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जरूरत है प्याज आवंटन लोन की..

प्याज यानी भारतीय अर्थव्यवस्था का एक पारिमाणिक मापदंड। मैं जिस कालोनी में रहता हूं, वहां प्याज तब सबसे ज्यादा खाया जाता है, जब वह सस्ता होता है। मैं अपने आप को बुद्धिजीवी समझता हूं, इसलिए प्याज का...

जरूरत है प्याज आवंटन लोन की..
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 01 Sep 2015 04:15 PM
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प्याज यानी भारतीय अर्थव्यवस्था का एक पारिमाणिक मापदंड। मैं जिस कालोनी में रहता हूं, वहां प्याज तब सबसे ज्यादा खाया जाता है, जब वह सस्ता होता है। मैं अपने आप को बुद्धिजीवी समझता हूं, इसलिए प्याज का भाव तब पूछता हूं, जब वह महंगा होता है। कुछ वर्षों पहले प्याज की कीमत 60 रुपये तक हो गई थी। उन दिनों मैंने उधार लेकर प्याज खरीदा था। अब फिर से प्याज की कीमत ऊंची जा रही है। लगता है फिर उधार करना पड़ेगा। आजकल सरकारी- गैरसरकारी दोनों बैंक पढ़ाई, मकान, व्यक्तिगत, कार लोन देने लगे हैं। अतः अर्थनीति बनाने वालों के लिए मेरी एक सलाह है कि इतने सारे लोन स्कीम के तहत एक लोन स्कीम और जोड़ लें। वह स्कीम होगा, 'प्याज आवंटन लोन' इससे मध्यवर्गीय परिवार को यह चिंता नहीं रहेगी कि प्याज किस भाव मिल रहा है।

प्याज दैनिक आवश्यकता है, अथवा संपन्नता का सूचक। उच्च आय वर्ग वाले अपने ब्लैकमनी को व्हाइट बनाने के लिए प्याज आवंटन लोन का सहारा लेंगे। जिस तरह पेट्रोल के भाव बढ़ने से लोगों को ज्यादा फर्क नहीं पड़ता, उसी तरह प्याज की कीमत कितनी भी बढ़ जाए फर्क नहीं पड़ेगा। क्योंकि प्याज खरीदने के लिए भी क्रेडिट कार्ड होंगे, जैसे पेट्रोल के लिए हैं। इससे राजनीतिक उथल-पुथल नहीं होगी, हां कभी-कभी राजद- और जनतादल यू की तरफ से नाराजगी जता कर अपना कर्तव्य निभा लिया जाएगा। कुछ वर्ष पहले प्याज की कीमत ने भाजपा की सत्ता बिखेर दी थी। उस समय सुषमा स्वराज की सरकार दिल्ली में थी। प्याज ने सुषमा जी को ऐसे प्याजी आंसू रुलाए थे कि कजरारी आंखें सूज कर खुद मद्रासी प्याज हो गई थीं।

प्याज अध्यात्म का परिचायक है। इसके अंदर न बीज है, न फल, केवल शल्क मात्र। अतः आध्यात्मिक जनों ने इसे ब्रह्म माना है। आप छिलके उतारते जाइए, अंत में कुछ नहीं बचेगा। वैसे ही आत्मा का परिमार्जन करते रहें, संसार के सारे उपादान आप के लिए खुल जाएंगे। अंत में माया के रूप में शायद ही कुछ बचे। प्याज पूरी तरह एक कंद(सब्जी) है। बगैर इसके आपका किचन -क्रीस्टल- नहीं हो सकता। स्टार होटलों में प्याज के व्यंजन जहां -सोने- के भाव हैं, वहीं ढाबों पर रोटी-दाल के साथ प्याज मुफ्त में दी जाती है।

आपने देखा होगा, प्याज बेचने वाले प्याज की छंटाई बड़े मनोयोग से करते हैं। छंटाई के आधार पर कुछ प्याज सफेदपोश होते हैं। ये दिखते तो सफेद(अच्छे) हैं, पर स्वाद में कड़वे होते हैं। जबकि कुछ दिखने में अच्छे नहीं लगते, पर वे स्वादष्टि होते हैं। आमतौर पर ढ़ाबे वाले इन्हीं स्वादिष्टों का उपयोग करते हैं। राजधानी में पानी-बिजली व जमीन हस्तांतरण के मामले पर आजकल धरने-प्रदर्शन का आयोजन जोर-शोर से हो रहे हैं। पूरे देश में चुनाव बिहार चुनाव की चमक से पक्ष-विपक्ष के नेता चकाचौंध हो रहे हैं। ऐसे में लगता है, प्वाइंट बढ़ाने के लिए राजनेता प्याज को बख्सने वाले नहीं हैं। प्याज पर भी गोष्ठियां, धरने- प्रदर्शन होने लगे हैं।

अमूमन प्याज जब सस्ता होता है, लोग नहीं खाते। जब महंगा हो जाता है, तो दिखा-दिखा कर खाते हैं, और लाइन लगाकर प्याज खरीदते देखे भी जाते हैं। आज प्याज दरअसल स्टेटस सिंबल बनगया लगता है। ज्योतिषियों को कहना है कि इस बार प्याज के कारण दिल्ली सरकार पर -प्याज-सुगंध योग- की छाया है। आक्षेप गणणा के अनुसार दल्लिी सरकार पर प्याज भ्रष्टाचार से बचने हेतु नेता भी ज्योतिषियों की शरण में जाने लगे हैं। अब देखना है कि आनेवाले समय में प्याज की महंगाई योग से बचने के लिए कोई राधे-मां की शरण में जाता है या नहीं..।
अशोक मनोरम, आरजेड 31, ब्लाक एक्स, न्यूरोशनपूरा नजफगढ़

