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मेटा हेल्थ स्वस्थ तन-मन का नया तरीका

क्या आप यकीन करेंगे कि किसी व्यक्ति को हाथ में हुए एग्जिमा रोग का एक कारण उसमें गहन असुरक्षा की भावना भी हो सकती है? या कमर के निचले हिस्से में अक्सर उभरने वाले दर्द के मूल में दरअसल व्यक्ति की हीन...

मेटा हेल्थ स्वस्थ तन-मन का नया तरीका
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 16 Oct 2014 07:44 PM
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क्या आप यकीन करेंगे कि किसी व्यक्ति को हाथ में हुए एग्जिमा रोग का एक कारण उसमें गहन असुरक्षा की भावना भी हो सकती है? या कमर के निचले हिस्से में अक्सर उभरने वाले दर्द के मूल में दरअसल व्यक्ति की हीन भावना काम कर रही होती है? तन के रोगों की जड़ों को अनुभवों के भावनात्मक संसार में ढूंढ़ निकालने का यही काम करती है उपचार की नई विधि मेटा हेल्थ। धीमी गति से ही सही, पर पश्चिमी देशों की तरह हमारे यहां भी इसके जानकार बढ़ रहे हैं। इस नए उपचार के  बारे में बता रही हैं, मेटा हेल्थ कंसल्टेंट डॉ. रश्मि अरोड़ा

आमतौर पर बीमारी को उसके लक्षणों और अंग विशेष के सीमित दायरे में रखकर समझा जाता है। पर धीरे-धीरे इस नजरिए में बदलाव आया है। अब रोग को समझने के लिए रोगी के आंतरिक व बाहरी पर्यावरण को समझने पर भी जोर दिया जा रहा है। यही है मेटा हेल्थ का सिद्धांत। इस उपचार विधि से यह जानना संभव हो पाता है कि शरीर में किसी रोग का विकास करने में उस व्यक्ति के शारीरिक, मनोवैज्ञानिक, आनुवंशिक, भावनात्मक और पर्यावरणीय कारक कौन से रहे हैं या अभी भी हैं। इस तरह, नकारात्मक अनुभवों से उत्पन्न हुई नकारात्मक ऊर्जा को मेटा हीलिंग प्रक्रिया से दूर किया जाता है। यह विधि उन रोगियों के लिए खास मददगार साबित हुई है, जिनके रोग का कोई स्पष्ट कारण समझ नहीं आता।

अक्सर लोग इसे मनोविज्ञान से जोड़कर देखते हैं, पर यह पूरी तरह अलग विषय है। इसमें व्यवहार की नहीं, बल्कि शरीर की समस्याओं का निदान जानने की कोशिश की जाती है। इस तरह शरीर की अपनी बचाव प्रणाली को सक्रिय करना भी इसका महत्वपूर्ण चरण है। काउंसलिंग सत्र इसका महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं। 

मेटा हेल्थ का आधार      
मेटा हेल्थ के अनुसार जब किसी व्यक्ति के जीवन में किसी विशेष कारण से भावनात्मक उथल-पुथल होती है, तब मस्तिष्क का विशेष भाग इस तनाव से प्रभावित होता है, जो शरीर के अन्य अंगों को भी नियंत्रित करता है। अत: जब कोई तनाव में होता है, तो उस अंग के लिए न्यूरोट्रांसमीटर का स्राव बढ़ जाता है। और जब व्यक्ति तनाव से बाहर आ जाता है, तो न्यूरोट्रांसमीटर का स्राव स्वत: घट जाता है। यह समय वह होता है, जब रोग शारीरिक स्तर पर दिखाई देने लगता है। दूसरे शब्दों में, तनाव का असर शरीर पर पड़ने लगता है।

वैज्ञानिक प्रमाणों पर आधारित मेटा हेल्थ सभी रोगों के कारणों के बारे में व्यापक सूचनाएं उपलब्ध कराता है। पहले रोग के पीछे छिपे भावनात्मक कारणों और ट्रिगरों को पहचाना जाता है और फिर उन्हीं के अनुसार रोग का उपचार वैकल्पिक थेरेपियों, जिनमें होम्योपैथी भी शामिल  है, के द्वारा किया जाता है। मेटा हेल्थ में परामर्श उपचार का प्रमुख भाग है, जिसमें व्यक्ति के जीवन में जो भी हुआ उसके प्रति व्यक्ति की सोच को बदला जाता है। उसे एक योजना दी जाती है, मुद्दों से निपटने के लिए। व्यक्ति में जीवन के प्रति एक बेहतर दृष्टिकोण विकसित करने की कोशिश की जाती है। यदि कोई व्यक्ति मेटा हेल्दी है, तो इसका अर्थ है कि वह शरीर में तनाव को बढ़ाने वाले कारकों, विश्वासों या भावनाओं को समझता है। उनके दुष्प्रभावों से बचना जानता है। मेटा हेल्थ विशेषज्ञ, सामान्य डॉक्टरों के अलावा नैचुरोपैथ, मनोवैज्ञानिक या परामर्शदाता हो सकते हैं, जो इस क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल करते हैं।

