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साइकोलॉजी, यह भावनाओं की डॉक्टरी का क्षेत्र है

साइकोलॉजी ग्रीक भाषा के दो शब्दों ‘साइको’ अर्थात् आत्मा तथा लोगोस अर्थात् विज्ञान से मिल कर बना है, जिसे आधुनिक परिवेश में मनोविज्ञान के नाम से भी जाना जाता है। आत्मा एवं मन का विज्ञान,...

साइकोलॉजी, यह भावनाओं की डॉक्टरी का क्षेत्र है
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 24 May 2011 12:31 PM
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साइकोलॉजी ग्रीक भाषा के दो शब्दों ‘साइको’ अर्थात् आत्मा तथा लोगोस अर्थात् विज्ञान से मिल कर बना है, जिसे आधुनिक परिवेश में मनोविज्ञान के नाम से भी जाना जाता है। आत्मा एवं मन का विज्ञान, मनोविज्ञान एक बेहद रोचक, व्यावहारिक और गूढ़ विषय है, जिसके द्वारा आप हर उम्र के व्यक्ति के मन की बात सहजता से जान सकते हैं। आज की तनाव भरी, तेज रफ्तार एवं प्रतिस्पर्धायुक्त जिन्दगी में इन्सान जहां हंसना-खेलना तक भूल गया है, और डिप्रेशन एवं आत्महत्या जैसे कदम उठाने में भी नहीं हिचकिचाता, ऐसे में मनोविज्ञान उसके लिये किसी वरदान से कम नहीं है। 

इसका इस्तेमाल जीवन के हर क्षेत्र में, हर विधा में बेहद उपयोगी सिद्घ हुआ है, फिर चाहे वह बच्चों से जुड़ा बाल मनोविज्ञान हो या जानवरों से जुड़ा पशु-मनोविज्ञान। शिक्षा मनोविज्ञान, सामाजिक मनोविज्ञान, औद्योगिक मनोविज्ञान, शारीरिक मनोविज्ञान, खेल मनोविज्ञान, सैन्य मनोविज्ञान, क्लिनिकल मनोविज्ञान, असामान्य मनोविज्ञान इत्यादि अनगिनत शाखाएं इस विषय की विशेषताएं हैं।

जो छात्र किसी कारणवश मेडिकल में प्रवेश नहीं ले पाते, उनके लिये मनोविज्ञान संभावनाओं की एक नई किरण है। आप साइकोलॉजी में बीए, एमए अथवा एमएससी करके एक प्रोफेशनल डॉक्टर की तरह मनोविज्ञान संबंधी परामर्श दे सकते हैं, जिसे साइंटिफिक भाषा में काउंसलिंग कहा जाता है। विदेशों में तो ऐसे डॉक्टरों की मांग सदा बनी रहती है, परन्तु भारत में विशेष तौर पर ऐसे डॉक्टरों की बेहद कमी है। इसका बड़ा कारण शायद हमारे समाज की वह सोच है, जहां मनोविज्ञान के डॉक्टर को प्राय: पागलों का डॉक्टर मान लिया जाता है। यह गलत है। मनोवैज्ञानिक मात्र मानसिक रोगों का ही इलाज नहीं करता, बल्कि लोगों को खुशनुमा जीवन जीने की कला भी सिखाता है। मनुष्य के उदासीनता भरे जीवन को खुशियों की नयी रोशनी दिखाता है। वह हर प्रकार से व्यक्ति का व्यक्तित्व निखार कर उसे समाज के लिये उपयोगी बनाता है।

जीवन के कठिन पलों को किस प्रकार सहज बनाना है, तरक्की का आसमान कैसे छूना है, संवेदनाओं तथा आकांक्षाओं को नियंत्रित कर उन्हें कैसे उपयोगी बनाना है, मनोविज्ञान की विभिन्न कलाओं द्वारा यही सिखाया जाता है। यह डरने या उपहास करने का विषय नहीं है, बल्कि जीवनशैली में उतारने का विषय है, जिससे स्वस्थ समाज व उच्च स्तर की मौलिक शिक्षा एवं चरित्र का विकास संभव हो सके। 

संक्षेप में कहा जाये तो यदि मनुष्य के जीवन से उदासीनता, भ्रष्टाचार, चरित्रह्रास, ईर्ष्या, असफलता, वैर-भाव इत्यादि को हटाना है तो प्रत्येक व्यक्ति को मनोविज्ञान से रूबरू जरूर होना चाहिये। इसके द्वारा मनुष्य आत्मविश्लेषण द्वारा अपनी व समाज की बुराइयां दूर करने की प्रेरणा प्राप्त करता है।

