फोटो गैलरी

Hindi Newsराज्यपाल के निर्णय के बाद ही चिट्ठी मान्य

राज्यपाल के निर्णय के बाद ही चिट्ठी मान्य

नीतीश कुमार को विधानमंडल दल के नेता की मान्यता देने वाली विधानसभा के प्रभारी सचिव की चिट्ठी का कानूनी परिणाम तब तक मान्य नहीं होगा, जब तक राज्यपाल कानून के तहत कोई निर्णय नहीं ले लेते। साथ ही...

राज्यपाल के निर्णय के बाद ही चिट्ठी मान्य
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 11 Feb 2015 08:22 PM
ऐप पर पढ़ें

नीतीश कुमार को विधानमंडल दल के नेता की मान्यता देने वाली विधानसभा के प्रभारी सचिव की चिट्ठी का कानूनी परिणाम तब तक मान्य नहीं होगा, जब तक राज्यपाल कानून के तहत कोई निर्णय नहीं ले लेते। साथ ही मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को नेता पद से हटाकर नीतीश कुमार को नेता चुने जाने की प्रक्रिया किस कानून के तहत की गई और इसका कानून में क्या प्रभाव होगा, इस बात पर विचार करने के लिए पटना हाईकोर्ट ने मामले पर अगली सुनवाई की तारीख 18 फरवरी तय की है। इसके पूर्व अदालत ने कहा कि यह मामला राजनीति से जुड़ा है। कोर्ट कुछ नहीं कर सकता। लेकिन विधानमंडल का नेता कोई एक ही व्यक्ति हो सकता है। जब तक एक नेता को हटाया नहीं जाए, तब तक दूसरे व्यक्ति को नेता का पद नहीं दिया जा सकता।

चीफ जस्टिस एल नरसिम्हा रेड्डी व जस्टिस विकास जैन की खंडपीठ ने काराकाट विधानसभा क्षेत्र के जदयू विधायक राजेश्वर राज की लोकहित याचिका पर सुनवाई की। विधायक के वकील एसबीके मंगलम ने कोर्ट में एक पूरक हलफनामा दायर कर बीते सात फरवरी के सभी पत्र पेश किए। उन्होंने जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव और प्रदेश अध्यक्ष बशिष्ठ नारायण सिंह की ओर से जारी पत्र का हवाला दिया। उनका कहना था कि इस पत्र के आलोक में स्पीकर की ओर से विधानसभा के प्रभारी सचिव हरेराम मुखिया ने सात फरवरी को नीतीश कुमार को विधानमंडल के नेता की मान्यता देने की चिळी जारी की। स्पीकर ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर कार्रवाई किया। जो अधिकार राज्यपाल को है, उसे स्पीकर ने कर डाला।

वहीं, विधानसभा की ओर से वरीय अधिवक्ता वाईवी गिरि ने लोकहित याचिका पर सवाल खड़ा करते हुए कहा कि याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। उनका कहना था कि किस बात को लेकर अर्जी दायर की गई है, उन्हें जानकारी नहीं है। अर्जी की कॉपी मिलने के बाद विशेष दलील दी जा सकती। इसका श्री मंगलम ने कड़ा विरोध जताते हुए कहा कि अर्जी की कॉपी उन्हें दी गई थी, लेकिन उन्होंने लेने से इंकार कर दिए।

इधर, प्रधान अपर महाधिवक्ता ललित किशोर ने अदालत को बताया कि इस अर्जी में राज्य के मुख्य सचिव को पार्टी बनाया गया है। इस कारण वे सुनवाई के दौरान उपस्थित हैं। अदालत ने सभी की दलीलें सुनने के बाद कहा कि राजनीतिक मामलों में कोर्ट हस्तक्षेप नहीं करता। लेकिन विधानमंडल के नेता जीतन राम मांझी के रहते नीतीश कुमार को नेता चुना जाने की प्रक्रिया ने कानून पर सवाल खड़ा कर दिया है। किस कानून के तहत ऐसा किया गया, यह देखना होगा। अदालत ने दायर अर्जी की कॉपी श्री गिरि को देने का आदेश श्री मंगलम को दिया।

 

 

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें