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बिहार में साख बढ़ाने की कोशिश में कांग्रेस

जिलों की अनुशंसा से तय होंगे प्रत्याशी बिहार विधानसभा चुनाव में राजद-जदयू से गठबंधन होने के बाद कांग्रेस का टिकट पाने का दबाव प्रदेश कांग्रेस कमेटी पर नेता अभी से डालने लगे हैं। इन बागी सुरों को...

बिहार में साख बढ़ाने की कोशिश में कांग्रेस
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 16 Jun 2015 05:56 PM
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जिलों की अनुशंसा से तय होंगे प्रत्याशी
बिहार विधानसभा चुनाव में राजद-जदयू से गठबंधन होने के बाद कांग्रेस का टिकट पाने का दबाव प्रदेश कांग्रेस कमेटी पर नेता अभी से डालने लगे हैं। इन बागी सुरों को दबाने के लिए प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने फैसला लिया है कि विधानसभा चुनाव में उन्हीं उम्मीदवारों के नाम पर चर्चा होगी जिन नामों को जिला कमेटियां अनुशंसित करके भेजेंगी।

महागठबंधन में कांग्रेस के शामिल होने के बाद यह तो तय हो गया है कि कांग्रेस को समझौते के तहत जितनी भी सीटें मिलेंगी सभी पर टिकट पाने की होड़ पार्टी नेताओं में रहेगी। कांग्रेस नेता भी यह मान रहे हैं कि गठबंधन में कांग्रेस को 50 से 60 सीटें ही मिल पाएंगी। पार्टी के अंदर चल रही इस उहापोह के बीच प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अशोक चौधरी ने स्पष्ट किया है कि विधानसभा चुनाव में जिला कांग्रेस कमेटी द्वारा अनुशंसित पैनल पर ही उम्मीदवारों की चर्चा होगी। चौधरी का दावा है कि गठबंधन में पार्टी को सम्मानजनक सीटें मिलेंगी।

सासाराम में कांग्रेस को गठबंधन का सहारा
सासाराम, बिनोद कुमार तिवारी
महागठबंधन के सहारे रोहतास में खोयी पहचान वापस लाने की तैयारी में कांग्रेस है। सासाराम से बाबू जगजीवन राम आजीवन सांसद रहे। इनके बाद इस सीट पर जनता दल से छेदी पासवान और भाजपा से मुनिलाल राम काबिज हुए। लेकिन, बाबूजी की बिटिया मीरा कुमार ने इन नेताओं से कुर्सी झटक लीं और लोकसभा अध्यक्ष की कुर्सी तक पहुंचीं।

लेकिन, अब काफी दिनों से रोहतास से कांग्रेसी विधायक सदन में नहीं पहुंचे हैं। यह अलग बात है कि फरवरी 2009 में हुए उपचुनाव में चेनारी विधानसभा सीट पर कांग्रेस के मुरारी राम गौतम को काबिज होने का मौका मिल गया। रोहतास कांग्रेस का पुराना गढ़ माना जाता है। कभी रोहतास की अधिकांश सीटों पर कांग्रेस का ही कब्जा रहता था और दिग्गज कांग्रेसी सासाराम से प्रदेश कांग्रेस को दिशा दिया करते थे। लेकिन, एक वर्ष बाद ही 2010 में हुए आमचुनाव में कांग्रेस चेनारी में तीसरे नम्बर पर चली गई।

वर्ष 2014 लोकसभा चुनाव में मीरा कुमार की हुई हार के बाद से कांग्रेसियों का जोश ठंडा सा पड़ गया था। इस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस महागठबंधन के सहारे रोहतास में कांग्रेसियों के ठंडे पड़े जोश को जगाने और खोयी पहचान बनाये रखने की तैयारी कर रही है। कांग्रेस रोहतास में गठबंधन से अधिक सीट भी चाहती है। ताकि कांग्रेसियों में जान फूंका जा सके। इसके लिए विधानसभा कांग्रेस सम्मेलन की तैयारी भी कर रही है। केन्द्र में भाजपानीत सरकार के खिलाफ गांवों में लोगो को गोलबंद करने में लगी हुई है। कांग्रेस के प्रदेश प्रतिनिधि मनोज सिंह और जिलाध्यक्ष संतोष कुमार मिश्र कहते हैं कि रोहतास कांग्रेस का पुराना गढ़ रहा है। एक दो चुनाव हारने से कार्यकर्ताओं के जोश पर कोई असर नहीं पड़ा है।

कहलगांव में कांग्रेस को गढ़ में घेरने की तैयारी
भागलपुर, वीरेन्द्र कुमार

जिले का कहलगांव विधानसभा क्षेत्र कांग्रेस का गढ़ माना जाता रहा है। विपरीत परिस्थितयों में भी कांग्रेस ने यहां झंडा फहराया है। कांग्रेस विधायक दल के नेता कहलगांव विधानसभा क्षेत्र से लगातार 10 बार चुनाव लड़े और सात बार जीत दर्ज की। या यूं कहें कि 44 साल से कहलगांव विधानसभा क्षेत्र का चुनाव सदानंद सिंह के ईर्द-गिर्द घुमता रहा है। इस बार कांग्रेस को गढ़ में घेरने की तैयारी में विरोधी दल अभी से जुटे हैं।

सदानंद सिंह 1972 से लगातार इस विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं। 1885 में कांग्रेस से हटने के बाद निर्दलीय चुनाव लड़े और जीत दर्ज की। 1977 में जनता पार्टी की लहर चल रही थी। उस दौर में हुए विधानसभा चुनाव में जिले के तमाम शूरमा धराशायी हो गए लेकिन सदानंद बाबू ने कांग्रेस का परचम लहराया। 1977 में पीरपैंती विधानसभा क्षेत्र से सीपीआई के टिकट पर अम्बिका प्रसाद, नाथनगर ने जेएनपी से सुधा श्रीवास्तव, भागलपुर से जेएनपी से विजय कुमार मित्रा, गोपालपुर से सीपीआई से मणिराम सिंह, बिहपुर से सीपीआई से सीताराम सिंह और सुल्तानगंज विधानसभा क्षेत्र से जेएनपी के टिकट पर जागेश्वर मंडल ने जीत दर्ज की थी। सदानंद सिंह को केवल 1990, 1995 और अक्टूबर 2005 में हार का मुंह देखना पड़ा।

इस बार कहलगांव में सीधा मुकाबला होने की उम्मीद है। कांग्रेस, राजद और जदयू का गठबंधन होने पर सदानंद सिंह या उनके पुत्र की दावेदारी मजबूत हो सकती है। इसी को देखते हुए विरोधी दल भी रणनीति बनाने में जुट गये है। भाजपा के अलावा लोजपा और रालोसपा भी मजबूत प्रत्याशी की खोज में जुट गई है। संभावित गठबंधन को देखते हुए हम के नेता भी चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं। गठबंधन होने के बाद इस बार यहां का चुनाव रोचक हो सकता है। पिछले विधानसभा चुनाव में राजद, जदयू और कांग्रेस के बीच वोटों के विखराव का लाभ सदानंद सिंह को मिला।

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