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मेरी अगली चुनौती अपने आप से है

बातचीत के दौरान वह भावुक हो उठती हैं और कहती हैं, ‘मैं कोर्ट में हर प्वॉइंट हासिल करने के बाद कम ऑन चिल्लाती थी। क्यों? क्योंकि मैं साबित कर देना चाहती थी कि मैं चुकी हुई नहीं हूं।’ इसके...

मेरी अगली चुनौती अपने आप से है
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 05 Jul 2014 09:16 PM
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बातचीत के दौरान वह भावुक हो उठती हैं और कहती हैं, ‘मैं कोर्ट में हर प्वॉइंट हासिल करने के बाद कम ऑन चिल्लाती थी। क्यों? क्योंकि मैं साबित कर देना चाहती थी कि मैं चुकी हुई नहीं हूं।’ इसके बाद कुछ देर के लिए चुप्पी छा जाती है। फिर साइना नेहवाल बोल उठती हैं- ‘अरे आप चुप क्यों हैं? सवाल कीजिए।’ फिर वह सवालों के जवाब तड़-तड़ देने लगती हैं। ऑस्ट्रेलियाई ओपन में अपना झंडा बुलंद करने के बाद विश्व बैडमिंटन रैंकिंग में शीर्ष भारतीय शटलर साइना सातवें स्थान पर पहुंच चुकी हैं। उनसे प्रवीण प्रभाकर ने विस्तृत बातचीत की। पेश हैं बातचीत के अंश:

2012 लंदन ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने के बाद पुलेला गोपीचंद ने कहा था- विश्व बैडमिंटन में चीनी खिलाड़ियों का वर्चस्व टूट रहा है और साइना उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती हैं। देर से ही सही, पर अब उनकी बात सच साबित होने लगी है?
अगर उन्होंने ऐसा कहा था, तो यह उनका बड़प्पन है। और आप तब की बात से आज को जोड़ रहे हैं, तो इसलिए कि मैं ऑस्ट्रेलियाई ओपन जीत गई हूं। वरना बीते 20 महीने बड़े कठिन थे। इस जीत ने मेरे ऊपर उठ रहे सारे सवालों के जवाब दे दिए हैं। कई लोग यह मान चुके थे कि मैं चुक गई हूं। मगर मुझे भरोसा था कि यह सूखा खत्म होगा और यही हुआ। मैंने साबित कर दिया कि मैं अब भी दुनिया की बेहतरीन खिलाड़ियों में एक हूं। हां, जहां तक रही चीनी खिलाड़ियों की बात, तो वे वाकई टैलेंटेड और स्ट्रॉन्ग होती हैं। मेरी तुलना उनसे करना बड़ी बात है। यहां कुछ खिलाड़ी अच्छा खेल रहे हैं। पर उनकी पूरी टीम बढ़िया खेलती है। अगर उन्हें पछाड़ना है, तो अपना सौ प्रतिशत देना होगा। स्मैश, बैक हैंड, फोर हैंड, सर्विस सबमें अच्छा करना जरूरी है। फिटनेस और स्टैमिना, दोनों बरकरार रखने होंगे। अगर दोनों तरफ दमदार खिलाड़ी हों, तो जीतता वही है, जो मैदान में दूसरे के मुकाबले ज्यादा मेंटली टफ हो। एक बात और। यह जंग जीतने का मामला नहीं, बल्कि खुद को उनसे कंपीटेंट बनाए रखने का सवाल है। मैदान में एक बार जीतने का मतलब यह नहीं होता कि मैं या कोई भी हर बार जीत जाएंगे। बल्कि इसके लिए तो लगातार अच्छा खेलते रहना होगा। मैं खेलूं, इसके बाद कोई और खेले और यह सिलसिला चलता रहे। तब जाकर आप कह सकते हैं कि हम चीनी खिलाड़ियों से आगे निकल गए।

