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हादसे के बाद

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने विमान हादसे के लिए यूक्रेन को जिम्मेदार ठहराया है, वहीं यूक्रेन के राष्ट्रपति ने रूस समर्थक बागियों की तरफ इशारा करते हुए आतंकवादियों को जिम्मेदार ठहराया है। जिसने...

हादसे के बाद
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 27 Jul 2014 06:52 PM
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रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने विमान हादसे के लिए यूक्रेन को जिम्मेदार ठहराया है, वहीं यूक्रेन के राष्ट्रपति ने रूस समर्थक बागियों की तरफ इशारा करते हुए आतंकवादियों को जिम्मेदार ठहराया है। जिसने भी वह जघन्य और घिनौनी हरकत की, जिसमें करीब 300 निर्दोष व्यक्तियों की निर्मम मौत हुई, उसे जल्द न्याय के कठघरे में लाना चाहिए। इस दुखद घड़ी में हमें मलयेशिया का साथ देना चाहिए। यूक्रेन पश्चिमी देशों और रूस के बीच छिड़ी वर्चस्व की लड़ाई का मैदान बन गया है। इस लड़ाई में निर्दोष लोगों की निर्मम हत्या करने का किसी को अधिकार नहीं है, विशेष तौर पर उन ताकतों को, जो अपने आप को मानव अधिकारों की सुरक्षा का जज मानते हैं। दूसरी तरफ, गजा पट्टी में इजरायल ने संघर्ष को तेज करते हुए जमीनी अभियान शुरू कर दिया है। वहां अभी तक 800 से अधिक व्यक्ति मौत के घाट उतारे जा चुके हैं। हालांकि इजरायली सेना के मुताबिक, उन्होंने गजा के निवासियों से अपील की है कि जिन इलाकों में सेना अभियान चला रही है, वहां से वे दूर चले जाएं। इस प्रकार की वर्चस्व की लड़ाई में नुकसान केवल बेकसूर लोगों का ही होता है, चाहे वे विश्व के किसी भी कोने में हों। नागरिकों की सुरक्षा का जिम्मा क्षेत्रीय एवं वैश्विक नेताओं का कर्तव्य है, जिसे वे शायद नहीं निभा रहे या फिर इन भयावह संघर्षों को मौन बढ़ावा दे रहे हैं। इन संघर्षों के राजनीतिक हल निकालने के लिए विश्व की बड़ी ताकतों को मिल-बैठकर जितनी जल्दी हो सके, समाधान निकालना चाहिए। हमारी करुणा और प्रार्थना दुख की इस घड़ी में पीड़ित परिवारों के साथ है।
जगदीश लाल सलूजा, ई-डी/29 ए, पीतमपुरा, दिल्ली

सवाल प्राथमिकता का

केंद्र तथा प्रदेशों में सरकारें आती-जाती रहती हैं। उनके साथ प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, मंत्रियों और राज्यपालों के साथ-साथ पता नहीं कितने पदों पर नियुक्तियां होती हैं। ये सत्ताधारी वर्ग वेतन-भत्ते भी अपनी इच्छानुसार बढ़ा लेते हैं। मगर पब्लिक को नई सरकार के बनने से कोई फायदा नहीं होता। क्या यह अच्छा नहीं होगा कि मंत्रियों एवं राज्यपालों की तरह ही सरकारी विभागों के खाली पड़े पदों को भी भरा जाए, जिससे जनता के काम जल्दी निपट पाएं और उसे भी महसूस हो कि अब उसके अच्छे दिन आ गए हैं। दिल्ली सरकार में शिक्षक, लेक्चरार, होमगार्डस, ड्राइवर आदि के हजारों पर खाली हैं या तदर्थ नियुक्तियों के भरोसे हैं। दिल्ली नगर निगम में भी लोग वर्षों से संविदा या अतिथि कर्मचारी के रूप में कार्यरत हैं, अगर सरकार को इनकी जरूरत है, तो फिर इनको नियमित करने से कतराती क्यों है? सरकार प्राथमिकता तय करे।
नरेंद्र कुमार, बी-2/6, कोंडली कॉलोनी, दिल्ली

दोहरे मानदंड क्यों

कोई भी सांसद कितना भी बड़ा दागी क्यों न हो, लोग उसे माननीय ही कहते हैं। साल में तीन बार संसद का अधिवेशन बुलाया जाता है। सांसदों से यह आशा की जाती हैकि वे इन दिनों में दोनों सदनों में उपस्थित रहकर कार्यवाही का हिस्सा बनें, परंतु ऐसा होता नहीं है। लेकिन प्राय: देखा जाता है कि सेशन के समय दोनों सदनों की अधिकांश सीटें खाली रहती हैं। राज्यसभा का तो और भी बुरा हाल है। खबरों के अनुसार मनोनीत सदस्यों में से सचिन तेंदुलकर ने दो वर्ष में मात्र दो दिन ही कार्यवाही में भाग लिया। रेखा थोड़ा आगे रहीं, वह दस दिन आईं। ऐसे सांसदों का क्या फायदा? अगर कोई सांसद गैरहाजिर रहता है, तो उस पर किसी भी प्रकार की कार्रवाई नहीं की जा सकती। स्कूल या कार्यालय से लगातार तीन दिन तक गायब रहने पर कार्रवाई की जा सकती है, तो फिर इन माननीयों पर क्यों नहीं? आखिर दोहरे मापदंड क्यों?
जसवंत सिंह, नई दिल्ली

सानिया को बख्श दें

राजनेताओं से अपील है कि सियासत करें, मगर इसमें उन लोगों को न घसीटें, जिनका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं। सानिया को आहत करके किसी को क्या मिला?
धर्मेश रागी, मुखर्जी नगर, दिल्ली

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