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जीवन में आगे बढ़ने के लिए ज़रूरी है लक्ष्य

द्रोणाचार्य पाण्डवों और कौरवों के गुरु थे। सभी शिष्यों को लगता था कि अर्जुन ही द्रोण का चहेता शिष्य था। गुरु ने एक दिन उनकी योग्यता परखने के लिए खास परीक्षा तय की। वे सभी को जंगल में ले गए। वहां पेड़...

जीवन में आगे बढ़ने के लिए ज़रूरी है लक्ष्य
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 31 Mar 2015 03:05 PM
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द्रोणाचार्य पाण्डवों और कौरवों के गुरु थे। सभी शिष्यों को लगता था कि अर्जुन ही द्रोण का चहेता शिष्य था। गुरु ने एक दिन उनकी योग्यता परखने के लिए खास परीक्षा तय की। वे सभी को जंगल में ले गए। वहां पेड़ पर उन्होंने लकड़ी की एक चिड़िया बांध दी और फिर सभी शिष्यों को कुछ दूरी से उस चिड़िया पर निशाना लगाने को कहा।

सर्वप्रथम उन्होंने युधिष्ठर को बुलाया। जब युधिष्ठिर ने बाण उठाया तो गुरु ने पूछा कि उन्हें क्या दिखाई दे रहा है? युधिष्ठर बोले कि वे सब कुछ देख पा रहे हैं पेड़, पक्षी, पत्तियां, सभी भाई और उन्हें भी। द्रोण ने तुरंत उन्हें बाण रखने को कहा। वे बोले कि वह ये चिड़िया एक बाण में नहीं गिरा पाएंगे।

फिर उन्होंने दुर्योधन को बुलाया। वह दंभ में भरा बाण उठा वहां आया। वह बाण छोड़ने की तैयारी में ही था कि गुरु ने रोका और वही प्रश्न किया कि उसे क्या दिख रहा है वहां पेड़ पर। दुर्योधन बोला उसे पेड़, पक्षी और गुरु तीनों दिख रहे हैं। गुरु ने उसे भी बाण चलाने से मना कर दिया।

एक-एक कर सभी आते गए पर कोई भी गुरु को संतुष्ट नहीं कर पाया। अब द्रोण ने अपने पुत्र अश्वत्थामा को बुलाया। जब उनसे पूछा गया कि वे क्या-क्या देख पा रहे हैं तब उन्होंने उत्तर दिया कि वह केवल पक्षी को देख पा रहे हैं जो लकड़ी की है। अब द्रोण ने अर्जुन को बुलाया और चिड़िया को एक ही बाण में गिराने के लिए कहा। अर्जुन ने गुरु को प्रणाम किया और निशाना साधा।

गुरु ने अर्जुन से पूछा कि वे क्या देख पा रहे हैं, अर्जुन ने उत्तर दिया कि वे केवल चिड़िया की आंख देख पा रहे हैं। जिसपर निशाना लगाना है। गुरु के यह पूछने पर कि क्या वे और कुछ आस-पास देख पा रहे हैं, अर्जुन ने मना कर दिया। गुरु, अर्जुन का उत्तर सुन प्रसन्न हुए। अर्जुन ने एक ही बाण से चिड़िया को गिरा दिया।

द्रोण सभी शिष्यों से बोले कि जीवन में लक्ष्य प्राप्ति के लिए इसी तरह की एकाग्रता की जरूरत होती है। ध्यान केंद्रित करने से लक्ष्य को आसानी से पाया जा सकता है। सभी शिष्य यह मान गए कि अर्जुन सर्वश्रेष्ठ हैं और उन्हें भी एकाग्रता का पाठ सीखना चाहिए।

कहानी से मिलती हैं कई सीख

आज के समय में अगर हम बच्चों की बात करें, खासकर शिक्षा ग्रहण करने की और सीखने की तो सबसे बड़ी चुनौती है  उन्हें एकाग्रचीत करने की। बच्चे हो या बड़े, हमारे आसपास ध्यान हटाने के हजारों कारण बन जाते हैं।

फोन, टीवी, वीडियो गेम्स, दोस्त, अनगिनत उत्सव और भी न जाने क्या-क्या। ऐसे में बच्चे ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते हैं। यहां तक कि ध्यान तो बाद में लगेगा, वे तो शायद ही अपना लक्ष्य निर्धारित कर पाते हैं। यहां सिर्फ कॅरियर या किसी परीक्षा की तैयारी को लक्ष्य नहीं कहा जा रहा है।

अगर बच्चा किसी खेलकूद या गतिविधि को अपनाता है तब भी वह कोई विशेष लक्ष्य तय करने में असमर्थ रहता है तो उसे पाने में दिक्कतें आएंगी। कुछ एक बच्चे ही अंतिम लक्ष्य को पाते हैं, ज्यादतर तो बीच में ही रास्ता बदल देते हैं।

अक्सर बच्चे अपनी पसंद बदलते नजर आते हैं। शुरुआती असफलता से घबराकर निरंतर प्रयास करने के बजाय वे दूसरा  विकल्प चुन लेते हैं और फिर ये सिलसिला चलता रहता है। यहां समस्या विकल्प के कठिन होने की नहीं है न ही उसमें कोई कमी होती है, बस कमी है लक्ष्य निर्धारित कर, निरंतर उसी दिशा में सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ते रहने की।

यहां अभिभावकों, शिक्षकों का योगदान और प्रोत्साहन महत्वपूर्ण रहता है। कई बार तो दोस्त और पड़ोसियों की सलाह पर अभिभावक स्वयं असमंजस में रहते हैं। उनकी देखा देखी बच्चों के लक्ष्य बदलते नजर आते हैं। कहीं भी कुछ नया देख-सुन कर बच्चों की मर्जी जाने बगैर उन्हें रास्ता बदल लेने को कहते हैं।

बच्चों पर इसका असर काफी नकारात्मक रहता है क्योंकि वे तो स्वयं ही किसी एक चीज को एकाग्रता से करने में मुश्किल महसूस करते हैं। उस पर अगर अभिभावक भी अपनी राय या पसंद बदलते रहेंगे तो बच्चे और ज्यादा अस्थिर हो जाएंगे।

उदाहरण एक-

अगर कोई आदमी कहीं यात्रा पर जा रहा हो तो वह गंतव्य स्थान (डेस्टिनेशन) तक पहुंचने वाली बस में सफर करेगा। ऐसा संभव नहीं कि हम में से कोई भी ऐसी बस में बैठ जाए जिसके पहुंचने का स्थान निर्धारित न हो या स्पष्ठ न हो। यानी जब हम ऐसी किसी बस या वाहन में नहीं बैठेंगे जहां यही पता न हो कि वह कहां पहुंचाएगी तो हम बिना लक्ष्य के कोई दिन कैसे शुरु कर सकते हैं। हमारे दिन का सफर किसी लक्ष्य प्राप्ति से जुड़ा होना चाहिए फिर वह लक्ष्य भले ही छोटा सा ही क्यों न हो।

उदाहरण दो-

फुटबॉल का कोई खिलाड़ी खेल में माहिर है और वह मैदान में फुटबॉल खेल रहा है तो उसका खेल कौशल तो अच्छा होना चाहिए। परंतु उसका कौशल बिना लक्ष्य के किसी काम का नहीं। मैदान में अगर गोल पोस्ट ही न हो तो उसका कौशल महत्वहीन है। वह गोल कहां करेगा? वह दिशाहीन हो जाएगी।

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