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समलैंगिक यौन संबंध जैसे मसलों में सुप्रीम कोर्ट रही व्यस्त

जेल में बंद व्यक्तियों के निर्वाचित प्रतिनिधि बनने और दो साल से अधिक की सजा पाने वाले सांसदों विधायकों को सदन की सदस्यता के अयोग्य करार देने सहित चुनाव सुधारों पर ऐतिहासिक फैसलों, पिंजरे में बंद...

समलैंगिक यौन संबंध जैसे मसलों में सुप्रीम कोर्ट रही व्यस्त
एजेंसीWed, 25 Dec 2013 02:52 PM
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जेल में बंद व्यक्तियों के निर्वाचित प्रतिनिधि बनने और दो साल से अधिक की सजा पाने वाले सांसदों विधायकों को सदन की सदस्यता के अयोग्य करार देने सहित चुनाव सुधारों पर ऐतिहासिक फैसलों, पिंजरे में बंद सीबीआई की स्वायत्ता की गुहार और कथित यौन उत्पीड़न के आरोप में एक पूर्व न्यायाधीश के खिलाफ जांच जैसे मसलों ने 2013 में उच्चतम न्यायालय को व्यस्त रखा। इस दौरान समलैंगिक यौनाचार को अपराध की श्रेणी में रखने संबंधी न्यायालय के निर्णय की जबर्दस्त आलोचना भी हुयी।
     
इस दौरान कोयला खदानों के आबंटन और 2जी स्पेक्ट्रम आबंटन घोटाला जैसे मामलों ने जहां केन्द्र और कॉरपोरेट जगत को पूरे साल सांसत में रखा, वहीं 1993 के मुंबई विस्फोट कांड में अभिनेता संजय दत्त को दोषी ठहराते हुये पांच साल की सजा सुनाकर न्यायालय ने फिल्म जगत को भी हतप्रभ कर दिया।
     
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की जांच समिति ने कानून की एक इंटर्न के प्रति अशोभनीय व्यवहार और यौन प्रकृति के आचरण के लिये शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश ए के गांगुली को कठघरे में खड़ा किया वहीं एकांत में स्वेच्छा से समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध के दायरे से बाहर रखने संबंधी दिल्ली उच्च न्यायालय का 2009 का निर्णय निरस्त करने का फैसला सुनाने के कारण न्यायालय को दुनिया भर की आलोचना का सामना करना पड़ा। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 377 संवैधानिक है और संसद चाहे तो इसमें बदलाव कर सकती है।
     
न्यायमूर्ति जी एस सिंघवी और न्यायमूर्ति एस जे मुखोपाध्याय के इस निर्णय को समलैंगिक रिश्तों के पक्षधर वर्ग सहित समाज के विभिन्न वर्गों ने मध्ययुगीन और देश को पीछे ले जाने वाला करार दिया। इस निर्णय की तीखी आलोचना के मद्देनजर केन्द्र सरकार इस पर पुनर्विचार के लिये शीर्ष अदालत में याचिका दायर करने के लिये बाध्य हुयी।
       
वर्ष 2013 को उच्चतम न्यायालय द्वारा चुनाव प्रणाली को भ्रष्ट तत्वों से मुक्त कराने की कवायद के रूप में भी याद किया जायेगा। इस दौरान न्यायलय ने जहां आपराधिक मामलों में दो साल से अधिक की सजा पाने वाले सांसदों और विधायकों को जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8:4: में मिला संरक्षण खत्म करके हुये व्यवस्था दी कि सजा सुनाये जाने के साथ ही ऐसे सदस्य सदन की सदस्यता के अयोग्य होंगे, वहीं जेल में बंद होने या पुलिस हिरासत के दौरान नेताओं के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाने का भी निर्णय न्यायालय ने सुनाया।
     
