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दूर देश से आ गए हैं खास मेहमान

इस मौसम में तुम्हारे शहर की झीलों, नदियों, पक्षी अभयारण्य और चिड़ियाघरों को प्रवासी पक्षी अपना बसेरा बना लेते हैं और ये बसंत पंचमी यानी फरवरी-मार्च तक यहां से वापस अपने देश या फिर इससे आगे चले जाते...

दूर देश से आ गए हैं खास मेहमान
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 26 Nov 2014 04:08 PM
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इस मौसम में तुम्हारे शहर की झीलों, नदियों, पक्षी अभयारण्य और चिड़ियाघरों को प्रवासी पक्षी अपना बसेरा बना लेते हैं और ये बसंत पंचमी यानी फरवरी-मार्च तक यहां से वापस अपने देश या फिर इससे आगे चले जाते हैं। पर तुम कितना जानते हो इनके प्रवास यानी माइग्रेशन के बारे में? जितना ही इन्हें समझोगे, हैरान रह जाओगे तुम...चलो आज बात करते हैं इनके माइग्रेशन की।photo1

क्या होता है माइग्रेशन
यह लैटिन शब्द ‘माइग्रेटस’ से आया है, जिसका मतलब होता है बदलाव। इसलिए पक्षियों के द्वारा किसी विशेष मौसम में भौगोलिक बदलाव को माइग्रेशन नाम दिया गया है। हिंदी में इसे प्रवास कहा जाता है। प्रवास का अर्थ है, यात्रा पर जाना या दूसरे स्थान पर जाना। लेकिन उनका यह प्रवास केवल अपने देश में सीमित नहीं होता, बल्कि दूर-दूर के देशों तक होता है, जहां भी इन्हें अपने अनुकूल मौसम और भोजन मिल जाए। कई पक्षी तो ऐसे हैं, जो कई माह का सफर तय कर दूसरे देश पहुंचते हैं।photo2

कहां से आते हैं ये पक्षी
ऐसा नहीं कि दूसरे देश के पक्षी ही भारत आते हैं, बल्कि भारत के पक्षी भी दूसरे देश जाते हैं। भारत के पक्षी लगभग 10,000 किलोमीटर का सफर तय करके रूस के निकट साइबेरिया पहुंचते हैं और इसी प्रकार उस देश के पक्षी भारत में आते हैं। जो पक्षी भारत में आकर सर्दियां गुजारते हैं, वे उत्तरी एशिया, रूस, कजाकिस्तान तथा पूर्वी साइबेरिया से यहां आते हैं। 2,000 से 5,000 किलोमीटर की दूरी तो ये आसानी से उड़कर पार कर लेते हैं, यद्यपि इसमें इन्हें काफी समय लगता है। फिर भी यह बहुत आश्चर्यजनक है कि समुद्री और दुर्गम रेगिस्तानी प्रदेशों को ये कैसे पार कर लेते हैं, क्योंकि इन कठिन स्थानों को वायुयान से पार करने में मनुष्य भी हिचकिचाते हैं, फिर ये पक्षी तो आकार में बहुत बड़े भी नहीं होते। इनमें गेहवाला जैसी छोटी चिड़िया और छोटे-छोटे परिंदे भी सम्मिलित हैं। भारत का सुप्रसिद्ध पक्षी राजहंस भारत में सर्दियां गुजारता है और तिब्बत जाकर मानसरोवर झील के किनारे अंडा देता है। पक्षियों का यह विचित्र स्वभाव देखकर पक्षी विज्ञान के विशेषज्ञ भी आश्चर्यचकित रह जाते हैं।photo3

झुंड बना करते हैं ‘माइग्रेशन’
पक्षियों में एक हैरत में डालने वाली बात ये है कि जब ये सभी प्रवास के लिए निकलते हैं तो अकेले नहीं, बल्कि हजारों की संख्या में दल बनाकर जाते हैं।

भारत की मेजबानी
गर्मी हो या ठंड भारत प्रवासी पक्षियों की मेजबानी में हमेशा आगे रहता है, चाहे वह भोजन हो या आवास की जरूरत। किंगफिशर, रोजी, पेलिकन, वुड सैंडपाइपर, स्टार्लिग ब्लूथ्रोट आदि कुछ ऐसी प्रवासी पक्षी हैं, जो अनुकूल हवा देखकर स्थान बदलते हैं। यदि वे एक बार माइग्रेशन शुरू कर देते हैं तो केवल खराब मौसम ही उन्हें ऐसा करने से रोक सकता है। साइबेरियन क्रेन, ग्रेट फ्लेमिंगो, रफ जैसे काफी पक्षी माइग्रेटिंग के दौरान काफी ऊंची उड़ान भरते हैं। ये तभी प्रवास पर जाते हैं, जब इन्हें लगता है कि इनके पास इतना फैट है, जो इनकी यात्रा के दौरान साथ देगा।photo4

