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कराहता कश्मीर

बड़े दुख की बात है कि भारत का स्वर्ग समझा जाने वाला कश्मीर वर्षों से कराह रहा है। लेकिन उसकी कराह सुनने वाला कोई नहीं है। कश्मीर को देश का मुकुट कहा जाता है। देश का मुकुट आज हिंसा और आगजनी का केंद्र...

कराहता कश्मीर
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 27 Jul 2015 08:25 PM
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बड़े दुख की बात है कि भारत का स्वर्ग समझा जाने वाला कश्मीर वर्षों से कराह रहा है। लेकिन उसकी कराह सुनने वाला कोई नहीं है। कश्मीर को देश का मुकुट कहा जाता है। देश का मुकुट आज हिंसा और आगजनी का केंद्र बन चुका है। कर्फ्यू और धारा 144 तो मानो घाटी के लिए अभिशाप हैं। राज्य की राजनीति में पहली बार भारतीय जनता पार्टी को सत्ता में भागीदारी करने का मौका मिला है। कश्मीर को उसके पुराने स्वरूप में लौटाने के लिए जरूरी है कि वहां पर्यटन व्यवसाय को पंख लगाने का माहौल बनाया जाए। सुरक्षा बलों की संख्या और बढ़ानी हो, तो बढ़ाई जाए, लेकिन घाटी को आबाद किया जाए। देश यह चाहता है कि वह भारत के स्वर्ग को पहले जैसी स्थिति में देखे, न कि आज जैसी स्थिति में।
युधिष्ठिर लाल कक्कड़, गुड़गांव, हरियाणा

कथनी-करनी में फेर

रूस में मोदी-शरीफ की मुलाकात के बाद ये अटकलें लगाई जा रही थीं कि दोनों देशों में मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित हो जाएंगे, लेकिन हम हमेशा की तरह भुलावे में ही आ जाते हैं। यह भी अटपटा-सा लगा कि नवाज से मिलने को मोदी ने उत्सुकता दिखाई। हर भारतीय जानता है कि पाकिस्तान से बात करके हम न केवल अपना समय बर्बाद कर रहे हैं, बल्कि विश्व में एक कमजोर देश के तौर पर खुद को स्थापित भी कर रहे हैं। जब भी कुछ अच्छे की उम्मीद की जाती है, तब पाकिस्तानी सेना गड़बड़ कर देती है। अब तो यह साफ हो गया है कि पाकिस्तान सरकार का अपनी सेना पर कोई नियंत्रण नहीं है। इससे एक बार फिर यह भी साफ हो जाता है कि जब तक पाकिस्तान को भारत सही जवाब नहीं देता, तब तक वह वही सब करता रहेगा, जो अभी कर रहा है।
इंद्र सिंह धिगान, किंग्जवे कैंप, दिल्ली

उम्मीद के बदले

यूपीए सरकार के घोर भ्रष्टाचार एवं महंगाई की मार से दुखी होकर जनता ने नरेंद्र मोदी पर पूरा भरोसा जताया था। मोदी सरकार बनने के बाद सबने यही सोचा कि अच्छे दिन आएंगे, मगर मोदी जी भी जनता की आशा पर खरे नहीं उतर पाए। सबसे पहले तो काला धन देश में लौट न सका और महंगाई घटी नहीं। भ्रष्टाचार के खिलाफ शून्य सहिष्णुता के मामले में सरकार को बस आंशिक सफलता हाथ लगी। वर्तमान घोटालों पर प्रधानमंत्री ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। उन्होंने कहा था कि न खुद खाऊंगा, न खाने दूंगा। अब तो आलम यह है कि अगर कोई नहीं खा पा रहा है, तो वह गरीब ही है।
राजेंद्र सिंह रावत, न्यायखंड, इंदिरापुरम

अनशन का औचित्य

समाजसेवी अन्ना हजारे ने मोदी सरकार के विरुद्ध रामलीला मैदान में अनशन करने की घोषणा की है। यह अनशन भूमि अधिग्रहण बिल और सैनिकों के वन रैंक वन पेंशन के संबंध में होगा। यह सर्वविदित है कि भूमि अधिग्रहण बिल सरकार और विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच गंभीर विचार-विमर्श के अधीन है और अभी उस पर कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है। इसी प्रकार प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री द्वारा यह घोषणा की गई है कि सैनिकों को वन रैंक वन पेंशन प्रदान करने के लिए सैद्धांतिक निर्णय लिया जा चुका है और उसके संबंध में संशोधित पेंशन प्रदान करने के लिए विस्तृत फॉर्मूला बनाया जा रहा है। यह एक अति जटिल व समय लेने वाली प्रक्रिया है। इन स्थितियों में यह स्पष्ट नहीं कि अन्ना हजारे आखिर क्यों आंदोलन करने जा रहे हैं? यह कहीं सरकार के खिलाफ सोची-समझी साजिश तो नहीं? अन्ना हजारे ने पिछली बार जन आंदोलन और अनशन किया था। उसका उद्देश्य जन लोकपाल का गठन करना था और शासक की  जगह सेवक को सत्ता सौंपना था। लेकिन उनके आंदोलन से उपजे अरविंद केजरीवाल भी दिल्ली की जनता को अब तक जन लोकपाल नहीं दिला पाए और उन पर आरोप भी लग रहे हैं।
रवींद्र नाथ शर्मा, नजफगढ़, नई दिल्ली

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