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जंक फूड पर लगाएं फुलस्टॉप

जंक फूड को लेकर एक फैशन सा चल पड़ा है। बच्चे तो इन सब चीजों के दीवाने हैं। आज बच्चों के लंच बॉक्स में ये सब चीजें कब्जा जमाए हैं। जंक फूड के शौकीन बच्चों को इसका बहुत बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ता है।...

जंक फूड पर लगाएं फुलस्टॉप
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 29 Jul 2011 12:48 PM
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जंक फूड को लेकर एक फैशन सा चल पड़ा है। बच्चे तो इन सब चीजों के दीवाने हैं। आज बच्चों के लंच बॉक्स में ये सब चीजें कब्जा जमाए हैं। जंक फूड के शौकीन बच्चों को इसका बहुत बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ता है। अच्छा होगा कि पेरेंट्स समय रहते चेत जाएं। क्यों, बता रही हैं डॉ. अनुजा भट्ट

पिछले कुछ महीने पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर पूछा है कि क्यों न स्कूलों में जंक फूड पर पाबंदी लगा दी जाए। एक गैर सरकारी संगठन ने स्कूलों में जंक फूड और कोल्ड ड्रिंक्स की बिक्री पर रोक लगाने की मांग करते हुए एक जनहित याचिका दायर की है। इससे पहले भी कई चिकित्सक और खाद्य विशेषज्ञ लगातार कह रहे हैं कि जंक फूड हमारे बच्चों के लिए घातक है। बच्चों में मोटापा, डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर और हार्ट डिजीज का खतरा बढ़ने की मुख्य वजह यही है।

हमारे देश में जंक फूड को लेकर जो फैशन सा चल पड़ा है, उसमें पिज्जा, बर्गर, कई तरह के चिप्स व आइसक्रीम हमेशा हिट रहते हैं। बच्चे तो इन सब चीजों के दीवाने हैं। शायद ही कोई बच्चा होगा, जिसे मैगी पसंद न हो। आज बच्चों के लंच बॉक्स में ये सब चीजें कब्जा जमाए हैं। मांएं अक्सर कहती सुनी जाती हैं कि नूडल्स तो मेरा बच्चा आसानी से खा लेता है, इसीलिए मैं उसे वही देती हूं। जो चीज बच्चा बिना नानुकर के खा ले मां उसे ही टिफिन में भेज देती हैं।

दरअसल खाने-पीने की ये चीजें आधुनिक खानपान का हिस्सा बन गई हैं। इनकी बढ़ती लोकप्रियता की वजह यह भी है कि ये आधुनिक जीवनशैली के अनुकूल हैं। आज की महिलाएं चाहे वो कामकाजी हों या गैरकामकाजी, बहुत व्यस्त हैं। उनके पास अपने बच्चों के लिए नाश्ता तैयार करने का पर्याप्त समय नहीं होता। इसकी वजह उनका देर से दफ्तर से घर आना या फिर उनके पति का देर से घर आना और देर से सोना है। शहरों में अधिकांश दंपति 12 बजे से पहले नहीं सोते। 10 से 5 बजे की नौकरी बहुत कम लोगों के पास है। बच्चों की बस सुबह सात बजे आ जाती है। जल्दी-जल्दी खाना बनाना आसान नहीं है। ऐसे में जंक फूड ही काम आते हैं।

हमारे लिए जंक फूड एक सुविधा है, तो बच्चों के स्वास्थ्य के लिए बहुत बड़ा खतरा भी।

कौन-से पोषक पदार्थ चाहिए बच्चों को

चूंकि आवश्यक पोषक तत्वों की आवश्यकता बच्चों की आयु एवं लिंग के अनुसार घटती-बढ़ती रहती है, इसलिए इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च 6-13 वर्ष के बच्चों के लिये प्रति दिन 400 से 600 मिलीग्राम तक कैल्शियम लेने की सलाह देता है। कैल्शियम दूध तथा दूध से निर्मित उत्पादों एवं अंडे में प्रचुर रूप से पाया जाता है। जो बच्चे विशुद्ध रूप से शाकाहारी हैं, वे कमलगट्टा, सेम पर निर्भर कर सकते हैं। उदाहरण के तौर पर कमलगट्टा प्रत्येक 100 ग्राम में लगभग 405 मि.ग्रा. कैल्शियम उपलब्ध कराता है। इसी प्रकार 100 ग्राम पपीता 20 मि.ग्रा. कैल्शियम प्रदान करता है। किशमिश, अंजीर तथा बादाम जैसे ड्राइ फूट्र भी कैल्शियम के बेहतरीन स्रोत हैं। छोटे बच्चों को एक स्वस्थ शरीर के लिए सभी पोषक तत्वों की प्रचुर आवश्यकता होती है। इसलिये बच्चों के शारीरिक वृद्धि तथा विकास के लिये संतुलित आहार की विशेष जरूरत पड़ती है। बैलेंस ऑफ गुड हेल्थ के खान-पान प्रारूप के अनुसार 5 वर्ष या इससे अधिक आयु के बच्चों के लिये संतुलित आहार के अलावा अतिरिक्त कैल्शियम हेतु प्रतिदिन 585 मि.ली. दूध की भी आवश्यकता है।

ठीक इसी प्रकार बढ़ते हुए बच्चों के लिये प्रतिदिन 40 मि.ग्रा. विटामिन सी की जरूरत होती है, जो संतरा, नीबू, अमरूद जैसे खट्टे फलों तथा टमाटर एवं आलू जैसी सब्जियों में पर्याप्त रूप से पायी जाती है। उदाहरण के तौर पर प्रत्येक 100 ग्राम अमरूद में 212 मि.ग्रा. विटामिन सी मिलता है।

