दिल्ली पुलिस की ‘चेज टू चालान मुहिम कमजोर पड़ी
दिल्ली पुलिस की ‘चेज टू चालान मुहिम लगातार कमजोर पड़ती जा रही है। साल दर साल चालानों की संख्या में कमी आ रही है। 2008 में बाइक स्क्वायड की ओर से शुरू ‘चेज टू चालान योजना के बाद सड़क दुर्घटनाओं में...
दिल्ली पुलिस की ‘चेज टू चालान मुहिम लगातार कमजोर पड़ती जा रही है। साल दर साल चालानों की संख्या में कमी आ रही है। 2008 में बाइक स्क्वायड की ओर से शुरू ‘चेज टू चालान योजना के बाद सड़क दुर्घटनाओं में काफी कमी आई थी, लेकिन अब बढ़ते हादसों और बाइकों के खराब रखरखाव के कारण यह मुहिम कमजोर पड़ गई है। बाइक स्क्वायड की शुरुआत से चालान के आंकड़ों पर नजर डालें तो 2008 में 35 लाख के करीब चालान काटे गए थे। 2013-14 में करीब 83 लाख चालान काटे गए। 2015 में 34 लाख लेकिन 2016 में पिछले वर्ष के मुकाबले चालान में 18 फीसदी बढ़ोतरी हुई। 2013 तक ट्रैफिक नियम तोड़ने वाले लगभग 2400 लोगों का चालान वर्षभर में काटा जाता था जबकि 2016 में यह आंकड़ा गिरकर 500 पर सिमट गया। आंकड़ों के अनुसार, 2013 और 2014 में पांच में से एक चालान पीछा कर काटा जाता था। इन सालों में कुल 83 लाख चालान हुए थे जबकि 2017 में यह आंकड़ा कुल आंकड़ों का पांच प्रतिशत रह गया है। संयुक्त पुलिस आयुक्त ट्रैफिक गरिमा भटनागर का कहना है कि यह सोच समझकर लिया गया फैसला है। मुहिम कमजोर पड़ने के कारण इनकी एक बड़ी वजह यह भी है कि पीछा करते वक्त ट्रैफिक पुलिस पर लोग हमला भी कर देते हैं। बाइकों की भी हालत खराब और काफी पुरानी हो चुकी है। बाइक कई पुलिसवाले चलाना भी नहीं जानते। कई ट्रैफिककर्मी तो उम्रदराज भी हो चुके हैं। बाइक स्क्वायड में कुल 671 बाइक हैं। मोटरसाइकिल की खराब हालत होने से अब 570 बाइक ही प्रयोग हो पाती हैं। क्यों पड़ी थी बाइक स्क्वायड की जरूरत कई वाहन चालक ट्रैफिक नियमों का पालन नहीं करते थे। गलत साइड पर वाहन चलाना और सीट बेल्ट नहीं पहनना। लोग बिना हेलमेट और बाइक पर तीन सवारियों के साथ गाड़ी चलाते थे। इसे पकड़ने के लिए ही इस स्क्वायड की शुरुआत की गई थी। वर्ष चालानों की संख्या 2014 829643 2015 339944 2016 187789 बोले विशेषज्ञ पीछा करना कभी भी अच्छा विचार नहीं है। मूलत: यह अपराधियों के लिए होता है। कैमरा लगाकर वाहनों को पकड़ा जा सकता है। -रोहित बलूजा, प्रमुख, इंस्टीट्यूट ऑफ रोड ट्रैफिक एजुकेशन पीछा करना अच्छा विचार नहीं है। उन्होंने कहा कि पीछा करने जैसे विचारों को सिर्फ हाईवे तक सीमित रखना चाहिए। व्यस्त रास्तों पर ऐसा करना संभव और बेहतर नहीं है। -मैक्सबेल परेरा, ट्रैफिक पुलिस अधिकारी