इसके अलावा, न्यायालय ने राजनीतिक दलों द्वारा जनता से लोकलुभावन वायदे करने, मतदाताओं को नकारात्मक मतदान का अधिकार देने और इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन के साथ ही कागज की पर्ची की व्यवस्था शुरू करने के बारे में भी महत्वपूर्ण व्यवस्था दी।
     
न्यायालय ने कोयला खदानों के आबंटन में अनियमित्तओं से संबंधित मामले में केन्द्रीय जांच ब्यूरो की कार्यशैली की तीखी आलोचना करते हुये उसे पिंजरे में बंद तोते और मालिक की भाषा बोलने वाले जैसी उपमा भी दी। इस प्रकरण में प्रधानमंत्री कार्यालय के नौकरशाहों और तत्कालीन कानून मंत्री अश्वनी कुमार के हस्तक्षेप के तथ्य सामने आये और इसी वजह से अश्वनी कुमार को मंत्री पद गंवाना पड़ा।
    
कोयला खदान आबंटन प्रकरण की जांच को लेकर सीबीआई और केन्द्र सरकार भी न्यायालय में आमने सामने आ गये। जांच ब्यूरो जहां अपने निदेशक के लिये सचिव का पदेन अधिकार चाहता। शीर्ष अदालत ने इस मामले की जांच में आ रही बाधाओं को दूर किया जिसकी वजह से कोयला खदान आबंटन प्रकरण में उद्योगपति कुमार मंलगम बिड़ला और पूर्व कोयला सचिव पी सी पारख के नाम भी सामने आये।
     
इसी तरह एडीएजी के मुखिया अनिल अंबानी, भारती समूह के मुखिया सुनील मित्तल और टाटा समूह के पूर्व अध्यक्ष रतन टाटा सहित कॉरपोरेट जगत की कई हस्तियां भी अलग अलग मामलों में उच्चतम न्यायालय पहुंचे। यही नहीं, औद्योगिक घरानों के लिये संपर्क का काम करने वाली नीरा राडिया के टैप किये गये टेलीफोन की बातचीत से मिली जानकारी के परिणामस्वरूप लगभग समूचा व्यावसायी जगत न्यायिक समीक्षा के दायरे में आ गया। नीरा राडिया की टैप की गयी बातचीत के आधार पर शीर्ष अदालत ने सीबीआई को मामले दर्ज करने का निर्देश भी दिया।
     
वर्ष 2013 के सहारा समूह को भी उच्चतम न्यायालय में परेशानी का सामना करना पड़ा। शीर्ष अदालत ने सहारा समूह की दो सहयोगी कंपनियों से निवेशकों को 20 हजार करोड़ रूपये लौटाने संबंधी न्यायिक आदेश पर अमल के लिये पूरे साल कडी निगाह रखी और इसी दौरान सेबी की याचिका पर सहारा समूह के मुखिया सुब्रत राय के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही भी शुरू की। न्यायालय ने अंतत: सुब्रत राय के विदेश जाने पर रोक लगा दी।
    
यही नहीं, 2जी स्पेक्ट्रम मामले में भी सुब्रत राय को न्यायालय की नाराजगी झेलनी पड़ी। न्यायालय ने इस मामले में लंबित जांच में कथित रूप से बाधा डालने के बारे में सफाई मांगी है कि क्यों नहीं सुब्रत राय और समूह के दो पत्रकारों के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू की जाये।
     
इस दौरान न्यायालय ने समाज के उपेक्षित वर्ग, महिलाओं और कमजोर तबके के संरक्षण और उनके कल्याण के बारे में भी अनेक आदेश दिये। न्यायालय ने देश के विभिन्न हिस्सों में लोगों के अनावश्यक रूप से उत्पीड़न के मामले में पुलिस को आड़े हाथ ही नहीं लिया बल्कि सांसदों तथा विधायकों आदि के वाहनों से लाल बत्तियां हटाने का भी निर्देश दिया। न्यायालय ने कहा कि सांविधानिक पदों पर आसीन विशिष्ट व्यक्तियों के वाहनों में ही लाल बत्ती का इस्तेमाल किया जा सकता है।

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