी आंतरिक लोकतंत्र का अभाव है और यहां भी पार्टी के ज्यादातर फैसले एक या कुछ ही लोगों के समूह द्वारा लिए जाते हैं। पार्टी संयोजक का यह कहना कि पार्टी को उन्होंने अपने खून से सींचा है, एक हद तक तो सही है, लेकिन वह पार्टी को खड़ा करने, चलाने और जीतने का श्रेय किसी भी एक या कुछ व्यक्तियों को नहीं दे सकते।
विकास राणा, चिराग दिल्ली

विकल्प के बहाने
आम आदमी पार्टी के नेताओं में चंद दिनों में ही इतना घमासान मच गया की कहीं न कहीं दिल्लीवासियों के जेहन में यह सवाल उठने लगा है कि क्या विकल्प की राजनीति ऐसी ही होती है? अहंकार, महत्वाकांक्षाएं, एक-दूसरे के विरुद्ध घात-प्रतिघात के दांव, स्टिंग ऑपरेशन जैसी बीमारियों से एक ऐसी पार्टी अभी से हांफने और टूटने लगी है, जो जनांदोलन से उपजी थी। पारंपरिक सियासत से ऊबी दिल्ली की जनता ने एक नया विकल्प चुना था, लेकिन यह विकल्प तो दूसरों से भी बदतर दिखने लगा है। लगता है कि आम आदमी के नाम पर बनी इस पार्टी की हालत उन क्षेत्रीय दलों-सी हो गई है, जहां एक व्यक्ति ही सर्वशक्तिमान होता है। आम आदमी पार्टी के तेवर और कलेवर बदलते दिखाई दे रहे हैं। अब सबसे बड़ी चुनौती अरविंद केजरीवाल के लिए यही है कि अपने 67 विधायकों को वह कैसे एकजुट रखेंगे?
राहुल अग्रवाल, बुलंदशहर

 

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