फोटो गैलरी

Hindi Newsपंजाब की जंग जीते कैप्टन अमरिंदर, कांग्रेस 10 साल बाद सत्ता में वापस

पंजाब की जंग जीते कैप्टन अमरिंदर, कांग्रेस 10 साल बाद सत्ता में वापस

पंजाब की सत्ता से 10 साल तक दूर रहने के बाद कांग्रेस ने इस बार शानदार वापसी की और 117 सदस्यीय विधानसभा में पूर्ण बहुमत हासिल कर लिया। सत्ता विरोधी लहर का फायदा उठाते हुए कांग्रेस ने कैप्टन अमरिंदर...

पंजाब की जंग जीते कैप्टन अमरिंदर, कांग्रेस 10 साल बाद सत्ता में वापस
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 11 Mar 2017 05:56 PM
ऐप पर पढ़ें

पंजाब की सत्ता से 10 साल तक दूर रहने के बाद कांग्रेस ने इस बार शानदार वापसी की और 117 सदस्यीय विधानसभा में पूर्ण बहुमत हासिल कर लिया। सत्ता विरोधी लहर का फायदा उठाते हुए कांग्रेस ने कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में शिरोमणि अकाली दल-बीजेपी गठबंधन को सत्ता से बेदखल कर दिया। कांग्रेस ने 77 सीटों पर जीत हासिल की। वहीं सत्ताधारी शिअद-बीजेपी गठबंधन को सिर्फ 18 सीटें जीतने में सफल रही। पंजाब में पहली बार चुनाव लड़ रही आम आदमी पार्टी को 20 सीटें मिली है। शिअद की करारी हार को देखते हुए मुख्यमंत्री एवं अकाली दल के नेता प्रकाश सिंह बादल ने कहा कि वह रविवार को राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंप देंगे।
     
पंजाब की जंग जीते कैप्टन अमरिंदर
 
कैप्टन अमरिंदर सिंह कुछ ऐसे विरले राजनेताओं में शामिल माने जाते हैं जिन्होंने भारत पाकिस्तान युद्ध का सीधे मोर्चे पर मुकाबला किया है। कांग्रेस के इस कद्दावर नेता को यह जीत अपने 75वें जन्मदिन पर मिली है। किसी जमाने में अकाली दल के नेता रहे और पटियाला घराने के उत्तराधिकारी कैप्टन पार्टी से इस्तीफा देने के कुछ महीने बाद सेना में फिर से शामिल होने के बाद 1965 में भारत पाकिस्तान युद्ध लड़ा था। युद्ध की समाप्ति के बाद उन्होंने एक विजेता सैनिक के रूप में सेना से फिर से इस्तीफा दे दिया था। 

पंजाब कांग्रेस प्रमुख और पटियाला से पूर्व सांसद प्रणीत कौर के पति कैप्टन अमरिंदर सिंह का जन्म पटियाला के दिवंगत महाराजा यादविन्दर सिंह के घर हुआ था। लारेंस स्कूल, स्नावर और दून स्कूल देहरादून में अपनी शुरूआती स्कूली शिक्षा हासिल करने के बाद सिंह जुलाई 1959 में खड़गवासला में राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में शामिल हो गए और दिसंबर 1963 में वहां से स्नातक डिग्री हासिल की। 

पाक के खिलाफ लड़ा जंग

1963 में भारतीय सेना में कमीशन हासिल करने के बाद उन्हें सिख रेजीमेंट की दूसरी बटालियन में नियुक्त किया गया जिसमें उनके पिता और दादा पहले ही अपनी सेवाएं दे चुके थे । कैप्टन ने इस बटालियन में रहते हुए दो साल तक फील्ड एरिया भारत तिब्बत सीमा पर अपनी सेवाएं दी। वह पश्चिमी कमान के जीओसी लेफ्टिनेंट जनरल हरबक्श सिंह के कैंप नियुक्त किए गए। सेना में उनका कार्यकाल थोड़े समय का था क्योंकि उन्होंने अपने पिता के इटली का राजदूत नियुक्त किए जाने के बाद 1965 की शुरूआत में इस्तीफा दे दिया क्योंकि घर पर उनकी जरूरत थी। लेकिन पाकिस्तान के साथ जंग छिड़ने के बाद वह तुरंत फिर से सेना में शामिल हो गए और युद्ध में हिस्सा लिया। युद्ध खत्म होने के बाद उन्होंने 1966 के शुरूआत में फिर से सेना से इस्तीफा दे दिया।

