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बदली पीढ़ियां बदली आजादी

देश अपनी आजादी की 64वीं वर्षगांठ मनाने की तैयारी में है। लेकिन क्या अब 15 अगस्त का आयोजन महज औपचारिकता बन कर रह गया है? आजादी की लड़ाई में शामिल रही नामचीन साहित्यकार मन्नू भंडारी, उनकी बेटी जानीमानी...

बदली पीढ़ियां बदली आजादी
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 11 Aug 2011 02:17 PM
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देश अपनी आजादी की 64वीं वर्षगांठ मनाने की तैयारी में है। लेकिन क्या अब 15 अगस्त का आयोजन महज औपचारिकता बन कर रह गया है? आजादी की लड़ाई में शामिल रही नामचीन साहित्यकार मन्नू भंडारी, उनकी बेटी जानीमानी नृत्यांगना रचना यादव और उनकी पोती मायरा और माही क्या सोचती हैं आजादी के बारे में, आइए जानें..

अब नए तरीके से गुलाम हैं हम: मन्नू भंडारी

मैंने तो वह दिन देखा है जब अंग्रेज हमारा देश छोड़कर गए थे। मैं तब अजमेर में रहती थी और उसी साल जुलाई में इंटर किया था। आजादी के दिन सारे शहर में रोशनी थी। अजमेर शहर में जैसी रोशनी मैंने उस दिन देखी, वैसी रोशनी फिर कभी नहीं देखी। जश्न मनाए जा रहे थे। तब टीवी तो था नहीं कि वहां रहते हुए अंग्रेजों द्वारा भारत को सत्ता सौंपते हुए देख सकूं। इस लिए दिल्ली आना चाहती थी लेकिन आ नहीं पाई थी। फिर भी मन में असीम खुशी थी। इसकी वजह यह भी थी कि मुझे भी आजादी की लड़ाई में हिस्सा लेने का अवसर मिला था। इंटर में दोनों सालों में मैं आजादी की लड़ाई में काफी एक्टिव रही। सुबह निकल जाती थी प्रभात फेरियां करते हुए और फिर जुलूस व अन्य कार्यक्रम होते थे। जब देश आजाद हो गया तो कई चीजें तेजी से बदलने लगीं।

मैं तो इंटर के तीसरे वर्ष में गई लेकिन कॉलेज में तीसरे वर्ष की पढ़ाई बंद कर दी गई। अब हमारी क्लास की लड़कियों का एक तरह का नया संघर्ष शुरू हो गया था जो आजाद भारत में बुनियादी अधिकार को लेकर एक तरह से हमारा संघर्ष ही था। हमने तीसरे वर्ष की पढ़ाई बंद नहीं करने के लिए कॉलेज प्रशासन से एक तरह की लड़ाई ही की। हमारे कॉलेज में एक शिक्षिका थीं शीला अग्रवाल। उन्हीं की प्रेरणा से हम सब लड़कियां आजादी की लड़ाई में सक्रिय हुई थीं। कॉलेज में तीसरे वर्ष की पढ़ाई को तो जारी रहने दी गई लेकिन कॉलेज के साथ संघर्ष के कारण उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया। उसके बाद मैं भी कॉलेज में नहीं रही और कोलकाता आ गई।

उस दिन को याद करते हुए आज के दिन को याद करती हूं तो कुछ अजीब सा लगता है। 15 अगस्त आता है और चला जाता है। आजादी की लड़ाई की वे बातें तो हम भूल ही रहे हैं, नए तरीके से गुलाम होते जा रहे हैं। आज हम फिर भ्रष्टाचार के गुलाम हैं। बड़े-बड़े भ्रष्टाचार सामने आ रहे हैं। जैसा राजा वैसी प्रजा। ऊपर से नीचे तब बस भ्रष्ट हो गए हैं। इससे मुक्ति मिलेगी तो वह हमारी दूसरी आजादी होगी।

कहीं तारीख बनकर न रह जाए: रचना
15 अगस्त को मैं बचपन में इमोशनी फील करती थी क्योंकि आजादी के बाद की पहली जेनरेशन हूं। मम्मी उस लड़ाई में शामिल रहीं और उनसे आजादी की लड़ाई की काफी बातें सुनने को मिलीं। इस कारण हमारे लिए इसकी इमोशनल वैल्यू है, इससे इमोशनल एटैचमेंट है। लेकिन अब तो सब कुछ बदल ही गया है। खासकर 15 अगस्त को तो वैसे सेलिब्रेट भी नहीं किया जाता है जैसे किया जाना चाहिए। 26 जनवरी के दिन तो फिर भी परेड होती है, झाकियां निकलती हैं जिन्हें आज की पीढ़ी भी देखती है और उससे जुड़े रहते हैं लेकिन 15 अगस्त को लाल किला पर तिरंगा फहराया जाता है। देशभक्ति के गाने सुनाई देते हैं और टीवी पर देशभक्ति की फिल्में चलती हैं। इस महत्वपूर्ण दिन को याद करने के लिए यह पर्याप्त नहीं है। इस दिशा में और प्रयास होना चाहिए।

नानी से सुनती हूं आजादी की कहानी: मायरा और माही खन्ना
हमारे लिए यह तारीख इतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना नानी या मम्मा के लिए। हमारे लिए तो यह एक कहानी जैसी बात है। नानी बताती है तो अच्छा लगता है क्योंकि वे गांधी जी, नेहरू जी से मिली हुई हैं, आजादी की लड़ाई में शामिल हुई थीं। इसके बावजूद 15 अगस्त को कुछ खास नहीं हो पाता। स्कूल में तिरंगा फहराने का कार्यक्रम होता है जो कुछ ही देर में खत्म हो जाता है। हमारा मानना है देश में लड़ाई-झगड़े खत्म हों तो देश आजाद लगेगा। अभी तो टीवी पर लड़ाई-झगड़ा की ही खबरें आती हैं और 15 अगस्त को कुछ प्रोग्राम्स आते हैं।
प्रस्तुति: सत्य सिंधु

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