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'भूतों' का खाना खाकर जिंदा हैं कई गरीब परिवार

बिहार के गया जिले में कई गरीब परिवार पितरों को अर्पित पिंड से गायों को खाने के लिए दिया जाने वाला भोजन खा कर अपनी और अपने परिवार के पेट की आग बुझाने के लिए विवश हैं। भगवान विष्णु की तपोस्थली और...

'भूतों' का खाना खाकर जिंदा हैं कई गरीब परिवार
एजेंसीThu, 17 Sep 2009 04:03 PM
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बिहार के गया जिले में कई गरीब परिवार पितरों को अर्पित पिंड से गायों को खाने के लिए दिया जाने वाला भोजन खा कर अपनी और अपने परिवार के पेट की आग बुझाने के लिए विवश हैं।

भगवान विष्णु की तपोस्थली और भगवान बुद्ध की ज्ञानस्थली बिहार के गया जिले में इन दिनों पितृपक्ष मेला चल रहा है। पंद्रह दिन तक चलने वाले इस मेले के दौरान देश-विदेश से लाखों तीर्थयात्री यहां आकर अपने पितरों के मोक्ष के लिए उनका पिंडदान, श्राद्ध और तर्पण करते हैं। पिंडदान के बाद पितरों को अर्पित पिंड का कुछ भाग गाय को खिलाया जाता है। ये पिंड जौ अथवा चावल के आटे के बने होते हैं।

मोक्षस्थली गयाधाम स्थित विष्णुपद मंदिर के देवघाट पर पिंडदान करने वाले तीर्थ यात्री पितरों को अर्पित पिंडों को, गायों के उपलब्ध नहीं होने पर, अक्सर फल्गू नदी में प्रवाहित कर देते हैं। नदी में बहते इन पिंडों को गरीब लोग एकत्र कर अपने घर ले जाते हैं। इन्हें धूप में सुखा कर इन्हें पीसा जाता है और फिर इसकी रोटी बनाई जाती है।

यह पूछे जाने पर कि शास्त्र के मुताबिक, पिंडदान के बाद पितरों को अर्पित पिंड किसे दे दिए जाने का प्रावधान है, जगत गुरुस्वामी रघवाचार्य ने बताया हेमाद्री ऋषि के ग्रंथ चतुरवर्ग चिंतमणि में वर्णित श्रद्धकल्प नामक विषय के एक सूत्र में विप्राजगावा का प्रावधान है। इसके तहत पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध के बाद पान के पत्ते पर पिंड रख कर बकरी को तथा पितरों को अर्पित पिंडो को गाय को खाने के लिए दे दिया जाए या फिर नदी में प्रवाहित कर दिया जाए।

श्राद्धकल्प के सूत्र के मुताबिक पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध के दौरान उपयोग में लाई गई अन्य वस्तुएं, जो ब्राह्मण के उपयोग की होती हैं, उन पर उनका अधिकार होता है। गया के ग्वेलबिगहा में रहने वाले एक गरीब परिवार की 75 वर्षीय जगियाभूनि अपने पोते सीता मांक्षी के साथ देवघाट इलाके में पितरों को अर्पित पिंड को एकत्र करती है। इस बारे में पूछने पर उसने कहा कि जानवरों के भोजन को मनुष्य क्यों खाना चाहेगा, लेकिन निर्धनता और भूख से विवश हो कर उन लोगों को गाय के हिस्से के पिंड का सेवन करना पड़ता है।

विष्णुपद मंदिर के देवघाट पर अपने पत्नी कुंति देवी के साथ मिलकर पितरों को अर्पित पिंड एकत्र कर रहे ऐसे ही एक परिवार के मुखिया ननकू राम ने बताया कि वह लोग वर्षो से ऐसा करते आ रहे हैं। उनके पिता और दादा भी पिंड एकत्र कर परिवार का भरण पोषण करते थे।

गया के मारनपुर निवासी ननकू ने बताया कि न तो उसके परिवार का नाम बीपीएल सूची में शामिल है और न ही जिला प्रशासन उन्हें सरकार द्वारा गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों दी जाने वाली सहायता देता है। ननकू ने बताया कि गया में करीब 25 परिवार ऐसे हैं जो लंबे समय से इन पिंडों को एकत्र कर उनकी रोटी बनाकर अपने पेट की आग बुक्षाने को विवश हैं।

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