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राष्ट्रपति भवन को अस्पताल बनाना चाहते थे गांधीजी

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी चाहते थे कि रायसीना हिल्स पर बने 340 कमरे के विशाल राष्ट्रपति भवन में अस्पताल खोला जाये, लेकिन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू इसके लिये राजी नहीं हुये, हालांकि गवर्नर जनरल...

राष्ट्रपति भवन को अस्पताल बनाना चाहते थे गांधीजी
एजेंसीSun, 12 Jan 2014 01:33 PM
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राष्ट्रपिता महात्मा गांधी चाहते थे कि रायसीना हिल्स पर बने 340 कमरे के विशाल राष्ट्रपति भवन में अस्पताल खोला जाये, लेकिन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू इसके लिये राजी नहीं हुये, हालांकि गवर्नर जनरल लार्ड माउंटबेटन तैयार हो गये थे।

जाने-माने इतिहासकार शंकर घोष की पुस्तक जवाहरलाल नेहरू ऑटोबॉयोग्राफी में दर्ज ऐतिहासिक तथ्यों के मुताबिक जब देश आजाद हो रहा था तब गांधीजी को चिंता थी कि नई सरकार सादगी से रहे और उसके मंत्री अपने पर फिजूलखर्च करने के बजाय जनता जनार्दन की सेवा पर सरकारी धन खर्च करें।

यही सोचकर गांधीजी ने सुझाव दिया था कि गर्वनर जनरल और राज्यों के गवर्नर विशाल महलनुमा आवास को छोड़कर छोटे आवास में रहें। जब भारत आजाद हुआ तो गांधीजी ने माउंटबेटन से राष्ट्रपति भवन को अस्पताल में बदलने का सुझाव दिया। माउंटबेटन ने उनके सुझाव से असहमति नहीं जताई।

गांधीजी ने माउंटबेटन को पत्र लिखकर आभार भी व्यक्त किया था, लेकिन नेहरू ने सूचित किया कि गवर्नर जनरल के लिये दूसरा उपयुक्त आवास नहीं ढूंढ़ा जा सका। पुस्तक में लिखा गया है कि यह वैकल्पिक आवास तीन मूर्ति भवन हो सकता था, जो ब्रिटेन के कमांडर इन चीफ का आवास हुआ करता था।

पुस्तक में उल्लेख है कि प्रधानमंत्री बनने के बाद नेहरू यार्क रोड स्थित साधारण आवास से विशाल तीन मूर्ति भवन में चले गये। उनके इस कदम की कट्टर गांधीवादियों ने कड़ी आलोचना की, लेकिन उसकी परवाह किये बगैर बाकी मंत्री भी नई दिल्ली में अंग्रेज अफसरों के लिये बने विशाल बंगलों में चले गये।

यही नहीं नेहरू ने आम आदमी की पहचान देने वाले धोती-कुर्ता को छोड़कर अचकन और शेरवानी पहनना शुरू कर दिया। गांधीजी की हत्या के बाद सरदार बल्लभ भाई पटेल ने कहा कि नेहरू के यार्क रोड स्थित आवास पर सुरक्षा के संतोषजनक प्रबंध नहीं किये जा सकते, जिसमें वह अंतरिम सरकार बनने के बाद सितंबर 1946 से रह रहे थे।

पटेल ने सुझाव दिया कि नेहरू को तीन मूर्ति भवन में चले जाना चाहिये। जब पटेल ने इस बारे में नेहरू से बात की तो उन्होंने हां या ना नहीं किया। फिर माउंटबेटन ने प्रधानमंत्री की औपचारिक मंजूरी के बिना मंत्रियों को कैबिनेट मेमो भेजा। इसके बाद कैबिनेट ने इस परिवर्तन को स्वीकार कर लिया।

सादगी पसंद गांधीजी को कांग्रेस का यह निर्णय भी रास नहीं आया, जिसमें 1937 में उसने अपने मंत्रियों के कम वेतन के तौर पर 500 रुपये प्रति माह लेने की हिदायत दी थी। इस पर भी गांधीजी ने नेहरू को पत्र लिखकर कहा था कि बड़े घर और कार भत्ता के साथ 500 रुपये प्रतिमाह वेतन की कड़ी आलोचना हो रही है। उन्होंने कहा कि मैं जितना ज्यादा सोचता हूं यही समझता हूं कि इस तरह की फिजूलखर्ची अनुचित है।

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