ठंड में भारत आने वाले पक्षी
साइबेरियन क्रेन, ग्रेटर फ्लेमिंगो, रफ, ब्लैक विंग्ट स्टिल्ट, कॉमन टील, कॉमन ग्रीनशैंक, नॉर्दर्न पिनटेल, रोजी पेलिकन, गडवाल, वूड सैंडपाइपर, स्पॉटेड सैंडपाइपर, यूरेसियन विजन, ब्लैक टेल्ड गॉडविट, स्पॉटेड रेडशैंक, स्टार्लिग, ब्लूथ्रोट, लांग बिल्ड पिपिट।

क्यों आते हैं हमारे देश
शीत ऋतु यानी जाड़े में इन प्रवासी पक्षियों के यहां बर्फ जम जाती है और ऐसी कंपकंपाने वाली ठंड के कारण इन पक्षियों का आहार बनने वाले जीव या तो मर जाते हैं या जमीन में दुबक कर शीत-निद्रा में चले जाते हैं, जिससे वे सर्दियों के समाप्त होने के बाद ही जागते हैं। ऐसी स्थिति में इन पक्षियों के लिए आहार ढूंढना और जिंदा रहना मुश्किल हो जाता है। इसलिए वे भारत जैसे गर्म देशों में चले आते हैं, जहां बर्फ नहीं जमती और उन्हें आहार भी अच्छे से मिल जाता है।

प्रवासी पक्षियों को पहचानने की कोशिश
अनेक संस्थाएं हैं, जो इन प्रवासी पक्षियों को मेटल के रिंग पहना देती हैं और अपने देश में मिलने वाली पक्षियों की सूचना संबंधित देशों को भेजती हैं। इससे यह बात बहुत आसानी से जान ली जाती है कि कौन से पक्षी किस देश के हैं, तथा वे किस-किस देश में प्रवास के लिए जाते हैं।

वर्ल्ड माइग्रेटरी बर्ड डे
वर्ल्ड माइग्रेटरी बर्ड डे दो दिन का कार्यक्रम है, जो मई के दूसरे वीकएंड पर सेलिब्रेट किया जाता है। इस दिन को मनाने के पीछे का असल मकसद है लोगों के बीच इन प्रवासी पक्षियों व उनके आवास के लिए सुरक्षा की भावना लाना। यूनाइटेड नेशन एक ऐसा संगठन है, जो इस ग्लोबल अवेयरनेस कैंपेन का समर्थन करता है। इस दिन पूरी दुनिया में लोग पब्लिक ईवेंट्स जैसे- बर्ड फेस्टिवल, एजुकेशन प्रोग्राम या पक्षियों पर आधारित और भी कई कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं।

माइग्रेशन के दौरान चुनौतियां
हालांकि माइग्रेशन को आसान बनाने के लिए ये पक्षी अपने शरीर को अनुकूलित कर लेते हैं, पर फिर भी इन्हें अपने इस सफर में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
-पर्याप्त भोजन न मिलना और भुखमरी
-हवा में उडम्ते हुए ऊंची बिल्डिंग या हवाईजहाज से टक्कर
-प्रदूषण या चल रहे निर्माण कार्यो की वजह से ठहराव या निवास स्थान के विनाश से
-खराब मौसम और तूफान भी इन्हें घायल कर देते हैं या राह से भटका देते हैं
माइग्रेशन खतरनाक है, पर ढेर सारे पक्षियों के लिए आवश्यक भी। हर वर्ष होने वाले इस माइग्रेशन या प्रवास के बाद पक्षी अपने देश को खुशहाली के साथ लौटते हैं।

दिल्ली में कहां आए कितने मेहमान

*नजफगढ़ में इस साल 16 प्रजाति के प्रवासी पक्षियों ने अपना घर बनाया है। अब तक 5000 से ज्यादा चिड़ियों को यहां देखा गया है, जो दूर देश से आयी हैं। दिल्ली में प्रवासी पक्षियों का जमावड़ा लगने का दूसरा प्रसिद्ध स्थान है ओखला अभयारण्य। इस वर्ष अब तक वहां करीब 7000 प्रवासी पक्षी पहुंच चुके हैं। संभावना जताई जा रही है कि अभी और पक्षी आएंगे। वहीं दिल्ली के चिड़ियाघर में भी पक्षियों ने आना शुरू कर दिया है।

*दूर देशों से शीत ऋतु में भारत आने वाले इन प्रवासी पक्षियों का जमावड़ा इन प्रमुख स्थानों पर जरूर लगता है और वह भी बहुतायत की संख्या में।
यमुना बायोडायवर्सिटी पार्क, नई दिल्ली