रोगों की जड़ तक
गहन वैज्ञानिक अनुसंधान व विभिन्न अवस्थाओं में ब्रेन के सीटी स्कैन के अध्ययनों के आधार पर मेटा हेल्थ को  विकसित किया गया है। पिछले तीस वर्षों में हुए अनुसंधानों में यह बात सामने आई है कि तनाव व भावनात्मक अनुभवों का रोगों में महत्वपूर्ण योगदान है। अनुसंधानों में कई रोगों से जुड़े भावनात्मक कारणों का भी विश्लेषण किया गया है, जैसे-
1.  जिन बच्चों को बचपन में मां का प्यार नहीं मिलता, उन्हें बड़े होकर लेक्टोज एलर्जी हो जाती है, क्योंकि  उनका मस्तिष्क मां की गंध को दूध के साथ जोड़कर देखता है।
2. जो लोग सुरक्षित अनुभव नहीं करते या जो परिवार या समाज से कटे हुए रहते हैं, उन्हें त्वचा संबंधी समस्याएं जैसे एग्जिमा, डर्मेटाइटिस, मुहांसों की समस्या अधिक होती है।
3. हीन भावना से ग्रस्त लोगों में दर्द अधिक होता है, विशेषकर गर्दन व कमर के निचले हिस्से में।
4. पाचन तंत्र संबंधी समस्याएं उन लोगों में अधिक देखने को मिलती है, जो अधिक भावुक होते हैं, पर अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त नहीं कर पाते। 

किन रोगों में है कारगर 
मेटा हेल्थ हाई कोलेस्ट्रॉल, क्रॉनिक पेन, आर्थराइटिस, मोटापा, पाचन तंत्र से जुड़े रोग, श्वसन, संचरण, प्रजनन, तंत्रिका तंत्र और लिम्फैमटिक तंत्र से जुड़े रोग, हड्डी व त्वचा रोग में उपयोगी है। जीवनशैली से जुड़े रोगों जैसे मधुमेह, हाइपरटेंशन व हृदय रोगों में भी इसका खासा असर देखने को मिलता है।

तनाव की है मुख्य भूमिका
जब हमें कोई आघात लगता है, तब हमारी भावनात्मक प्रतिक्रिया यह निर्धारण करती है कि कौन-सा अंग प्रतिक्रिया देगा। हर व्यक्ति की ‘तनाव’ की स्थिति में अलग प्रतिक्रिया देता है। किसी को चक्कर आता है,कोई रोने लगता है और किसी का गला सूखने लगता है। पहले चरण में अनिद्रा और नींद की समस्या देखने में आती है। ऐसे व्यक्तियों में अतीत के बारे में सोचते रहना, भविष्य की चिंता करना, कम या अधिक खाना, हाथ-पैर ठंडे होना, मांसपेशियों में तनाव आदि लक्षण दिखते हैं। शरीर खतरे से निबटने के लिए ऊर्जा देने का प्रयास कर रहा होता है, जबकि मस्तिष्क समस्या के हल में लगा होता है। हम अधिकतर समय प्रथम चरण में रहते हैं, जो शरीरिक और मानसिक शक्ति को कम कर रोग की चपेट में आने की आशंका को बढ़ा देता है। इसलिए कई लोग तनाव में बीमार पड़ जाते हैं। दूसरे चरण को रीजेनरेशन फेज कहते हैं। इसमें रोगों के लक्षण, मांसपेशियों में दर्द, एग्जिमा, डायरिया, माइग्रेन, जुकाम, फ्लू आदि के रूप में दिखते हैं। व्यक्ति के संक्रमण की चपेट में आने लगता है। लंबे समय तक यह स्थिति शरीर के लिए घातक हो सकती है।
(डॉ. रश्मि, मेटा हेल्थ के साथ होमियोपैथिक कंसल्टेंट भी हैं)

प्रस्तुति: शमीम खान

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