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इबोला का कहर

इबोला की खोज करने वाले वैज्ञानिक ने भारत को विशेष रूप से आगाह किया है, जिसे गंभीरता से लेने की जरूरत है। गौरतलब है कि इबोला पसीने, लार, मल-मूत्र जैसे माध्यमों से बड़ी आसानी से फैलता है और बचाव ही अब...

इबोला का कहर
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 16 Oct 2014 08:11 PM
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इबोला की खोज करने वाले वैज्ञानिक ने भारत को विशेष रूप से आगाह किया है, जिसे गंभीरता से लेने की जरूरत है। गौरतलब है कि इबोला पसीने, लार, मल-मूत्र जैसे माध्यमों से बड़ी आसानी से फैलता है और बचाव ही अब तक सटीक उपाय के तौर पर उपलब्ध है। उन्होंने खास तौर पर कुछ भारतीय डॉक्टरों के बिना दस्ताने पहने ऑपरेशन करने पर चिंता जताई है। अब जब ‘स्वच्छ भारत अभियान’ गतिमान है, तो इस मसले पर माननीय स्वास्थ्य मंत्री जी से ठोस और प्रभावी कदम उठाने की उम्मीद है।
बिपिन तिवारी, गोंडा

खामियों की मशीन

केमिस्ट की दुकानों में आम जनता के लिए रक्तचाप मापने के लिए मशीनें सुलभ होती हैं। इनसे हर कोई अपना ब्लड प्रेशर नाप सकता है। इसके लिए कोई तकनीकी ज्ञान की जरूरत नहीं होती है। इनकी कीमत भी बहुत ज्यादा नहीं होती है। इसलिए बहुत से मरीज इसे खरीद लेते हैं। सामान्य व्यक्ति भी अपने स्वास्थ्य लाभ के लिए इसे खरीदते हैं। पर विडंबना यह है कि जब वे इसका प्रयोग करते हैं, तो पाते हैं कि इनकी रीडिंग ठीक नहीं होती। चंद मिनटों के अंतर में रीडिंग बदल जाती है। इस प्रकार यह मशीन व्यक्ति को असमंजस में डाल देती है। आश्चर्य यह है कि ऐसी मशीनें बिक कैसे रही हैं? देश में ऑल इंडिया मेडिकल कौंसिल है। राज्य सरकारों के पास भी चिकित्सा संबंधी तंत्र हैं। फिर भी इस प्रकार की मशीनें बिक रही हैं। इंसान के स्वास्थ्य के साथ इस प्रकार का मजाक एक सभ्य समाज में उचित नहीं है। सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए।
नवीनचंद्र तिवारी, सेक्टर 14 रोहिणी, दिल्ली

श्रेष्ठ भारत के लिए

श्रेष्ठ भारत की परिकल्पना, सोच, दृष्टि और अवधारणा एक उत्कृष्ट विचार है। परंतु इसकी शुरुआत बेहतर गांव, बेहतर शहर के साथ-साथ हमारे बेहतर आचरण, हमारी बेहतर बोली और सोच से होगी। इसी क्रम में बेहतर सुरक्षा व्यवस्था, शासन, चुनाव प्रणाली, न्याय व्यवस्था और पुलिस व्यवस्था हैं। यह सुखद है कि वर्तमान केंद्र सरकार की सत्ताधारी पार्टी के चुनाव घोषणा-पत्र में संस्थागत सुधारों को शामिल किया गया था, परंतु इसका एक बुरा पक्ष यह भी है कि इस दिशा में पार्टी या सरकार अपेक्षित सक्रियता और गंभीरता नहीं दिखा पा रही है। समय रहते अगर सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया, तो साठ साल के इतिहास को ही ये आगे बढ़ाएंगे और संस्थागत सुधारों पर पहले की ही तरह ग्रहण की स्थिति बनी रहेगी।
कृष्ण गोपाल सिन्हा, लखनऊ, उत्तर प्रदेश

कैसे होगी सफाई?

इसमें कोई शक नहीं कि स्वच्छ भारत अभियान का नारा देकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनता को साफ-सफाई के प्रति जागरूक करने का काम किया है। लेकिन उचित प्लानिंग और सार्थक कदम न उठाए जाने के कारण उनका यह आह्वान एक नाटक बनकर रह गया। उदाहरण देखिए। पहला, हरिनगर में एक स्थान पर अचानक शोर मचा कि मीडिया के लोग आए हुए हैं, तो बुजुर्ग भी अपना चेहरा टीवी पर दिखाने के लालच से बच नहीं पाए। अपने-अपने घरों से फटाफट झाड़ मंगाकर झाड़ लगाने लगे। लेकिन झाड़ लगाने का अंदाज ऐसा था कि कैमरे में उनकी तस्वीर आ जाए, बस। दूसरा, झाड़ अभियान में जहां-जहां बीजेपी के लोग इकट्ठे हुए, वहां बस झाड़ लगाकर सड़क के बीच की धूल-मिट्ची को दाएं-बाएं किया गया। किनारे की तरफ पड़ी गंदगी किसी ने साफ नहीं की, बल्कि सफाई अभियान की समाप्ति के बाद पानी की खाली बोतलें फेंककर जाने में नेताओं ने कंजूसी नहीं दिखाई। यहां तक कि इंडिया गेट जैसी ऐतिहासिक जगह को भी अपनी इस हरकत से शर्मसार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई। तीसरा, अगले दिन बहुत से समाचार-पत्रों में नरेंद्र मोदी की सफाई करते और कूड़ा उठाते हुए तस्वीरें छपीं। क्या साफ कर रहे थे प्रधानमंत्री? पेड़ के सूखे पत्ते। और क्या कूड़ा उठाया था, यही सब, रेत-मिट्टी के साथ?
योगेश मित्तल , हरिनगर, नई दिल्ली

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