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भारतीय पुरुषों में बढ़ा नपुंसकता का खतरा

एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में एक शोध में यह आशंका व्यक्त की गई है जिसमें 2025 तक नपुंसक लोगों की सर्वाधिक संख्या भारत में होगी। इसके लिए जिम्मेवार कारणों में ग्लोबल वार्मिंग समेत भारतीयों की अनियमित...

भारतीय पुरुषों में बढ़ा नपुंसकता का खतरा
एजेंसीFri, 31 Jul 2009 02:33 PM
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एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में एक शोध में यह आशंका व्यक्त की गई है जिसमें 2025 तक नपुंसक लोगों की सर्वाधिक संख्या भारत में होगी। इसके लिए जिम्मेवार कारणों में ग्लोबल वार्मिंग समेत भारतीयों की अनियमित जीवन शैली है।

भारतीय पुरुष यदि जल्द ही अपने खान-पान की आदतों में सुधार नहीं लाते हैं और नियमित व्यायाम को अपनी दिनचर्या का हिस्सा नहीं बनाते हैं तो 2025 तक दुनिया में सबसे ज्यादा नपुंसक व्यक्ति भारत में होंगे।

यह चेतावनी भले ही अच्छी नहीं लगे लेकिन यह कड़वी सच्चाई है कि एशिया में नपुंसकता के शिकार सर्वाधिक व्यक्ति भारत में हैं। हाल में स्वीडन के गोटेबर्ग शहर में संपन्न दसवीं ‘वर्ल्ड कांग्रेस फॉर सेक्सुएल हेल्थ’ में बताया गया कि दुनिया में नपुंसकता के शिकार अधिकतर व्यक्ति एशिया, अफ्रीका और उत्तर अमेरिका में हैं।

गत 21 से 25 जून तक आयोजित इस सम्मेलन में विभिन्न देशों के लगभग 100 विशेषज्ञ चिकित्सकों ने भाग लिया, जिसमें मध्यप्रदेश के इंदौर निवासी डॉक्टर हरीश नवल भी शामिल थे। डॉक्टर नवल ने बताया कि सम्मेलन में चौंकाने वाले कई तथ्य सामने आए। भारतीय पुरुषों में खान-पान की आदतें और व्यायाम नहीं करने की प्रवृत्ति न केवल उन्हें ह्दयरोग और मधुमेह जैसी बीमारियों की तरफ धकेल रही हैं, बल्कि इसमें अब नपुंसकता का खतरा भी जुड़ गया है।

इस तथ्य के मद्देनजर यदि किसी व्यक्ति की उम्र चालीस साल से अधिक है और कमर का घेरा 36 इंच को पार कर रहा है तो उसे सावधान रहने की जरूरत है। हो सकता है कि वह दूसरी बीमारियों के साथ नपुंसकता की चपेट में भी आ जाए। देश के विख्यात सेक्सोलोजिस्ट डॉक्टर प्रकाश कोठारी के साथ काम कर चुके डॉक्टर नवल ने बताया कि सम्मेलन में पढ़े गए शोध पत्रों में मधुमेह और रक्तचाप की बीमारी को मुख्य रूप से जीवन शैली से जुड़ा बताया गया और अब इसमें नपुंसकता भी जुड़ गई है। नपुंसकता के मुख्य कारणों में अनियमित दिनचर्या, मोटापा, नियमित व्यायाम नहीं करना या इसमें कमी, तनाव, हाइपर टेंशन और अंधाधुंध शराब तथा सिगरेट पीना है।

उन्होंने कहा कि देश में यौन शिक्षा को स्कूल या कॉलेज स्तर पर पाठ्यक्रम में शामिल करने की दुविधा लंबे समय से दिखाई दे रही है, जबकि स्वीडन में यौन शिक्षा 1956 से ही पाठ्यक्रम का हिस्सा है। इस वजह से वहां न केवल अपराध की दर घटी है बल्कि अनचाहे गर्भ और यौन संक्रमित बीमारियों  के मामलों में काफी कमी आई है। डॉ. नवल ने बताया कि सम्मेलन में चौंकाने वाला यह तथ्य भी सामने आया कि ग्लोबल वार्मिंग का दुष्प्रभाव प्रजनन क्षमता पर पड़ा है और उसमें चिंताजनक गिरावट आई है।

डॉ. नवल ने कहा कि भारतीय समाज के एक बड़े तबके में सेक्स को लेकर आज भी तरह-तरह की भ्रांतियां व्याप्त हैं। इनसे कई तरह की मानसिक व्याधियां भी सामने आती हैं। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि मेडिकल कॉलेजों में सेक्सोलाजी को तवज्जो नहीं दी जाती है।

उन्होंने बताया कि एमबीबीएस की डिग्री हासिल करने के बाद सेक्सोलोजिस्ट के रूप में काम करने वाले पेशेवर चिकित्सकों की संख्या देश में बमुश्किल 25 से 30 होगी। यही वजह है कि आज भी बड़ी संख्या में लोग यौन व्याधियों और उससे जुड़ी समस्याओं के लिए नीम हकीमों का सहारा लेते हैं और अपनी समस्या को और बढ़ा लेते हैं।

उन्होंने कहा कि तेजी से बढ़ती आबादी, अपराध दर में इजाफे और युवा वर्ग में उन्मुक्त यौन संबंधों के कारण यौन संक्रमित बीमारियों तथा इससे जुडे¸ एचआईवी और एड्स के जोखिम को देखते हुए स्कूल में दसवीं कक्षा से या कॉलेज के स्तर पर प्रारंभिक कक्षाओं से ही यौन शिक्षा को लागू करना वक्त की मांग है।

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