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लंगूर जैसी आवाज बनी रोज़ी-रोटी का ज़रिया

बंदरों के उत्पात से निपटने में ‘लंगूर मैन’ कारगर साबित हुए हैं। एनडीएमसी की ओर से लंगूरों की आवाज निकालने वाले 40 ‘लंगूर मैन’ की तैनाती वीवीआईपी क्षेत्र में की गई है। ये लोग...

लंगूर जैसी आवाज बनी रोज़ी-रोटी का ज़रिया
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 01 Sep 2015 10:03 AM
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बंदरों के उत्पात से निपटने में ‘लंगूर मैन’ कारगर साबित हुए हैं। एनडीएमसी की ओर से लंगूरों की आवाज निकालने वाले 40 ‘लंगूर मैन’ की तैनाती वीवीआईपी क्षेत्र में की गई है। ये लोग सांसदों-मंत्रियों के बगीचे उजाड़ने वाले बंदरों को लंगूर की आवाज निकालकर भगाते हैं।

एनडीएमसी क्षेत्र को दिल्ली के सबसे ज्यादा हरे-भरे नागरिक क्षेत्रों में गिना जाता है। रिज क्षेत्र के नजदीक होने के चलते भी जंगल से अक्सर बंदरों के झुंड आबादी क्षेत्र में आ जाते हैं। एनडीएमसी क्षेत्र में ही सांसदों, मंत्रियों, न्यायाधीशों और बड़े नौकरशाहों के आवास हैं। तमाम सरकारी कार्यालय भी यहां मौजूद हैं। बंदर खाना छीनने के चक्कर में अक्सर ही लोगों को काट भी लेते हैं।

तमाम तरीके आजमाने के बाद भी बंदरों के उत्पात पर लगाम लगाने में नाकाम रहे एनडीएमसी ने अब ‘लंगूर मैन’ का सहारा लेना शुरू किया है। पहले लंगूर पालने वाले लक्ष्मण कुमार उर्फ बाला बताते हैं कि लंगूर की आवाज सुनते ही बंदर डर जाते हैं। लंगूर के साथ रहकर उन्होंने उसकी आवाज निकालनी सीखी। आज यही उनकी आजीविका बन गया है।

पहले बंदरों को भगाते थे लंगूर

बंदरों के उत्पात पर काबू पाने के लिए पहले लंगूरों का सहारा लिया जाता था। एक बड़ी सी रस्सी में बांधकर रखवाला (हैंडलर) लंगूर के साथ चलता था। हालांकि, कुछ संस्थाओं ने इस पर यह कहते हुए आपत्ति जाहिर की कि एक जानवर को डराने के लिए दूसरे का सहारा नहीं लेना चाहिए। यह भी कहा गया कि लंगूर शिड्यूल दो का प्राणी है। इसलिए उसे इस तरह नहीं रख सकते। इसके बाद हाईकोर्ट के आदेश से बंदर भगाने में लंगूर के इस्तेमाल पर बैन लगा दिया गया।

रखवालों ने ही सीख ली आवाज़

लंगूरों पर लगाई गई पाबंदी के बाद रखवालों ने ही उनकी आवाज निकालना सीख लिया। एनडीएमसी ने लंगूरों की आवाज निकालने वालों को भी बंदर भगाने में प्रभावी पाया। इसके बाद से ही परिषद ने एक ठेकेदार के जरिए 40 ‘लंगूर मैन’ की सेवाएं रखी हैं। लुटियन क्षेत्र के 40 महत्वपूर्ण जगहों पर इनकी तैनाती की गई है। कहीं से बंदरों के झुंड के उत्पात की सूचना मिलने पर उन्हें वहां भी भेजा जाता है।

लंगूर मैन को वेतन मिलता है

एनडीएमसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि लंगूरमैन को न्यूनतम वेतन यानी 349 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से वेतन दिया जाता है। यह लगभग साढ़े आठ हजार रुपये महीना पड़ता है। एनडीएमसी सूत्र लंगूरमैन को दैनिक वेतन भोगी के तौर पर रखे जाने के संकेत भी दे रहे हैं। लंगूरमैनों के कामकाज पर निगरानी रखने वाले वेटनरी अस्पताल मोतीबाग के मेडिकल सुपरिटेंडेंट प्रमोद कुमार बताते हैं कि एनडीएमसी को औसतन एक दिन में पांच शिकायतें बंदरों के उत्पात की मिलती हैं।
 