*यहां रेड क्रेस्टेड पोचार्डस, टफ्टेड पोचार्डस, यूरेसियन विजन, पिनटेल्स और कूट्स जैसे पक्षी, जो साइबेरिया व सेंट्रल एशिया से आते हैं, मुख्य रूप से जनवरी माह में देखे जाते हैं।
भरतपुर बर्ड सैंक्चुरी, राजस्थान

*ग्रीन लेग्ड गूज, चीनी कूट, पोचार्डस, टील, मालार्ड को यहां आसानी से देखा जा सकता है। ये अक्टूबर मध्य से आना शुरू करते हैं और फरवरी तक यहां देखे जा सकते हैं।
कॉर्बेट नेशनल पार्क, उत्तराखंड

*यहां प्रवासी पक्षियों में मोर, गिद्ध, जंगली मुर्गे और अलग प्रजाति के तोते देखे जा सकते हैं।
सुल्तानपुर बर्ड सैंक्चुरी, हरियाणा

*शीत ऋतु में यहां प्रवासी पक्षियों के आने से बडम ही मनमोहक दृश्य बन जाता है। साइबेरियन क्रेन, ग्रेटर फ्लेमिंगो, रफ, ब्लैक विंग्ड स्टिल्ट, टील और ग्रीन शैंक आदि मेहमान पक्षियों को यहां देखा जा सकता है।
सूरजपुर बर्ड सैंक्चुरी, ग्रेटर नोएडा

*यहां देश के विभिन्न हिस्से से तो पक्षियों का आना होता ही है, पर सर्वे से पता चला है कि करीब 40 विभिन्न प्रजाति के प्रवासी पक्षियों को यहां देखा गया है।
दिल्ली चिड़ियाघर, नई दिल्ली

*सारस, जंगली बत्तख व शोवेलर्स को फरवरी तक यहां देखा जा सकता है।
हौज खास विलेज झील, नई दिल्ली

*हर वर्ष शीत तु में हौज खास विलेज की झील में खूबसूरत व रंगीन प्रवासी पक्षियों का जमावड़ा लगता है।
कोल्लेरु झील बर्ड सैंक्चुरी, आंध्र प्रदेश

*काफी सारे प्रवासी पक्षी, जैसे साइबेरियन क्रेन, इबिस और रंगीन सारस आदि यहां जाड़े के मौसम में आते हैं।
पोंग डैम झील, हिमाचल प्रदेश

*इसे महाराणा प्रताप सागर के नाम से भी जाना जाता है। यहां प्रवासी पक्षियों का झुंड आता है जो काफी मनोरम दृश्य पैदा करता है।
रंगनथिट्टू बर्ड सैंक्चुरी कर्नाटक

*यहां हर वर्ष दिसंबर के महीने में 20 देशों से भी ज्यादा प्रवासी पक्षियों का झुंड आता है।
चिल्का झील, उड़ीसा

*एशिया की सबसे बड़ी नमकीन पानी की झील है ये। शीत ऋतु में बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षी यहां आते हैं।
पुलीकट झील, तमिलनाडु
*यहां 60 से ज्यादा प्रजाति के पक्षियों का आवास है। इनमें से 80 प्रतिशत से ज्यादा प्रवासी पक्षी होते हैं।

ये भी जानो
 *पक्षियों का माइग्रेशन काफी सारे फैक्टर पर निर्भर करता है, जैसे पक्षियों की प्रजाति, माइग्रेशन की दूरी, यात्रा की गति, रास्ता, जलवायु आदि।
 *माइग्रेशन से पहले ये पक्षी ‘हाइपरफैगिया’ फेज में चले जाते हैं, जहां हार्मोन लेवल में बदलाव होता है और इनका शारीरिक वजन जबर्दस्त बढ़ता है, जिससे इनके शरीर में फैट जमा होता है। माइग्रेशन के दौरान उड़ने के लिए ये अपने शरीर में जमा इस फैट से ही एनर्जी लेते हैं। 
 *तुम्हें जानकर अचरज होगा कि माइग्रेशन के लिए एक ओर का रास्ता तय करने में एक चि़ड़िया को कुछ हफ्तों से लेकर चार महीने तक लग जाते हैं। यह माइग्रेशन का सफर- कुल दूरी, उड़ने की गति, रास्ता और ठहराव आदि पर निर्भर करता है।
 *काफी सारे ऐसे पक्षी होते हैं, जो दिन के वक्त ही उड़ते हैं, पर इनमें से कुछ ऐसे भी हैं, जो रात को उड़कर अपने माइग्रेशन की दूरी तय करते हैं।  
 *ये प्रवासी पक्षी तारों, सूर्य, हवा के बहने के तरीके और जमीन के प्राकृतिक बनाव से रास्ते को पहचानते हैं, जो उनके नैविगेशन में मददगार साबित होता है। पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र भी माइग्रेशन में मददगार है।

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