नवरात्र में पूजन से लाभ
शारदीय नवरात्र एक अक्टूबर दिन शनिवार से प्रारम्भ हो रहे हैं। नवरात्र के प्रथम दिन ही कलश की स्थापना की जाती है। कलश स्थापना के लिए पहला शुभ मुहूर्त प्रातः 6:17 से 7:29 तक दूसरा अभिजीत महूर्त 11:32 से...
शारदीय नवरात्र एक अक्टूबर दिन शनिवार से प्रारम्भ हो रहे हैं। नवरात्र के प्रथम दिन ही कलश की स्थापना की जाती है। कलश स्थापना के लिए पहला शुभ मुहूर्त प्रातः 6:17 से 7:29 तक दूसरा अभिजीत महूर्त 11:32 से 12:19 तक तीसरा अमृत काल 02:52 से 04:20 तक। विकासनगर आनन्द आश्रम के पण्डित हरिशंकर मिश्रा ने बताया कि नवरात्र के प्रत्येक दिन की पूजा का अलग लाभ प्राप्त होता है ।
नवरात्र के प्रथम दिन मां शैलपुत्री की पूजा अर्चना की जाती है तथा माता को शुद्ध देशी घी का भोग लगाना चाहिए। इस दिन की पूजा करने से भक्त व उसके परिवार का जीवन रोग मुक्त होता है तथा आरोग्य की प्राप्ति होती है।
नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की साधना की जाती है तथा माता को फल का भोग लगाना चाहिए पूजा से सभी को दीर्घायु एवं बच्चों में सुख की प्राप्ति होती है।
नवरात्र के तीसरे दिन माता चन्द्रघण्टा की पूजा की जाती है तथा दूध एवं खीर का भोग लगता है। पूजा से प्रसन्नता एवं सफलता की प्राप्ति होती है।
चौथे दिन माता कूष्मांडा की पूजा की जाती है तथा माता को मालपुवा का भोग लगता है मां की पूजा करने से बुद्धि में बृद्धि तथा सफलता की प्राप्ति होती है।
नवरात्र के पांचवे दिन स्कन्धमाता कि पूजा अर्चना की जाती है तथा माता को केले के भोग लगाया जाता है। आज की पूजा से आरोग्य एवं धन सम्पदा की प्राप्ति होती है।
नवरात्र के छठे दिन माता कात्यायनी की पूजा होती है तथा माता को शहद का भोग लगता है आज की पूजा करने से स्वास्थ एवं आकर्षण की प्राप्ति होती है।
सातवें दिन माता कालरात्रि की पूजा की जाती है तथा माता को गन्ने के गुड़ के भोग से व्यक्ति को आकस्मिक संकटो से रक्षा होती है।
आठवें दिन माता मां गौरी की पूजा की जाती है तथा माता को नारियल एवं गरी का भोग लगता है तथा आज की पूजा से सन्तान प्राप्ति एवं सुख की प्राप्ति होती है।
नवरात्र के नवे दिन माता सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है तथा माता को तिल से बनी मिठाई का भोग लगता है। इस दिन पूजा से दुर्घटना एवं अकाल मृत्यु से मुक्ति मिलती है।
पंडित हरीशंकर मिश्रा ने बताया की नवरात्र में माता को उनके प्रिय पुष्प चढ़ाने चाहिए तथा जो माता जी को वस्तुएं पसंद है उन्हें कन्याओं को दान करनी चाहिए। उन्होंने बताया कि दुर्गा सप्तसती का पाठ भी अपनी मनोकामना के हिसाब से करना चाहिए।
पूजन-विधि
नवरात्र में माता की पूजा के लिए सर्वप्रथम मां भगवती की मूर्ति को लकड़ी की चौकी पर आसनी डालकर स्थापित करें तथा गंगाजल से स्नान कराना चाहिए। फिर पंचामृत से स्नान करवाकर वस्त्र अर्पित करने चाहिए । उसके बाद मां को कुमकुम, रोली, चंदन, पुष्प से शृंगार करें तथा भोग में फल चढ़ावें। धूप, दीप से पूजन कर दक्षिणा स्वरुप शहद अर्पित करें। अंत में मां भगवती की आरती कर आराधना पूरी करनी चाहिए।