ऑस्ट्रेलियाई ओपन में सिंधु लकी साबित नहीं हुईं। हालांकि, उन्हें भविष्य की साइना कहा जाता है। क्या वह चीनी वर्चस्व को टक्कर दे सकती हैं?
जरूर दे सकती हैं और आज भी दे रही हैं। उनमें काफी संभावनाएं हैं। आप देखिए कि कम साल में ही सिंधु ने काफी अच्छे प्रदर्शन किए हैं। इसलिए उनसे उम्मीदें तो हैं ही। मगर पहले यह बताएं कि साइना क्यों? साइना से आगे क्यों नहीं? किसी की क्षमताओं को हम न बांधें, तो ही अच्छा है। मैं सिंधु को करीब से देख रही हूं। वह काफी होनहार हैं। जहां तक ऑस्ट्रेलियाई ओपन की बात है, तो वह क्वॉर्टर फाइनल में हार गई थीं। पर हार-जीत तो लगी रहती है। उन्होंने अपने खेल से हम सबको निराश नहीं किया है।

आपके सामने अगली चुनौती क्या है?
मेरी चुनौती अपने आप से है। यही सोचती हूं कि हर बार पहले से अच्छा खेलूं। अब कई महीने तक कोई टूर्नामेंट नहीं है। ऐसे में, मुङो खुद को फिट बनाए रखना होगा। लगातार ट्रेनिंग की जरूरत रहेगी। ऐसे में, मुङो अपने कोचों के योगदान काफी याद आते हैं। खास तौर पर गोपी सर। उन्होंने जो सिखाया है, उसी की बदौलत मैं यहां तक पहुंची हूं। आगे भी मुङो बहुत कुछ सीखना है। 14 अक्तूबर से डेनमार्क ओपन शुरू होगा। बीच में जो लंबा गैप है, उसमें मुझे फिट रहना है, क्योंकि काफी समय से मैं चोटिल रही हूं। दर्द क्या होता है और उससे उपजी नाकामी क्या होती है, मैं देख-सुन और समझ चुकी हूं। याद कीजिए, 2012 में इसी डेनमार्क ओपन के बाद मैं नंबर दो से लुढ़ककर नंबर नौ तक पहुंच गई थी।

कई होनहार चेहरे सामने आए, पर इन्फ्रास्ट्रक्चर के अभाव के चलते वे उभर न सके। इसे आप कैसे देखती हैं?
देखिए, काफी कुछ हुआ है और काफी कुछ होना बाकी है। अब जैसे मैं देखती हूं, तो अपने यहां एकेडमी की कमी है। हैदराबाद में गोपीचंद बैडमिंटन एकेडमी है और उसके बाद विश्व-स्तरीय एकेडमी लगभग नहीं है। तो इस तरफ काम किए जाने चाहिए। दूसरी चीज, नई तकनीक पर भी जोर देना होगा। खिलाड़ियों को लेकर यही कहूंगी कि उनकी जिंदगी में अच्छा खेलना ही अहम नहीं, बल्कि अच्छे खेल के लिए खुद को फिट रखना भी अहम है।

नई सरकार से आपकी क्या उम्मीदें हैं?
नेता भी हमारे बीच से ही होते हैं। इसलिए उनको कुछ कहने की जगह मैं चाहूंगी कि हम सब, यानी घर-परिवार और समाज एक ऐसा माहौल बनाएं कि बच्चियों की जिंदगी संवर सके। वे घर में भेदभाव की शिकार न हों। उन्हें समान अवसर मिले। तब जाकर कोई पढ़ाई में अव्वल होगा और कोई खेल-कूद में। जहां तक आप सोच रहे होंगे कि मैं खेल के बारे में बोलूं, तो निश्चित रूप से सरकार काफी अच्छा कर रही है। इन्फ्रास्ट्रक्चर से लेकर खेल-संघों तक में सुधार जारी है। खेल को लेकर नीतियां बनने लगी हैं। यह अब मान लिया गया है कि खेल भी महत्वपूर्ण है, जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए भी और राष्ट्रीय गौरव के लिए भी।

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