फोटो गैलरी

Hindi Newsमेरी प्यारी दादी मां

मेरी प्यारी दादी मां

रॉबिन के स्कूल की छुट्टियां पड़ गई हैं, इसलिए आज उसे न स्कूल जाने की हड़बड़ी है और न ही होमवर्क की फिक्र। हालांकि मम्मी उसे जगाने के लिए कई बार बोल चुकी हैं, फिर भी वह आलस में बिस्तर पर पड़ा है। तभी...

मेरी प्यारी दादी मां
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 20 May 2015 01:22 PM
ऐप पर पढ़ें

रॉबिन के स्कूल की छुट्टियां पड़ गई हैं, इसलिए आज उसे न स्कूल जाने की हड़बड़ी है और न ही होमवर्क की फिक्र। हालांकि मम्मी उसे जगाने के लिए कई बार बोल चुकी हैं, फिर भी वह आलस में बिस्तर पर पड़ा है। तभी मम्मी का मोबाइल फोन बज उठता है। वह मोबाइल पर बात करते-करते रॉबिन से कहती हैं- ‘बेटा, दादी मां से बात कर लो।’

रॉबिन- ‘दादी मां, प्रणाम। आप कैसी हो? आप यहां कब आओगी?’
दादी मां- ‘इस बार मैं नहीं, तुम लोग अपने गांव सोनाहाट आओगे। तुम्हारी मम्मी ने कहा है।’

दादी मां से बात करने के बाद रॉबिन ब्रश करने लगता है। उसी दौरान उसे ख्याल आता है कि पिछली बार जब वह दादी के पास गया था, तब उसे बहुत मजा आया था। वहां सुबह सूरज का पेड़ों के पीछे से उगना और शाम को पहाड़ों के पीछे छिप जाना देखकर सुबह-सुबह ही उसका मस्ती का मूड बन जाता था। इसके बाद दादी मां, पड़ोस की उनकी सहेलियां और छोटे-छोटे बच्चों के साथ नदी के किनारे जाना, वहां रेत से खेलना और घंटों पानी में नहाना। रॉबिन की यादों में लालू काका भी समाए हुए थे। अरे! हां, लालू काका के खेत से ताजे तरबूज, खरबूज और ककड़ी खाने का आनंद अलग ही था। इन यादों में खोए रॉबिन के होठों पर मुस्कराहट तैर गई।

सोमवार की सुबह सभी गांव की ओर चल दिए। सुपरफास्ट ट्रेन से रॉबिन अपनी छोटी बहन रिया और मम्मी-पापा के साथ गांव की ओर रवाना हो गया। उसे ट्रेन में खिड़की के बगल की सीट पर बैठना बहुत पसंद है। रास्ते में हरे-भरे खेत, पेड़-पौधे, नदी, नए-पुराने घर उसके मन को मोहित कर लेते हैं।

इतने में चाय-कॉफी बेचने वाला आया। सबने चाय की चुस्की ली। रॉबिन ने मम्मी से पूछा- ‘मम्मी, आज दादी मां ने खाने में क्या बनाया होगा?’
मम्मी- ‘वही तुम्हारी मनपसंद खीर और कचौडियां उन्होंने बनाई होंगी।’

रॉबिन और उसकी मम्मी की बातचीत जारी थी। इसी बीच पापा ने इशारा किया कि अब ट्रेन से उतरने की तैयारी करो। उन्होंने कहा- ‘अब हमारा स्टेशन आने वाला है।’
कुछ ही पलों बाद रॉबिन, रिया और उसके पेरेंट्स प्लेटफॉर्म पर थे। फिर वहां से बाहर आकर उन्होंने सोनाहाट जाने वाले तांगे पर अपना सारा सामान रखा और पूरा परिवार तांगे पर सवार हो गया। फिर क्या था! घोड़े सरपट दौड़ने लगे।

घर पहुंचकर रॉबिन ने दादी मां को प्रणाम किया। उसने दादी मां से पूछा- ‘दादी मां, मेला कब लगेगा?’
दादी मां-‘अरे! रॉबिन मेला तो चल रहा है। तुम चलोगे?’
‘नेकी और पूछ-पूछ।’
शाम को दादी मां के साथ रॉबिन और रिया मेले के लिए चल पड़े।

मेले में घरेलू और खेती के काम आने वाले सामान और तरह-तरह के पशु-पक्षी बिक रहे थे। इस मेले में पशुओं को सजाने के लिए तरह-तरह के मोती व जूट की रस्सी से बने सामान भी थे। फसलों के बीज, फर्टिलाइजर, नई-नई तकनीक, खेती में इस्तेमाल आने वाले औजार बिक रहे थे। इन्हें पहली बार देखकर रॉबिन रोमांचित था।

उसने दादी मां से कहा- ‘दादी मां, तुम कितनी प्यारी हो। जानती हो, ऐसा मेला मैंने पहली बार देखा। यहां से वापस दिल्ली जाकर अपने दोस्तों और मैडम को बताऊंगा। वाकई मेरी नॉलेज यहां आकर काफी बढ़ गई।’

रॉबिन और रिया तरह-तरह के झूलों पर झूले। इनके अलावा उन्होंने ऊंट, घोड़े और बैलगाड़ी की सवारी का भी भरपूर मजा लिया। ऊंटगाड़ी पर बैठ कर तो उन्होंने पूरे मेले की सैर की। वहां गन्ने का ताजा रस बिक रहा था, तो गन्ने का रस भी पिया। इसके बाद घर लौट आए। घर आकर रॉबिन और रिया दादी मां के गले से लिपट कर बोले- ‘थैंक्यू दादी मां! सच, आप बहुत प्यारी हो।’ 

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें