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अधिकारियों में भय पैदा कर रहा है RTI: देशमुख

सूचना का अधिकार अधिनियम (आरटीआई) की धार को कम करने की बहस के बीच केंद्रीय मंत्री विलास राव देशमुख का मानना है कि सरकारी फाइलों तक आसान पहुंच के चलते अधिकारी उन मुद्दों पर अपना मत देने में भय महसूस...

अधिकारियों में भय पैदा कर रहा है RTI: देशमुख
एजेंसीSun, 23 Oct 2011 10:08 AM
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सूचना का अधिकार अधिनियम (आरटीआई) की धार को कम करने की बहस के बीच केंद्रीय मंत्री विलास राव देशमुख का मानना है कि सरकारी फाइलों तक आसान पहुंच के चलते अधिकारी उन मुद्दों पर अपना मत देने में भय महसूस करने लगे हैं और इस मुद्दे पर गौर किया जाना चाहिए।

केंद्रीय विज्ञान प्रौद्योगिकी और भू विज्ञान मंत्री देशमुख ने कहा, आरटीआई ने दायरा बहुत बढ़ा दिया है। कुछ भी गोपनीय नहीं बचा है। मंत्रिमंडल के फैसलों से लेकर अधिकारी जो विचार देते हैं, सब कुछ इस अधिकार के माध्यम से देखे जा सकते हैं।

उन्होंने कहा कि आरटीआई के उदार इस्तेमाल ने अधिकारियों के बीच किसी भी मुद्दे पर अपना मत देने में भय पैदा कर दिया है। मंत्री के मुताबिक, इसके चलते अधिकारी किसी भी फाइल पर अपना मत दर्ज कराने में आशंकित होने लगे हैं। एक संयुक्त सचिव को किसी अवर सचिव के मतों को नामंजूर करने का अधिकार है, पर अब एक संयुक्त सचिव तक भी कोई भी फाइल नोटिंग देने के पहले 10 बार सोचता है।

उन्होंने कहा कि अधिकारियों को डर लगने लगा है कि उनके फैसले पर सवाल उठाए जाएंगे और उन्हें स्पष्टीकरण देने के लिए बुला लिया जाएगा। महाराष्ट्र के दो बार मुख्यमंत्री रह चुके देशमुख ने कहा कि प्रशासन के सामने आ रहीं इन परेशानियों पर ध्यान दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि आरटीआई अधिनियम के क्रियान्वयन के लिए सूचना आयुक्तों की नियुक्ति की गई है और किसी भी प्रकार की जानकारी छिपाने के पीछे कोई कारण नहीं है।

देशमुख के मुताबिक, अंतिम फैसले के बारे में जानकारी पाना ठीक है। लेकिन फैसला लेने की प्रक्रिया और प्रक्रिया के दौरान किसने क्या कहा़, अगर इस बारे में भी जानकारी सार्वजनिक हो जाए तो कोई भी अपना मत नहीं देगा। हर किसी को इससे डर है। इसी ने आरटीआई की धार को कम करने पर बहस को जन्म दिया होगा।

देशमुख के 2002 में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहने के दौरान ही प्रदेश में यह अधिनियम लागू हुआ था। संसद में 2005 में जो आरटीआई अधिनियम लागू हुआ था, उसका आधार महाराष्ट्र आरटीआई को ही माना जाता है।

सूचना आयुक्तों के एक सम्मेलन में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा इस अधिनियम पर आलोचनात्मक दष्टि डालने की बात ने इस मुद्दे पर बहस पैदा कर दी। भाजपा और समाज के सदस्यों ने प्रधानमंत्री की इस टिप्पणी की आलोचना की थी। मनमोहन ने बाद में स्पष्ट किया कि उन्होंने कभी भी इस अधिनियम को कमजोर करने की बात नहीं कही।

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