शिक्षा सबसे ताकतवर हथियार है, जिससे दुनिया को बदला जा सकता है। नेल्सन मंडेला के इन शब्दों से हम बखूबी समझ सकते हैं कि शिक्षा किसी भी देश के पूर्ण विकास के लिए कितना अहम है। परंतु आज बड़े दुख की बात है कि भारत विकास के तमाम दावों के बावजूद शिक्षा के क्षेत्र में काफी पीछे है। आज भी हमारे देश में काफी सारे बच्चे शिक्षा के अधिकार से वंचित हैं। दूसरी ओर, सरकारी स्कूल की बदहाली ने इस समस्या को और विकराल रूप दे दिया है। मिड-डे मील में मिलावट, अध्यापकों की अनुपस्थिति, मूल सुविधाओं की कमी बच्चों को स्कूल से दूर ले जा रही है। सरकारी स्कूलों की बदतर होती स्थिति को इस बात से समझा जा सकता है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सरकारी स्कूलों की स्थिति को बेहतर करने के लिए नेताओं और सरकारी अफसरों से अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाने को कहा है। अब सवाल यह है कि क्या नेता और सरकारी अफसर हाईकोर्ट के आदेश का पालन करेंगे? क्या इस फैसले से सरकारी स्कूलों की स्थिति बेहतर होगी? आज हमारी शिक्षा प्रणाली इतनी कमजोर हो चुकी है कि इन मामूली कदमों से कोई बदलाव की उम्मीद नहीं दिखती।
इशिका गुप्ता, मेरठ
eshikag168@gmail.com

प्रतिभा का पलायन

आजकल ब्रेन ड्रेन का प्रचलन बढ़ता जा रहा है। ब्रेन ड्रेन, यानी प्रतिभा का पलायन। अपने देश में रहने की बजाय लोग विदेश में रहना पसंद करने लगे हैं। यहां पढ़ने-लिखने के बाद वे विदेश में जाकर नौकरी करना पसंद करते हैं, क्योंकि वहां उन्हें ज्यादा पैसा और रहने के लिए ज्यादा अच्छी सुख-सुविधाएं मिलती हैं। प्रतिभा-पलायन का सीधा और गहरा दुष्प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था और विकास पर पड़ता है, खासकर भारत जैसे विकासशील देश पर। जब देश के पढ़े-लिखे और प्रतिभाशाली व्यक्ति दूसरे देशों में जाकर नौकरी करते हैं, तो वे वहां की अर्थव्यवस्था के विकास में योगदान देते हैं, न कि अपने देश की अर्थव्यवस्था में। जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर होती हैं। किंतु आज के दौर में इस मान्यता का कोई अनुसरण नहीं करता है। अगर उन्हें विदेश जाने का अवसर मिल जाता है, तो वे अपनी जननी व मातृभूमि को छोड़कर जाने से जरा-सा भी नहीं हिचकते हैं।
मधु त्रिवेदी, नारायणा गांव, नई दिल्ली

नदियां किसके हवाले

भारत में गंगा सिर्फ नदी नहीं है, बल्कि इसका अपना आध्यात्मिक तथा धार्मिक स्थान है। ठीक इसी तरह, भारत में अन्य नदियों का भी विशेष स्थान है, उन्हीं में से एक यमुना भी है, जिसका इतिहास श्रीकृष्ण से जुड़ा हुआ है। आज इसकी स्थिति एक गंदे नाले से ज्यादा कुछ नहीं है, जो दुखद है। एक और दुख होता है कि यमुना और गंगा की सफाई के लिए सिर्फ चंद बैठकों और कमेटियों के गठन से ज्यादा कुछ नहीं हुआ है। एक खबर आई कि यमुना की सफाई गंगा की तर्ज पर होगी, लेकिन होगी कब, यह बताना कठिन है। एक के बाद दूसरी सरकार आती है और फिर शुरू हो जाता है बैठकों का दौर, पर क्या इस सबका फायदा हुआ है?
अतुल कुमार
atulk.journalist@gmail.com

खुद ही असुरक्षित

दिल्ली की बसों में महिलाओं के साथ छेड़खानी व अन्य अपराधों को देखते हुए दिल्ली सरकार ने जुलाई माह से डीटीसी बसों में 2000 मार्शलों की तैनाती शुरू कर दी। लेकिन इसी माह 12 अगस्त की रात को रूट नंबर 534 की एक बस में मार्शल के रूप में तैनात होमगार्ड पर एक सवार ने ही हमला कर दिया और उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। मार्शलों का कहना है कि उन्हें बसों में महिलाओं की सुरक्षा के लिए तैनात तो किया गया है, पर असामाजिक तत्वों को काबू में करने के लिए उनके पास कुछ भी नहीं है और न ही उन्हें कोई विशेष ट्रेनिंग दी गई है। जब मार्शल अपनी सुरक्षा करने में असहाय हैं, तो वे महिलाओं की सुरक्षा कैसे करेंगे?
आसिफ खान, बाबरपुर, दिल्ली-32

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