इन उपायों से काबू नहीं आए बंदर:
- एनडीएमसी क्षेत्र से पकड़कर असोला और भाटी माइंस के जंगल में छोड़ना
- बंदरों को महत्वपूर्ण इमारतों से दूर रखने के लिए हल्के करंट वाला टेप लगाना
- बंदरों को भगाने के लिए तेज आवाज वाली हल्के रबर की गन का इस्तेमाल

लंगूर की आवाज से ही बन गई है पहचान

बचपन से ही लंगूर का साथ रहा है। लंगूर के एक छोटे बच्चे को पाल-पोस कर बड़ा किया था। उसी को लेकर बंदर भगाया करता था। लेकिन, पाबंदी लगने के बाद लंगूर का साथ छूट गया। पर लंगूर के साथ रहकर सीखी गई बोलियां ही अब बंदर भगाने के काम आ रही है। अब तो लंगूर की यही आवाजें ही मेरे जीवन की पहचान बन गई हैं। आजमगढ़ जिले के मूल निवासी लक्ष्मण कुमार उर्फ बाला कुछ इन्हीं शब्दों में अपने जीवन की कहानी बयान करते हैं।

पांचवी तक की पढ़ाई करने वाले बाला को शुरू से ही लंगूर पालने का शौक था। अपने एक रिश्तेदार के साथ रहकर उन्होंने लंगूरों को पालने का अपना यह शौक पूरा करना शुरू किया। बाला बताते हैं कि उन्होंने एक लंगूर के बच्चे को पाला था। उस लंगूर के साथ मिलकर वह दिल्ली में बंदर भगाने का काम करने लगे। लेकिन, बाद में लंगूरों का प्रयोग करने पर पाबंदी लग गई। इसके बाद अपने लंगूर को उन्हें जंगल में छोड़ने के लिए कहा गया। वो लंगूर को जंगल में छोड़कर आते लेकिन वह दोबारा लौटकर उनके पास आ जाता।

लंगूर दोबारा न लौटे इसके लिए उन्होंने लंगूर की आंख पर पट्टी बांध दी और उसे रिज के जंगल में ले जाकर छोड़ दिया। बाला बताते हैं कि आज उनकी पहचान लंगूर मैन के तौर पर हो गई है। लोग उन्हें बुला-बुलाकर भी लंगूर की आवाज सुनते हैं। लंगूर की आवाज ही उनकी रोजी-रोटी का जरिया भी बना हुआ है। बाला के साथ ही बंदर भगाने वाले प्रमोद, अमित, धर्मेन्द्र आदि की भी कहानी कुछ इसी तरह की है। जबकि, लंगूर मैन उपलब्ध कराने के लिए एनडीएमसी के साथ अनुबंध करने वाले नारायण नाथ बताते हैं कि जहां भी बंदरों के उत्पात की शिकायत आती है वहां पर लंगूर मैन भेजे जाते हैं।

निकालते हैं अलग-अलग तरह की पांच से ज्यादा आवाजें

बाला, प्रमोद व अमित आदि लंगूर मैन बताते हैं कि वे बंदरों को भगाने के लिए लंगूरों द्वारा निकाली जाने वाली पांच अलग-अलग आवाजों का प्रयोग करते हैं। जंगल में रहने के चलते बंदर और लंगूरों में अक्सर ही टकराव होता रहता है। आकार में बड़े होने के चलते लंगूरों से बंदर डरते हैं। इसलिए लंगूरों की आवाज सुनते ही वे वहां से भागने लगते हैं। लंगूरों द्वारा निकाली जाने वाली कुछ आवाजें झुंड को एकत्र करने वाली होती है। इन्हें सुनकर तो बंदरों का बड़ा झुंड भी भागने में ही भलाई समझता है।

खाने की वजह से बंदरों को रास आती है दिल्ली

खाने की बहुतायत की वजह से बंदरों को दिल्ली रास आती है। अक्सर ही लोग बंदरों को केला, सेब जैसे फल और ब्रेड, चना आदि उपलब्ध कराते हैं। इसके चलते बंदर जंगल में खाना ढूंढने की अपनी आदत छोड़कर दिल्ली में ही बना रहता है। भूखा होने पर वह किसी से भी खाना छीनने लगता है।

निजी तौर पर भी रखे गए हैं लंगूर मैन

एनडीएमसी क्षेत्र की कुछ कोठियों में लोगों ने निजी तौर पर भी लंगूर मैन की नियुक्ति की हुई है। इन कोठियों में घरेलू कामगारों की तरह ही लंगूर मैन को भी स्थायी जगह दी गई है। बंदरों के उत्पात पर ये लोग लंगूरों की आवाज निकालकर उन्हें भगाते है।

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