ऐसा एक और पोषक तत्व है, जो इस चक्र को पूर्ण करने के लिये आवश्यक है। ये फाइटोन्यूट्रिएंट्स के रूप में जाने जाते हैं। फाइटोकेमिकल्स को अभी तक पोषक तत्वों के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया है, लेकिन इन्हें रोगों की रोकथाम के लिये जरूरी तत्वों के तौर पर चिह्न्ति किया गया है। फाइटोकेमिकल्स कम से कम ऐसी चार बीमारियों की रोकथाम अथवा उपचार से संबद्ध हैं, जो पाश्चात्य देशों में मृत्यु के लिये प्रमुख रूप से उत्तरदायी हैं। ये बीमारियां हैं- कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग तथा हाइपरटेंशन। ये फाइटोकेमिकल्स ऐसी अन्य प्रक्रियाओं में सहायक बनते हैं, जिनमें नष्टप्राय कोशिकाओं की सुरक्षा, कैंसरग्रस्त कोशिकाओं के प्रसार पर नियंत्रण तथा कोलेस्ट्रॉल स्तर को कम करना शामिल है।

अधिकांश बच्चे घर पर नाश्ता नहीं करते हैं। स्कूल के कैफेटेरिया में जाकर भी नाश्ता नहीं करते, जबकि विशेषज्ञ कहते हैं कि बढ़ते हुए सभी बच्चों को नियमित रूप से निम्न खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिये। 6 बार अन्न का सेवन, अन्न का आधा हिस्सा सभी अनाजों का मिश्रण होना चाहिए। 2 बार फल का सेवन, 3 बार सब्जियों का सेवन,3 बार दुग्ध पदार्थो का सेवन 2 बार गोश्त, मुर्गा, सूखे सेम, मछली, अंडा या अखरोट।  बच्चों में खान-पान की व्यवहारगत समस्या सामान्य होती है। इसके लिए उनको अनुशासन की जरूरत होती है। यह अनुशासन बचपन से आप ही उनमें पैदा कर सकती हैं। बच्चे की नींव मजबूत होगी, तभी बड़े होकर भी वह बीमारियों से दूर रह पाएगा और उसकी रोग प्रतिरोधी क्षमता मजबूत रहेगी।
(वीएलसीसी न्यूट्री डायर क्लिनिक, दिल्ली की वरिष्ठ न्यूट्रीशियन अपर्णा टंडन से बातचीत पर आधारित)

अब बात करें कुछ तथ्यों पर

10 मिलियन शिशु विटामिन ए की कमी के शिकार। नतीजा आंखों की रोशनी का कम होना।
3 वर्ष आयुवर्ग के 45 प्रतिशत भारतीय शिशुओं का वजन सामान्य से कम। 45 प्रतिशत भारतीय शिशु प्रोटीन की कमी के शिकार।
यदि ये चेतावनी भरे आंकड़े बरकरार रहते हैं तो हम शीघ्र ही असफल देश की श्रेणी में शामिल होने लगेंगे।
बात सिर्फ जंक फूड की ही नहीं है, फलों को कृत्रिम तरीके से पकाने के लिये इस्तेमाल होने वाले हानिकारक रसायन भी चिंता के गंभीर विषय बनते जा रहे हैं।
सच्चाई यह है कि बढ़ते हुए बच्चों को दैनिक रूप से विटामिन ए, विटामिन सी, आयरन, आयोडीन, कैल्शियम, जिंक, पोटेशियम, मैग्नीशियम जैसे आवश्यक पोषक तत्वों की बहुत जरूरत होती है और इसमें किसी भी तरह की कटौती अथवा न्यूनता उन्हें गहरे स्वास्थ्य संकट में डाल सकती है।
विटामिन ए रेटिनल एवं बीटाकेरोटीन के रूप में मिलता है। रेटिनल पशुओं से प्राप्त होने वाले भोज्य पदार्थ में मिलता है, जबकि बीटाकेरोटीन पौधों से प्राप्त होता है। विटामिन ए स्वस्थ त्वचा, आंखों की ज्योति, विकास व प्रजनन के लिये आवश्यक है। इससे हड्डियों और दांतों को भी शक्ति मिलती है। विटामिन ए के मुख्य स्रोत गाजर, पालक, मीठे आलू, लौकी, आम, पपीता, अंडा तथा दूध हैं। इन्हें बच्चे की डाइट का हिस्सा बनाएं। 
कैल्शियम हड्डियों व दांतों के लिये बेहद आवश्यक होता है। यह तत्व दूध, सेम, फूलगोभी आदि जैसी सब्जियों में प्रचुर मात्र में पाया जाता है। कैल्शियम की कमी से ऑस्टियोपोरोसिस रोग का खतरा उत्पन्न हो जाता है। ऑस्टियोपोरोसिस को प्राय: बुजुर्गों की बीमारी के रूप में जाना जाता है, जो कि वास्तव में एक बाल रोग है, जो जीवन की उत्तरावस्था में सक्रिय होता है। संभवत: यही कारण है कि बाल्यावस्था तथा किशोरावस्था के दौरान कैल्शियम के पोषण को विशेष महत्ता प्रदान की जाती है।
विटामिन सी एक और महत्वपूर्ण सूक्ष्म पोषक तत्व है। शरीर की प्रतिरोधक क्षमता के निर्माण में विटामिन सी की भूमिका सर्व विदित है। बंद गोभी, टमाटर व पहाड़ी मिर्ची विटामिन सी के उत्तम स्रोत हैं। नीबू और इस ग्रुप के फल भी विटामिन सी के अच्छे स्नोत हैं। बच्चों के लिए समुचित मात्र में इसे ग्रहण करना बहुत जरूरी  होता है। इन खाद्य पदार्थों को उनकी डाइट का हिस्सा बनाएं।

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