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तेलंगाना के भाग्य को दिशा देने के लिए केसीआर हैं तैयार

अलग तेलंगाना की मांग को लेकर 2001 में मुठ्ठी भर समर्थकों के साथ आंदोलन शुरू करने वाले टीआरएस प्रमुख के चंद्रशेखर राव का सियासी सफर आखिरकार अपनी मंजिल तक पहुंचा और वह आज तेलंगाना के मुख्यमंत्री की...

तेलंगाना के भाग्य को दिशा देने के लिए केसीआर हैं तैयार
एजेंसीMon, 02 Jun 2014 03:41 PM
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अलग तेलंगाना की मांग को लेकर 2001 में मुठ्ठी भर समर्थकों के साथ आंदोलन शुरू करने वाले टीआरएस प्रमुख के चंद्रशेखर राव का सियासी सफर आखिरकार अपनी मंजिल तक पहुंचा और वह आज तेलंगाना के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हो गए। 
   
60 वर्षीय के चंद्रशेखर राव केसीआर नाम से लोकप्रिय हैं। वह आंध्र प्रदेश से विभाजित भारत के 29वें राज्य के पहले मुख्यमंत्री के तौर पर अपनी क्षमताओं के आधार पर तेलंगाना के चार करोड़ से ज्यादा लोगों की किस्मत को दिशा देने के लिए तैयार हैं।
   
राव अब तेलंगाना के सबसे बड़े नेता हैं और पिछली लोक सभा में केवल एक सांसद होने के बावजूद अलग राज्य बनने का श्रेय उन्हें जाता है। ज्ञातव्य है कि पार्टी की एक अन्य सांसद विजयशांति ने उनके साथ मतभेद होने के कारण चुनाव से कुछ दिन पहले कांग्रेस का दामन थाम लिया था।
   
केसीआर टीडीपी के नेता और पूर्व मंत्री थे। 2001 में उन्होंने एन चंद्रबाबू नायडू नीत पार्टी छोड़ दी और अलग तेलंगाना राज्य के लिए लड़ने के लिए अपनी पार्टी बनाई। तेलंगाना का मुददा कोई नया विचार नहीं था। हालांकि ऐसा कभी नहीं हुआ कि लोगों के बीच इसने अपना समर्थन खोया हो। एम चेन्ना रेडडी सरीखे वरिष्ठ नेताओं ने इसके लिए असफल लड़ाई लड़ी। 
   
उस समय ज्यादा लोगों को यह उम्मीद नहीं थी कि ऐसे समय में जब नायडू और वाईएस राजशेखर रेड्डी जैसे मंझे हुए और कददावर नेता मौजूद हैं केसीआर को इस दिशा में ज्यादा आगे तक जाने का मौका मिल पाएगा। बहरहाल केसीआर ने आंदोलन को फिर खड़ा किया, लेकिन उनकी पार्टी कुछ समय पहले तक इसे पूरे क्षेत्र में नहीं फैला सकी। पार्टी ने उन कुछ इलाकों में अपनी पहुंच बढ़ाने का सिलसिला शुरू किया, जहां उनकी मौजूदगी बहुत ज्यादा नहीं थी।
   
राव के अलग राज्य के आंदोलन को उनके ठेठ तेलंगाना भाषा में दिए गए भाषणों से बहुत बल मिला और स्थानीय लोग उनसे जुड़ते चले गए। हालांकि उनके विरोधियों ने आरोप लगाया की उनके भाषण भीड़ को भड़काते है। और वह चालाक राजनीतिक रणनीतिकार हैं। उन्होंने तटीय आंध्र और रायलसीमा के नेताओं की भी आलोचना की और संयुक्त आंध्र प्रदेश में तेलंगाना क्षेत्र के लोगों के साथ हुए कथित अन्याय का मुददा उठाया और उस पूरे इलाके की जनता को अपने साथ लिया, जिसमें 10 जिले थे।
   
उनकी कई टिप्पणियां उन्हें विवादित बनाती हैं जैसे तेलंगाना वाले जागो, आंध्र वाले भागो और उनके द्वारा गह युद्ध तथा खूनखराबे की चेतावनी देना। विरोध की क्षोंक में उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की भी आलोचना की। 2009 के लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद उनके कई नेता उनका साथ छोड़ गए और तत्कालीन मुख्यमंत्री राजशेखर रेड्डी के करीबी हो गए।
  
एक हेलीकोप्टर हादसे में रेड्डी की मौत के बाद उन्होंने वापसी की और आमरण अनशन शुरू किया। उनके अनशन को देखते हुए तब के गृहमंत्री पी चिदंबरम ने नौ दिसंबर 2009 को घोषणा की कि पृथक तेलंगाना राज्य को बनाने के लिए कदम उठाए जाएंगे।

सीमांध्र द्वारा एकतरफा घोषणा का विरोध करने पर तत्कालीन संप्रग सरकार को लगा कि पथक राज्य के लिए और अधिक विमर्श की जरूरत है। राव के लिए पीछे हटने का कोई सवाल ही नहीं था लिहाजा संप्रग-2 को पिछले साल उनकी मांग माननी पड़ी। उन्होंने सबको चौकाते हुए कांग्रेस में अपनी पार्टी का विलय करने और यहां तक कि राष्ट्रीय पार्टी के साथ चुनावी गठबंधन करने तक से इंकार कर दिया। यह उनका राजनीतिक मास्टर स्ट्रोक रहा।
   
जब आंध्र प्रदेश से तेलंगाना को अलग करने की प्रक्रिया चल रही थी तब राव ने यह रेखांकित किया कि तेलंगाना का पुनर्निमाण केवल टीआरएस के साथ मुमकिन है न कि कांग्रेस, टीडीपी या भाजपा के साथ। चुनाव में लोगों ने उनमें विश्वास जताया। लिहाजा टीआरएस ने क्षेत्र की 119 विधानसभा सीटों में से 63 सीटें जीतकर बहुमत हासिल किया।

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