वेंकटेश्वर कॉलेज ऑफ एजुकेशन, सोनीपत में कार्यरत लेक्चरर डॉ. योगेन्द्र का कहना है कि मनोविज्ञान केवल आत्मा का ही विज्ञान नहीं है, बल्कि यह मन, व्यवहार एवं संचेतनाओं को भी नियंत्रित कर मनुष्य को श्रेष्ठ से श्रेष्ठतम बनाता है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता इसका रोचक ज्ञान है, जिससे छात्रों को कभी भी बोरियत महसूस नहीं होती। यह विषय जैविकी, भौतिकी, रासायन विज्ञान, समाजशास्त्र, दर्शनशास्त्र, योग, गणित, शिक्षा, रिसर्च  इत्यादि का मिला-जुला रूप है, जो पूरी तरह से सामाजिक, मानसिक, आर्थिक एवं व्यक्तिगत समस्याओं को हल करने में सक्षम है। इसके द्वारा मनुष्य में स्ट्रैस मैनेजमेंट तथा टाइम मैनेजमेंट मैनेज करने की क्षमता आ जाती है।

साइकोलॉजी को अपना करियर बनाने वाले छात्र तीन प्रकार से इस विषय में प्रवेश पा सकते हैं

एमबीबीएस की डिग्री द्वारा
साइकोलॉजी में एमए अथवा एमएससी द्वारा
साइकोलॉजी के पसंदीदा क्षेत्र में डिप्लोमा कोर्स करके, जैसे क्लिनिकल, स्ट्रैस रिलीफ, टाइम मैनेजमेंट इत्यादि। इनमें से अधिकतर में प्रवेश पाने के लिये प्रवेश परीक्षा एवं साक्षात्कार द्वारा छात्रों का चयन किया जाता है।

फैक्ट फाइल

फीस

प्राइवेट कॉलेजों के मुकाबले सरकारी कॉलेजों में इस विषय की फीस काफी कम है। वहां इस कोर्स की फीस लगभग 5,000-10,000 रुपये तक आती है। दूसरी ओर प्राइवेट कॉलेजों में यह लाखों तक हो सकती है। इसका निर्धारण कोर्स एवं उसकी उपलब्धता पर किया जाता है।

एजुकेशन लोन

साइकोलॉजी पढ़ने वाले छात्रों को किसी भी राष्‍ट्रीयकृत बैंक से एजुकेशन लोन आसानी से मिल सकता है। इसके लिये उन्हें कॉलेज में प्रवेश प्रमाण पत्र, छात्र से संबंधित आवश्यक जानकारी इत्यादि को बैंक के समक्ष प्रस्तुत करना होता है।

रोजगार व अवसर

इस क्षेत्र में रोजगार व अवसरों की कोई कमी नहीं है। विषय की उपयोगिता को देखते हुए इसमें और अधिक संभावनाएं जताई जा रही हैं। अनुमान लगाया जा रहा है कि वर्ष 2020-21 तक हृदय रोगियों के बाद मानसिक रोगियों की संख्या अन्य रोगों की अपेक्षा सबसे अधिक होगी। अस्वच्छ एवं अस्वस्थ जीवन-चर्या, नींद पूरी न होना, बिखरते घर-परिवार, टूटता समाज, खान-पान का ध्यान न रखना, मादक पदार्थों का अत्यधिक सेवन बढ़ते मानसिक रोगों के प्रमुख कारण बताये जा रहे हैं। इनकी वजह से दिन-प्रतिदिन आत्म-हत्या, तलाक, दुर्घटना इत्यादि के केस भी काफी बढ़े हैं। हाल में भारत सरकार ने यह घोषणा की है कि आने वाले समय में हर स्कूल को एक काउंसलर टीचर की भर्ती करनी होगी, जिसके लिये मनोविज्ञान में शिक्षा अनिवार्य होगी। इस विषय से उत्तीर्ण छात्र अध्यापक, लेक्चरर, प्रोफेसर, काउंसलर, प्रोफेशनल हैड, मैनेजर इत्यादि बन सकते हैं। इंडस्ट्रीज, खेल-विभाग एवं सैन्य विभाग में तो इस विषय की भरपूर मांग है।

वेतन

साइकोलॉजी एक व्यापक क्षेत्र है, अत: इसमें वेतन के मानक विभिन्न क्षेत्रों के हिसाब से तय किये जाते हैं। मसलन अगर आप साइकेट्रिस्ट बनना चाहते हैं तो एक जूनियर रेजिडेन्शियल डॉक्टर को इन्टर्नशिप के दौरान ही 35,000 रुपये प्रति माह तक मिल सकते हैं, जबकि सीनियर रेजिडेन्शियल डॉक्टर एवं साइकोलॉजिस्ट 45,000 - 55,000 रुपये प्रति माह तक कमा लेते हैं। अनुभव व योग्यता के आधार पर इस क्षेत्र में पैसे की कमी नहीं है।