37 साल पहले चुने गए सांसद

उनके राजनीतिक कैरियर की शुरूआत 1980 में हुई जब वह सांसद चुने गए। लेकिन उन्होंने 1984 में आपरेशन ब्लू स्टार के दौरान स्वर्ण मंदिर में सेना के प्रवेश के विरोध में कांग्रेस और लोकसभा से इस्तीफा दे दिया। 1985 में अकाली दल में शामिल होने के बाद सिंह 1995 के चुनाव में अकाली दल (लोंगोवाल) टिकट पर पंजाब विधानसभा के लिए चुने गए । वह सुरजीत सिंह बरनाला सरकार में कृषि मंत्री थे।

हालांकि पांच मई 1986 को बरनाला सरकार द्वारा स्वर्ण मंदिर में अर्द्धसैनिक बलों के प्रवेश के आदेश के खिलाफ उन्होंने कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया। उसके बाद उन्होंने पंथिक अकाली दल का गठन किया जिसका बाद में 1997 में कांग्रेस में विलय हो गया। 1998 में उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर पटियाला से लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन विफल रहे। इसके बाद वह 1999 से 2002 के बीच पंजाब कांग्रेस के प्रमुख रहे और वर्ष 2002 से लेकर 2007 तक मुख्यमंत्री पद संभाला। इसके बाद वह 2013 तक कांग्रेस के प्रदेश प्रमुख बने रहे। 

पंजाब की सत्ता से 10 साल तक दूर रहने के बाद कांग्रेस ने इस बार शानदार वापसी की और 117 सदस्यीय विधानसभा में पूर्ण बहुमत हासिल कर लिया। सत्ता विरोधी लहर का फायदा उठाते हुए कांग्रेस ने कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में शिरोमणि अकाली दल-बीजेपी गठबंधन को सत्ता से बेदखल कर दिया। कांग्रेस ने 77 सीटों पर जीत हासिल की। वहीं सत्ताधारी शिअद-बीजेपी गठबंधन को सिर्फ 18 सीटें जीतने में सफल रही। पंजाब में पहली बार चुनाव लड़ रही आम आदमी पार्टी को 20 सीटें मिली है। शिअद की करारी हार को देखते हुए मुख्यमंत्री एवं अकाली दल के नेता प्रकाश सिंह बादल ने कहा कि वह रविवार को राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंप देंगे।
     
पंजाब की जंग जीते कैप्टन अमरिंदर
 
कैप्टन अमरिंदर सिंह कुछ ऐसे विरले राजनेताओं में शामिल माने जाते हैं जिन्होंने भारत पाकिस्तान युद्ध का सीधे मोर्चे पर मुकाबला किया है। कांग्रेस के इस कद्दावर नेता को यह जीत अपने 75वें जन्मदिन पर मिली है। किसी जमाने में अकाली दल के नेता रहे और पटियाला घराने के उत्तराधिकारी कैप्टन पार्टी से इस्तीफा देने के कुछ महीने बाद सेना में फिर से शामिल होने के बाद 1965 में भारत पाकिस्तान युद्ध लड़ा था। युद्ध की समाप्ति के बाद उन्होंने एक विजेता सैनिक के रूप में सेना से फिर से इस्तीफा दे दिया था। 

