रोहतास के किसान ने खोजा उन्नति का बीज
पूरे विश्व में जहां औषधीय पौधों के विलुप्त होने को लेकर चिकित्सक, वैज्ञानिक चिन्हित हैं, वहीं ग्रामीण क्षेत्र परसथुआं के पटना गांव में औषधीय पौधों की खेती आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। गांव के ही...
पूरे विश्व में जहां औषधीय पौधों के विलुप्त होने को लेकर चिकित्सक, वैज्ञानिक चिन्हित हैं, वहीं ग्रामीण क्षेत्र परसथुआं के पटना गांव में औषधीय पौधों की खेती आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। गांव के ही आयुर्वेदिक चिकित्सक स्व. पं. रामदल त्रिगुण ने इसकी खेती 6 दशक पहले शुरू की थी।ड्ढr ड्ढr इन्होंने उस समय उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, रांची के जंगलों से सैकड़ों औषधीय पौधे लाये थे। वर्तमान में उनके सुपुत्र पंडित नरेन्द्र नाथ त्रिगुण ने भी अपने पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए उक्त पौधों की खेती बड़े ही सुन्दर तरीके से कर रखी है। सैकड़ों अराध्य रोगियों के परिवार को उजरने से बचाना है तो अपनी आर्थिक स्थिति को मजवूत करते हुए अपने क्षेत्र का नाम रौशन किया है। इन्होंने अपने पिता के सनिग्ध में में रहकर दुर्लभ जड़ी बुटियों के गुणों के बारे में जाना फिर तो उन्होंने भी इस औषधीय पौधों की खेती का काफी विस्तार किया। इन्होंने जिन दुर्लभ पौधों की खेती की है उनमें व्रह्मी श्वेत दुर्ग, कनेर, भागंरा, बरियार, कवलगट्टा, प्लास, बाकुची, नागर मोथा, गुम, चाकड़, इन्द्रयव, सत्यनाशी, पीला धतूरा, गिलोम, छोटी दुद्धि, बड़ी दुद्धि, कृष्ण धतूरा, कटंकारी, ककुरौधा, हिरनपदी, जिमीकंद, गुड़मारी, गुलगुल, अश्वगंधा, बिषकडा, चुहर भरमाड़, सटुड़, भकटैया, हुलहुल, अतीसा, बकाइन, ढकनी, निसोड़ा, निठोहरा, थनैली, जर्राही लाल घास, रत्न ज्योति, संजीवनी, हर्दे, रेंगनी, बर्रे के पौधे शामिल हैं। इन पौधों से वे औषधि भी बनाते हैं। उनके द्वारा बनाई गई औषधी झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश से आये विभिन्न रोगों से पीड़िता रोगियों द्वारा सेवन किया जाता है। अपने गांव से थोड़ी दक्षिण औषधीयडीह के नाम से विख्यात उक्त खेत के नजदीक आने से ही पता चल जाता है कि यहां सुगंधित कुछ पौधे हैं। रात के समय उनके खेत से उठने वाली सुगंधित बायु का झोंका लोगों को मद मस्त कर देता है। इनके उपवन में रातरानी, चम्पा, चमेली जैसी अनेक खुशबूदार पौधे भी हैं। शिक्षा पेशे से जुड़े श्री त्रिगुण सेवाव्रत से ओत-प्रेत हैं। उनके बच्चे तथा बच्चियां भी उनके इस पुनीत कार्य में महत्वपूर्ण योगदान करते हैं। जिनके परिश्रम का परचम रंग लाता जा रहा है।