इसी प्रकार यदि आप शिक्षा के क्षेत्र में भाग्य आजमाना चाहते हैं तो शुरुआती दौर में 20,000 - 30,000 रुपये प्रति माह तक वेतन पा सकते हैं। अगर आप किसी कम्पनी में बतौर काउंसलर अपनी सेवाएं देना चाहते हैं तो 20,000 - 30,000 रुपये शुरुआती दौर में आसानी से मिल जाते हैं। कहने का अर्थ यह है कि आपका वेतन आपकी रुचि व क्षमता पर निर्भर करता है।  अगर आप इस क्षेत्र में सफल हैं तो लोग आपको मुंह-मांगा पारिश्रमिक देने से भी नहीं हिचकिचाएंगे।

फायदे व नुकसान

इस क्षेत्र में करियर बनाने से पैसा व प्रसिद्घि, दोनों साथ मिलते हैं।
सफलता अर्जित करने पर प्रोफेशनल तथा आत्मिक संतुष्टि प्राप्त होती हैं। चूंकि यह समाज सेवा से जुड़ा क्षेत्र है, अत: आप अपने ज्ञान, खोज व तथ्यों के आधार पर सामाजिक व मानसिक कुरीतियां दूर करने में सक्षम हो जाते हैं। 
सबसे बड़ा नुकसान, थकावट भरी दिनचर्या व समय का अभाव है।
इस क्षेत्र के प्रोफेशनल डॉक्टर एवं साइकोलॉजिस्ट कभी-कभी अपने आपको अपाहिज सा महसूस करते हैं, क्योंकि इस क्षेत्र में सर्जरी नहीं की जा सकती, केवल काउंसलिंग एवं दवाइयों द्वारा ही मानसिक रोगों का इलाज संभव है। कुछ रोगों के लिये तो दवाइयां 8-10 साल या फिर जीवन भर लेनी पड़ सकती हैं।
इस क्षेत्र के डॉक्टर, काउंसलर, अध्यापक आदि व्यक्ति से जुड़ी कुछ समस्याओं को इस हद तक संवेदनशीलता से ले लेते हैं कि वे उनका इलाल ढूंढ़ते-ढूंढ़ते या तो खुद रोगी बन जाते हैं या फिर उनका समाज की ओर देखने का नजरिया ही बदल जाता है।

प्रमुख संस्थान

चूंकि साइकोलॉजी हमेशा से छात्रों में लोकप्रिय विषय रहा है, इसलिये आमतौर पर हर यूनिवर्सिटी में यह आसानी से मिल जाता है। इसके प्रमुख संस्थान निम्न प्रकार से हैं:

दिल्ली यूनिवर्सिटी
जामिया मिल्लिया इस्लामिया
इंस्टीटय़ूट फॉर बिहेवियरल मैनेजमेन्ट साइंसेज, दिल्ली
मद्रास मेडिकल कॉलेज, चेन्नई
प्रेजिडेन्सी कॉलेज, कोलकाता
फर्गुसन कालेज, पुणे
मुम्बई यूनिवर्सिटी
मैक्स हैल्थ केयर इंस्टीटय़ूट

एक्सपर्ट व्यू
समाज सेवा का जज्बा जरूरी
डॉ. अवधेश शर्मा

परिवर्तन सेंटर फॉर मैंटल हैल्थ, दिल्ली में डॉक्टर हैं। आजकल दूरदर्शन पर प्रसारित कार्यक्रम ‘मन की बात’ के जरिए मानसिक रोगों के प्रति चेतना जगा रहे हैं।

विश्व में 2020-21 तक हृदय रोगियों के बाद मानसिक रोगियों की संख्या सबसे अधिक होने की संभावना है। इसके प्रमुख कारण बढ़ती प्रतिस्पर्धा, तनाव भरी जिंदगी, अस्वस्थ दिनचर्या, नींद की कमी होना, बिखरते घर-परिवार एवं मादक पदार्थों का बढ़ता सेवन है। इसके अलावा अमेरिका जैसे विकसित देशों में तो साइकेट्रिस्ट फिर भी मिल जाते हैं, परन्तु भारत में ऐसे डॉक्टरों का अकाल है। यहां ऐसे डॉक्टरों का अनुपात 1:10 प्रति मरीज लगाया जा रहा है, जो आज के समय में काफी कम है। यही कारण है कि इस क्षेत्र में आने वाले समय में करियर की संभावनाएं काफी बढ़ेंगी। इस बारे में डॉ. अवधेश से हुई बातचीत के कुछ अंश :

साइकेट्रिस्ट एवं साइकोलॉजिस्ट में क्या अंतर है?