पंजाब कांग्रेस प्रमुख और पटियाला से पूर्व सांसद प्रणीत कौर के पति कैप्टन अमरिंदर सिंह का जन्म पटियाला के दिवंगत महाराजा यादविन्दर सिंह के घर हुआ था। लारेंस स्कूल, स्नावर और दून स्कूल देहरादून में अपनी शुरूआती स्कूली शिक्षा हासिल करने के बाद सिंह जुलाई 1959 में खड़गवासला में राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में शामिल हो गए और दिसंबर 1963 में वहां से स्नातक डिग्री हासिल की। 

पाक के खिलाफ लड़ा जंग

1963 में भारतीय सेना में कमीशन हासिल करने के बाद उन्हें सिख रेजीमेंट की दूसरी बटालियन में नियुक्त किया गया जिसमें उनके पिता और दादा पहले ही अपनी सेवाएं दे चुके थे । कैप्टन ने इस बटालियन में रहते हुए दो साल तक फील्ड एरिया भारत तिब्बत सीमा पर अपनी सेवाएं दी। वह पश्चिमी कमान के जीओसी लेफ्टिनेंट जनरल हरबक्श सिंह के कैंप नियुक्त किए गए। सेना में उनका कार्यकाल थोड़े समय का था क्योंकि उन्होंने अपने पिता के इटली का राजदूत नियुक्त किए जाने के बाद 1965 की शुरूआत में इस्तीफा दे दिया क्योंकि घर पर उनकी जरूरत थी। लेकिन पाकिस्तान के साथ जंग छिड़ने के बाद वह तुरंत फिर से सेना में शामिल हो गए और युद्ध में हिस्सा लिया। युद्ध खत्म होने के बाद उन्होंने 1966 के शुरूआत में फिर से सेना से इस्तीफा दे दिया।

37 साल पहले चुने गए सांसद

उनके राजनीतिक कैरियर की शुरूआत 1980 में हुई जब वह सांसद चुने गए। लेकिन उन्होंने 1984 में आपरेशन ब्लू स्टार के दौरान स्वर्ण मंदिर में सेना के प्रवेश के विरोध में कांग्रेस और लोकसभा से इस्तीफा दे दिया। 1985 में अकाली दल में शामिल होने के बाद सिंह 1995 के चुनाव में अकाली दल (लोंगोवाल) टिकट पर पंजाब विधानसभा के लिए चुने गए । वह सुरजीत सिंह बरनाला सरकार में कृषि मंत्री थे।

हालांकि पांच मई 1986 को बरनाला सरकार द्वारा स्वर्ण मंदिर में अर्द्धसैनिक बलों के प्रवेश के आदेश के खिलाफ उन्होंने कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया। उसके बाद उन्होंने पंथिक अकाली दल का गठन किया जिसका बाद में 1997 में कांग्रेस में विलय हो गया। 1998 में उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर पटियाला से लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन विफल रहे। इसके बाद वह 1999 से 2002 के बीच पंजाब कांग्रेस के प्रमुख रहे और वर्ष 2002 से लेकर 2007 तक मुख्यमंत्री पद संभाला। इसके बाद वह 2013 तक कांग्रेस के प्रदेश प्रमुख बने रहे। 

पिछले लोकसभा चुनाव में अरुण जेटली को हराया

वर्ष 2013 से कांग्रेस कार्य समिति में स्थायी आमंत्रित सदस्य के तौर पर कार्यरत सिंह ने 2014 का लोकसभा चुनाव अमृतसर से लड़ा और बीजेपी के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली को एक लाख से अधिक मतों के अंतर से हराया। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट द्वारा सतलुज यमुना लिंक नहर समझौते को रद्द करने वाले पंजाब के वर्ष 2004 के अधिनियम को असंवैधानिक करार दिए जाने के बाद नवंबर में सांसद पद से इस्तीफा दे दिया। कुछ दिन बाद उन्हें चुनाव से पूर्व पंजाब कांग्रेस प्रमुख की कमान फिर से सौंप दी गई। विश्व के विभिन्न देशों की यात्रा करने वाले और काफी अनुभवी सिंह ने कई किताबें लिखी हैं जिनमें 1965 के भारत पाक युद्ध पर लिखी किताब भी शामिल है। 

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें