करोड़ों खर्च करने के बाद भी रोशन नहीं शहर
करोड़ों रुपये खर्च होने के बाद भी शहर रोशन नहीं है। राष्ट्रीय राजमार्ग सहित शहर की मुख्य सड़कों पर रात में घुप अंधेरा पसरा रहता है। अधिकांश स्ट्रीट लाइटें खराब पड़ी हैं। खंभों से लाइट नदारद हैं। जो...
करोड़ों रुपये खर्च होने के बाद भी शहर रोशन नहीं है। राष्ट्रीय राजमार्ग सहित शहर की मुख्य सड़कों पर रात में घुप अंधेरा पसरा रहता है। अधिकांश स्ट्रीट लाइटें खराब पड़ी हैं। खंभों से लाइट नदारद हैं। जो रात में दुर्घटनाओं को दावत देती हैं। दिल्ली बदरपुर से बल्लभगढ़ तक राष्ट्रीय राजमार्ग को डेंजर जोन कहा जाने लगा है। जहां दुर्घटना में काफी जानें चली गई। जबकि इसको रोशन रखने की जिम्मेदारी नगर निगम की है।
पिछले वित्त वर्ष में स्ट्रीट लाइट के लिए 13.43 करोड़ रुपये का बजट रखा गया था। इस बार भी बजट इससे कम नहीं है। मगर शहर की स्ट्रीट लाइटों की दशा निगम के अफसरों की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर रही है। खंभों के सिवाय लाइट के नाम पर कुछ खास नजर नहीं आता। मुख्य सड़कों के चौड़ीकरण के चलते इन लाइटों की केबल कट जाती है। निपुण स्टॉफ होने के बावजूद फॉल्ट को ठीक करने में कई दिन लग जाते हैं। ट्यूबलाइट एक बार खराब हो गई तो फिर एक से दो महीने तक उसको बदलने का नाम नहीं लिया जाता है। बात अलग है कि निगम, प्रशासन, पुलिस, नेता आदि प्रभावशाली लोगों के रिहायश के आसपास स्ट्रीट लाइट जरूर दुरुस्त पाई जाएंगी। बाकी जगह निगम कितना गंभीर है, राष्ट्रीय राजमार्ग की खराब पड़ी अधिकांश लाइटें इसका बेहतर उदाहरण है। ट्रैफिक व्यवस्था सही करने के वास्ते करवाए एक सर्वे में दिल्ली बदरपुर से बल्लभगढ़ तक राष्ट्रीय राजमार्ग के करीब 15 किलोमीटर हिस्से को डेंजर जोन में रखा गया। जहां काफी दुर्घटनाएं हुई और उनमें सालाना 200 से ज्यादा जानें चली गई। पुलिस की तरफ से भी खराब स्ट्रीट लाइटों को ठीक करवाने के लिए निगम को पत्र जारी किए जा चुके हैं। बावजूद इसके नतीज ढाक के वही तीन पात।
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सरकारी आदेश की अवहेलना
बिजली बचाने वास्ते सीएफएल लगाने के सरकारी आदेश पर नगर निगम ने अमल नहीं किया। कई रिहायशी क्षेत्रों में ट्यूबलाइट हटाकर वहां सोडियम लाइट लगा दी। जो न केवल बिजली ज्यादा खाती हैं, बल्कि ट्यूबलाइट से ज्यादा महंगी भी हैं।
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आउटसोर्सिग से ठीक करवाई जएंगी स्ट्रीट लाइट-निगमायुक्त
निगमायुक्त सीआर राणा ने बताया कि स्ट्रीट लाइटों की मरम्मत आउटसोर्सिंग से करवाई जाएगी। इसके लिए जल्द टेंडर मांगे जाएंगे। निगम के पास लाइटों का अभाव था। अब लाइटें आ गई हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग की स्ट्रीट लाइटें तीन हिस्सों में बंटी हैं। निगम अपने हिस्से की लाइटों की देखभाल समय-समय पर करता रहता है। शहर में जिन पुराने खंभों पर सोडियम लाइटें पहले से लगी थी, वहीं इनका इस्तेमाल किया जा रहा है। अन्यथा बाकी जगह ट्यूबलाइट लगाई जा रही हैं।
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खास बातें
-शहर में स्ट्रीट लाइटों के करीब 33 हजार प्वाइंट हैं
-16 हजार प्वाइंट ट्यूबलाइट के हैं
-17 हजार प्वाइंट सोडियम लाइट के हैं
-नजदीक वाले बिजली के ट्रांसफार्मर पर स्ट्रीट लाइट के स्विच लगा होता है
-स्ट्रीट लाइट जलाने व बंद करने की जिम्मेदारी स्थानीय लोगों को सौंप दी जाती है
-स्ट्रीट लाइट बंद करने व जलाने के लिए नियमित कर्मचारी तैनात नहीं रहते हैं