एमबीबीएस की डिग्री पाने वाले छात्र साइकेट्रिस्ट बन सकते हैं, जबकि एमए अथवा एमएससी साइकोलॉजी पढ़ने वाले छात्र साइकोलॉजिस्ट बन सकते हैं। दोनों ही प्रोफेशनल डॉक्टर हैं। बस फर्क इतना ही है कि साइकेट्रिस्ट मानसिक रोगों को दूर करने की दवा भी दे सकता है, परन्तु साइकोलॉजिस्ट को अभी तक यह अधिकार नहीं दिया गया है। हां, वह मरीज की काउंसलिंग कर उसे अच्छे साइकेट्रिस्ट से दवा लेने का परामर्श अवश्य दे सकता है। 

साइकोलॉजी में करियर बनाने वाले युवाओं को तैयारी करते समय किन प्रमुख बातों का ध्यान रखना चाहिये?

आप में समाज-सेवा का जज्बा होना बेहद जरूरी है। अक्सर ऐसा देखा गया है कि इस क्षेत्र से जुड़े लोग दूसरों की समस्या सुलझाते-सुलझाते परेशान होकर खुद मरीज बन जाते हैं या फिर बीच में ही प्रेक्टिस छोड़ देते हैं। उन्हें स्वयं को भगवान न मानते हुए हर परिस्थिति का सामना सहजता एवं धैर्य से करना चाहिये। इसके अलावा हर प्रोफेशन की तरह इसमें भी सच्ची लगन, मेहनत, आत्म-विश्वास व आसमान छूने की चाहत होनी जरूरी है। अगर आप एक कुशल डॉक्टर या काउंसलर बनना चाहते हैं तो पढ़ाई रेगुलर करना ही ठीक रहेगा, ताकि आप प्रेक्टिकल ट्रेनिंग में भी पारंगत हो सकें। अगर आप अध्यापन या किसी कम्पनी में अपनी सेवाएं प्रदान करना चाहते हैं तो बेशक यह कोर्स पत्रचार द्वारा भी किया जा सकता है।

सक्सेस स्टोरी
एक मानसिक रोगी से मिली प्रेरणा
डॉ. अरुणा ब्रूटा, सुप्रसिद्ध साइकोलॉजिस्ट

डॉ. अरुणा ब्रूटा दिल्ली विश्वविद्यालय की रिटायर्ड प्रोफेसर हैं। वे उन पहली भारतीय महिलाओं में से हैं, जिन्होंने सन् 1966 से ही मनोविज्ञान एवं मनोचिकित्सक के महत्त्व को ऑल इंडिया रेडियो तथा दूरदर्शन के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाने की कोशिश की है। इन दिनों वे केन नामक संस्था में अपनी सेवाएं दे रही हैं। डॉ. ब्रूटा के अनुसार, जब मैं केवल 8-10 वर्ष की थी, तभी से साइकोलॉजिस्ट बनने की प्रेरणा मुझे मेरे पड़ोस मे रहने वाले 30 वर्षीय मानसिक रोगी से मिली। उसकी हालत देख कर मैंने बचपन में ही ठान लिया था कि मैं समाज सेवा के लिये कुछ भी करूंगी। मैंने दिल्ली विश्वविद्यालय के आईपी कॉलेज से बीए साइकोलॉजी की। इसमें क्लिनिकल साइकोलॉजी मेरा पसंदीदा विषय था, इसलिये मैंने एमए साइकोलॉजी तथा पीएचडी भी इसी विषय से की। बाद में मैंने विस्कोन्सिन विश्वविद्यालय से दो वर्षीय एडवांस क्लिनिकल तकनीकी एवं एल्बर्ड एलिस के रेशनल इमोटिव थेरेपी में विशिष्ट कोर्स किये।

इसके अलावा मैं नेशनल एकेडमी ऑफ साइकोलॉजी की अध्यक्षा एवं क्लिनिकल साइकोलॉजी में जरनल ऑफ रिसर्च एंड एप्लीकेशन्स की एडिटर भी रह चुकी हूं। अपने इस अनुभव के आधार पर मैं यह कह सकती हूं कि इस क्षेत्र में पैसा, प्रसिद्धि और मानव-कल्याण, सभी कुछ है। निश्चिंत रहें, इस विषय से जुड़े लोग कभी बेरोजगार  नहीं रहते।

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